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________________ विरोचन प्राचीन चरित्रकोश विरोचन दोहन के समय, यह 'वत्स' (बछडा) बना था (म. प्रजापति का यह अनृत-कथन सत्य मान कर, विरोचन दो. परि. १. क्र. ८. पंक्ति. ८०२)। ने उत्तम स्नान किया, एवं उत्कृष्ट वस्त्र एवं अलंकार परिप्रल्हाद की न्यायप्रियता-इसके पिता प्रह्लाद के धान कर, अपनी परछाई का पानी में निरीक्षण किया । न्याय निष्ठरता के संबंध में एक कथा महाभारत में प्राप्त पश्चात् उसी परछाई को आत्मा मान कर, उसी तत्त्व का है। एक बार केशिनी नामक सुंदर राजकन्या से यह एवं | प्रचार यह अपने अनुगामियों में करने लगा। इसीके अंगिरस् ऋषि का पुत्र सुधन्वन् एकसाथ ही प्रेम करने | कारण, देह को ही आत्मा समझने वाले असुरों का लंगे। उस समय केशिनी ने इन दोनों से कहा, 'तुम दोनों 'आसुरी सांप्रदाय' निर्माण हुआ। यह सांप्रदाय देवों से में से जो अपने को श्रेष्ठ साबित करेगा, उससे मैं विवाह संपूर्णतः विभिन्न था, जो शारीरिक एवं मानसिक बंधनों करूँगी। से अतीत, शुद्ध एवं स्वसंवेद्य आत्मतत्त्व को ही आत्मा श्रेष्ठता के संबंध में इसका एवं सुधन्वन् का काफी | मानते थे (छां. उ. ८.७.२, ९.२;रक्षम् एवं देव देखिये)। वादविवाद हुआ। अंत में इस वाद का निर्णय करने के मृत्यु--देवासुरों के बीच संपन्न हुए 'तारकामय युद्ध' लिए, ये दोनों विरोचन के पिता असुरराज प्रह्लाद के पास में असुरों के एक सेनादल का यह सेनापति था (म. स. गये। इनका यह भी तय हुआ कि, इनमें से जो श्रेष्ठ | परि. १ क्र. २१ पंक्ति. ३६७)। इसी यद्ध में यह इंद्र के सावित होगा, उसका दूसरे के प्राणों पर अधिकार होगा। द्वारा मारा गया (म. शां. ९९.४८; ब्रह्मांड. २.२०.३५, __ असुरराज प्रह्लाद इन दोनों की श्रेष्ठता के संबंध में | मत्स्य. १०.२१; पद्म. स. १३)। कुछ भी निणय न दे सका, जिस कारण उसने कश्यप | गणेश पुराण में इसकी मृत्यु की संबंध में एक कल्पनारम्य ऋषि की सलाह ली। उसी के कहने पर, प्रह्लाद ने अपने | कथा दी गयी है। सूर्य के प्रसाद से इसे एक मुकुट प्राप्त पुत्र की अपेक्षा सुधन्वन् को श्रेष्ठ ठहराया, एवं उसे हुआ था । उसके संबंध में शर्त थी कि, यह मुकुट कहा, 'तुम विरोचन के प्राणों के मालिक हो, उसका | किसी दूसरे के हाथों लग जायेगा, तो इसकी मृत्यु होगी। . जीवन तुम्हारी मुट्ठी में है' । प्रह्लाद की यह अपत्य- | कालोपरांत इसके द्वारा देवों को अत्यधिक त्रस्त किये निरपेक्ष न्यायप्रियता देख कर, सुधन्वन् अत्यधिक प्रसन्न | जाने पर,श्रीविष्णु ने स्त्रीरूप धारण कर इसे मोहित किया, हुआ. एवं उसने विरोचन का जीवन उसे वापर दे दिया, | एवं इसका मुकुट हस्तगत कर के इसका विनाश किया • एवं इसे शतायु बनने का आशीर्वाद दिया (म. स.६१. (गणेश. २.२९)। ५८-७९)। नारदपुराण के अनुसार, श्रीविष्णु ने ब्राह्मणवेष इंद्र विरोचनआख्यान--छांदोग्य उपनिषद में इंद्र एवं । धारण कर, इसकी धर्म निष्ठ पत्नी विशालाक्षी का बुद्धि भ्रंश विरोचन की आत्मज्ञान के संबंध में एक कथा प्राप्त है। करवाया, एवं कपट से इसका वध किया (नारद. २. एकबार देव एवं असुरों को ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने की इच्छा हुई, एवं इस हेतु वे प्रजापति के पास गये। उनके प्रश्न परिवार-इसकी विशालाक्षी एवं देवी नामक दो का उत्तर देते हुए प्रजापति ने उन्हे कहा, 'पृथ्वी के पत्नियाँ थी ( नारद. २,३२; भा. ६.१८.१६ )। इनमें निष्पाप, अजर, अमर, अकाम एवं संकल्परहित आद्य से देवी से इसे बलि नामक पुत्र उत्पन्न हुआ (म. आ. तत्त्व को आत्मा कहते है । तदुपरांत इसी आत्मा के ५९.१९-२०; पद्म. सु. ६)। इसकी कन्या का नाम सत्य स्वरूप का ज्ञान प्राप्त कराने के हेतु देवों ने इंद्र को, यशोधरा था (ब्रह्मांड. ३.१.८६; यशोधरा देखिये)। एवं असुरों ने विरोचन को प्रजापति के पास शिष्य के नाते भेज दिया। | इसके निम्नलिखित पाँच भाई थे:- कुंभ, निकुंभ, ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति के लिए इंद्र एवं विरोचन बत्तीस | आयुष्मत् , शिबि एवं बाष्कलि । इसकी बहन का नाम साल तक प्रजापति के पास रहे। फिर भी प्रजापति ने | विरोचना था (वायु. ८४.१९)। इनको ब्रह्मज्ञान न दिया, एवं इनकी परीक्षा लेने के लिए | २. धृतराष्ट्र के शतपुत्रों में से एक । यह द्रौपदीस्वयंवर में इनसे अनृत (असत्य) बचन कहे, 'आँखों में, पानी | उपस्थित था ( म. आ. १७७.२)। भारतीय-युद्ध में में, आइने में अपनी जो परछाई नज़र आती है, वही | यह भीमसेन के द्वारा मारा गया। इसे 'दुर्विरोचन' आत्मा है। एवं 'दुर्विमोचन' नामांतर भी प्राप्त थे।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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