________________
विजया
प्राचीन चरित्रकोश
विति
मा
विजया-शल्य राजा की कन्या, जो सहदेव पाण्डव में, वै. गोपाल अण्णा क-हाडकर कृत 'विठ्ठलभूषण' ग्रंथ की पत्नी थी। इसके पुत्र का नाम सुहोत्र था (म. आ. सुविख्यात है (विष्णु देखिये)। ९०.८७)। महाभारत के कई संस्कारणों में इसे मद्र देश विडरथ--(सो. पुरु.) एक पुरुवंशीय सम्राट । के द्युतिमत् राजा की कन्या कहा गया है। भागवत में
परशुराम जब पृथ्वी निःक्षत्रिय कर रहा था, तब इसकी इसे पर्वत राजा की कन्या कहा गया है (भा. ९.२२.
माता ने इसे ऋष्यवत् पर्वत पर एक ऋषि के आश्रम में ३१)।
छिपा कर रखा था। वहाँ एक रीछ ने इसकी रक्षा की। २. श्रीकृष्ण की पत्नियों में से एक (मत्स्य. ४७.१४)।
अपना क्षत्रियसंहार समाप्त कर परशुराम जब शूपरिक ३.एक योगमाया, जो पार्वती की सखी थी (भा.१०. क्षेत्र में चला गया. तब यह ऋष्यवत् पर्वत से नीच २.११)। पार्वती का मानसपुत्र वीरक को लाने के लिए
उतरा, एवं पुनः राज्य करने लगा (म. शां. ४९.६७)। इसे भेजा गया था (मत्त्य. १५४.५४९)। इसने पार्वती
पाटभेद-'विदूरथ'। के साथ तप किया था।
२. (सो. कुरु.) एक राजा, जो कुरु राजा एवं दाशाही ४. दशाह राजा की कन्या, जो सम्राट् भुमन्यु की पत्नी
शुभांगी का पुत्र था । मधुकुल में उत्पन्न संप्रिया इसकी थी। इसके पुत्र का नाम सुहोत्र था (म. आ. ९०.३५)।
पत्नी थी, जिससे इसे अनश्वन् नामक पुत्र उत्पन्न पाठभेद-'जया'।
हुआ था (म. आ. ९०.४१-४२) पाठभेद-'विदूर। विजर अथवा विज्वर-एक राक्षस, जो अनायुषा वितत्य--एक ऋषि, जो गृत्समदवंशीय विहव्य ऋषि नामक राक्षसी का पुत्र था । इसे खर एवं कालक नामक दो
का पुत्र था । इसके पुत्र का नाम सत्य था (म. अनु. पुत्र उत्पन्न हुए थे।
३०.६२)। विजिताश्च 'अंतर्धान '--एक राजा, जो पृथु वैन्य वितथ--(सो. पूरु.) एक राजा, जो दुष्यन्तपुत्रं राजा के पाँच पत्रों में से एक था। इसकी माता का नाम भरत राजा का पुत्र था। भरत राजा ने भरद्वाज ऋषि को अर्चि था।
गोद में लिया, एवं उसका नाम 'वितथ' रखा गया । इसी सौ अश्वमेध का निश्चय कर, इसने निन्यानवें अश्वमेध | कारण, इसे 'वितथ भरद्वाज' भी कहते थे। यज्ञ पूर्ण किये । इस पर इंद्र को डर उत्पन्न हुआ कि, यह
ट को डा उत्पन्न दृआ कि.यह यह बृहस्पति के वीर्य -से. उत्पन्न हुआ था। इस शायद इंद्रपद ले लेगा। अतएव उसने इसका अश्वमेधीय कारण यह जन्म से ब्राह्मण था, किन्तु आगे चल कर अश्व चुरा लिया।
| क्षत्रिय बन गया। इसी लिये इसे 'ब्रह्मक्षत्रिय' भी
कहते थे। उस समय इंद्र से किये युद्ध में इसने काफ़ी | पराक्रम दर्शा कर, अपना अश्व पुनः प्राप्त किया, जिस कई पुराणों के अनुसार, भरत राजा ने भरद्वाज ऋषि कारण इसे 'विजिताश्व' नाम प्राप्त हुआ। इसी को नहीं, बल्कि उसके पुत्र को गोद में लिया था, जिसका समय इंद्र ने प्रसन्न हो कर इसे अंतर्धान होने की विद्या नाम वितथ था । इसे भरत राजा के गोद में देका सिखायी, इस लिये इसे 'अंतर्धान' नाम प्राप्त हुआ। भरद्वाज स्वयं वन में चला गया (ब्रह्म. १३.५९-६१: यज्ञकर्म में किये जानेवाले पशुहवन का यह पुरस्कर्ता
वाले पशहवन का यह परस्कर्ता | ह. वं. १.३२.१६-१८)। था, जिस कारण इसने अपने आयुष्य में अनेकानेक यज्ञ वितद्रु--एक यादव, जिसकी गणना यादवों के सात किये।
प्रधान मंत्रियों में की जाती थी (म. स. १३. १५९* )। परिवार-इसे शिखण्डिनी एवं नभस्वती नामक दो | वितर्क--एक राजा, जो कुरु राजा के वंशज धृतराष्ट्र पत्नियाँ थी। उनमें से शिखण्डिनी से इसे पावक, पवमान | का पुत्र था (म. आ. ८९.५१७)। एवं शुचि नामक तीन पुत्र उत्पन्न हुए । नभस्वती से इसे | वितर्दन--रावणपक्षीय एक राक्षस ( वा. रा. यु. हविर्धान नामक पुत्र उत्पन्न हुआ (भा. ४.१८-१९)।। ६४.२२)।
विठ्ठल--विष्णु की एक. सुविख्यात प्रतिकृति, जिसकी | विताना--भौत्य मन्वन्तर के बृहद्भानु नामक अवतार उपासना मुख्यतः आंध्र कर्नाटक एवं महाराष्ट्र में की जाती | की माता (भा. ८.१३.३५ )। है ( पद्म. उ. १७६.५७ )। विठ्ठल की उपासना के संबंध । विति--तुषित अथवा साध्य देवों में से एक ।
८४२