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________________ विवित्सु विवित्सु - (सो. कुरु. ) धृतराष्ट्र के शतपुत्रों में से एक । भीम ने इसका वध किया ( म. क. ३५.११ ) । विविद --एक दानव, जो कश्यप एवं दनु के पुत्रों में से एक था। विविंध्य - एक दानव, जो शाल्व का अनुयायी था । कृष्ण पुत्र चारुदेष्ण ने इसका वध किया (म. ६. १७. २६ ) । विविसार (शि. भविष्य) शिशुपालवंशीय विधि सार' एवं ' बिन्दुसार ' राजा का नामान्तर ( विधिसार एवं बिन्दुसार देखिये )। विवि काश्यप - एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०. १६३)। प्राचीन चरित्रकोश विशठ - बलराम एवं रेवती के पुत्रों में से एक (वायु. ३१.६ ) । विशत-त्रित देवों में से एक। विशद - (सो. पुरूरवस्. ) एक राजा, जो भागवत के अनुसार जयद्रथ राजा का पुत्र एवं सेनजित् राजा का पिता था ( भा. ९.२१.२३ ) । विशाख - इंद्रसभा का एक ऋषि (म. स. ७.१२) । २. (सो. पुरूरवस्. ) एक राजश, जो आयु राजा का पुत्रा (पद्म १२ ) । ३. स्कंद के तीन छोटे भाइयों में से एक। इसके अन्य दो भाइयों के नाम शाख एवं नैगमेय थे। विशाल जो विशाखयूप--(प्रो. भविष्य.) एक राजा, पालक राजा का पुत्र, एवं राजक राजा का पिता था। वायु एवं ब्रह्मांड के अनुसार इसने पचास वर्षों तक, तथा मत्स्य के अनुसार इसने तिरपन वर्षों तक राज्य किया । विशाखा - सोम की पत्नियों में से एक। विशाल -- (सू. दिष्ट. ) एक राजा, जो भागवत, ब्रह्मांड एवं वायु के अनुसार तृणबिंदु राजा का पुत्र था। इसने वैशाली नामक नगरी की स्थापना की (मा. ९.२.१३० ब्रह्मांड. ३.६१.१२; विष्णु. ४.१.१६; वायु. ८६.१५२२) | किन्तु रामायण के अनुसार वैशाली नगरी की स्थापना इसके द्वारा नहीं, बल्कि इक्ष्वाकु के पुत्र के द्वारा हुई थी (बा. रा. या ४७,११-१७ ) । इसके पुत्र का नाम हेमचंद्र था । विशाल एवं हेमचंद्र को वैशालराजवंश के संस्थापक माने जाते हैं ( मा. ९.६ ३३-६६) । वैशाली नगरी - इस नगरी का सविस्तृत वर्णन वाल्मीकि रामायण, चौद्धधर्मीय जातक ग्रंथ एवं एन्संग आदि ह्युएन-त्संग चिनी प्रवासियों के प्रवासवर्णनों में प्राप्त है, जहाँ इस नगरी के वैभव एवं विस्तार की जानकारी दी गयी है। इस नगरी के खण्डहर आधुनिक बिहार राज्य में मुज़फरपुर जिले में बसाड ग्राम में प्राप्त है, जो गण्डकी नदी के बायें तट पर बसा हुआ है। इस नगरी में इक्ष्वाकु - राजाओं के समान, लिच्छवी गंग की एवं वजीराज्यसंघ की राजधानी भी स्थित थी। जैनों का सीधा कर महावीर एवं बौद्ध धर्म का संस्थापक गौतम बुद्ध इस नगरी में धर्मप्रचारार्थ आये थे। इसी कारण, बौद्ध एवं बैन ग्रंथों में इस नगरी का निर्देश पुनः पुनः प्राप्त है। वैशाल राजवंश - वैशाल राजवंश की विभिन -- जानकारी भागवत एवं वाल्मीकि रामायण में प्राप्त है, जो निम्न प्रकार है। (१) भागवत में - इस ग्रंथ में सूर्यवंश के दिष्टशाखा के तृणबिंदुपुत्र विशाल राजा को 'वैशालराजवंश' का संस्थापक कहा गया है, एवं उसकी वंशावलि निम्नसार दी गयी है :- विशाल - हेमचंद्र - धूम्राक्ष-संयम संहदेवपुत्र कुशाल सोमदत्त सुमति जनमेजय ( भा. ९.२.२१३६ ) | । (२) वाल्मीकि रामायण में इस ग्रंथ में कुपुत्र विशाल को विशालापुरी ( वैशाली), एवं वैशाल राजवंश का संस्थापक कहा गया है, एवं उसका राजवंश निम्नप्रकार दिया गया है :- विशाल - हेमचंद्र -मुचंद्र - धूम्राक्ष संजय - ક इसके जन्म के संबंध में एक चमत्कृतिपूर्ण कथा महा भारत में प्रास है। एक बार स्कंद अपने पिता शिव से मिलने जा रहा था। उस समय शिव, पार्वती, अनि एवं गंगा चारों ही एकसाथ मन ही मन सोचने लगे कि कंद उनके पास रहने आये तो अच्छा होगा। उनके मनोभाव को समझ कर, स्कंद ने योग से अपने कंद, विशाल, शाख एवं नैगमेय नामक चार रूप बना दिये, जो क्रमशः शिव, पार्वती, अग्नि एवं गंगा के पास रहने लगे। स्कंद से उत्पन्न होने के कारण, ये परस्पर अभिन्न माने जाते हैं ( म. श. ४४.३४ ) । ४. स्कंद का एक रूप । एक समय इंद्र ने स्कंद पर चत्र का प्रहार किया, जिस कारण उसकी दायी पसली पर गहरी चोट लगी। इस बोट में से स्कंद का एक नया रूप प्रकट हुआ, जिसकी युवावस्था थी। उसने सुवर्णमय कवच धारण किया था, एवं उसके हाथ में एक शक्ति थी । वज्र के घाव से उसकी उत्पत्ति होने के कारण, उसे 'विशाख' नाम प्राप्त हुआ । -: -
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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