SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 857
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वाल्मीकि प्राचीन चरित्रकोश वाल्मीकि है, वहाँ रामायण माता के दूध के समान है। नवनीत | मधुममय-भणतीनां मार्गदर्शी महर्षिः। का उपयोग मर्यादित लोग ही कर सकते है, किन्तु माता आदिकवि वाल्मीकि-वाल्मीकिप्रणीत रामायण संस्कृत का दूध तो सभी के लिए लाभदायक रहता है। भाषा का आदिकाव्य माना जाता है, जिसकी रचना इसीलिए वाल्मीकि रामायण के प्रारंभ में ब्रह्मा ने | अनुष्टुभ् छंद में की गयी है। रामायण के संबंधित जो आशीर्वचन वाल्मीकि को प्रदान । वाल्मीकि रामायण के पूर्वकाल में रचित कई वैदिक किया है, वह सही प्रतीत होता है: ऋचाएँ अनुष्टुभ् छंद में भी थी। किंतु वे लघु गुरु-अक्षरों यावत्स्थास्यन्ति गिरयः सरितश्च महीतले के नियंत्रणरहित होने के कारण, गाने के लिए योग्य • तावद्रामायणकथा लोकेषु प्रचरिष्यति ॥ (गेय) नहीं थी। इस कारण ब्राह्मण, आरण्यक जैसे . (वा. रा. बा. २.३६)। वैदिकोत्तर साहित्य में अनुष्टुभ् छद का लोप हो कर, इन सारे ग्रन्थों की रचना गद्य में ही की जाने लगी। (इस सृष्टि में जब तक पर्वत खडे है, एवं नदियाँ बहती इस अवस्था में, वेदों में प्राप्त अनुष्टुभ् छंद को लघुहै, तब तक रामकथा का गान लोग करते ही रहेंगे)। गुरु अक्षरों के नियंत्रण में बिठा कर वाल्मीकि ने सर्वरामायण की ऐतिहासिकता-डॉ. याकोबी के अनुसार, प्रथम अपने 'मा निषाद' श्लोक की, एवं तत्पश्चात् समग्र वर्ण्य विषय की दृष्टि से 'वाल्मीकि रामायण' दो भागों | रामायण की रचना की । छंदःशास्त्रीय दृष्टि से वाल्मीकि में विभाजित किया जा सकता है:-१. बाल एवं अयोध्या के द्वारा प्रस्थापित नये अनुष्टभ् छंद की विशेषता निम्नकांड में वर्णित अयोध्य की घटनाएं, जिनका केंद्रबिंदु | प्रकार थी:इक्ष्वाकुराजा दशरथ है; २. दंडकारण्य एवं रावणवध से श्लोके षष्ठं गुरु ज्ञेयं सर्वत्र लघु पंचमम् । संबंधित घटनाएं, जिनका केंद्रबिंदू रावण दशग्रीव है। इनमें से अयोध्या की घटनाएँ ऐतिहासिक प्रतीत होती द्विचतुःपादायोह्रस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः ॥ है, जिनका आधार किसी निर्वासित इक्ष्वाकुवंशीय राज. (वाल्मीकि के द्वारा प्रस्थापित अनुष्टुभ् छंद में, श्लोक क कुमार से है । रावणवध से संबंधित घटनाओं का मूल- | हर एक पाद का पाँचवाँ अक्षर लघु, एवं छठवाँ अक्षर गुरु उद्गम वेदों में वर्णित देवताओं की कथाओं में देखा | था। इसी प्रकार समपादों में से सातवाँ अक्षर हस्व, एवं जा सकता है (याकोबी, रामायण पृ. ८६; १२७)। विषमपाद में सातवाँ अक्षर दीर्घ था)। रामकथा से संबंधित इन सारे आख्यान-काव्यों की इसी अनुष्टुभ् छंद के रचना के कारण वाल्मीकि संस्कृत रचना इक्ष्वाकुवंश के सूतों ने सर्वप्रथम की, जिनमें रावण | भाषा का आदि-कवि कहलाया गया । इतना ही नहीं एवं हनुमत् से संबंधित प्रचलित आख्यानों को मिला कर | 'विश्व' जैसे संस्कृत भाषा के शब्दकोश में 'कवि' वाल्मीकि ने रामायण की रचना की। शब्द का अर्थ भी 'वाल्मीकि' ही दिया गया है। जिस प्रकार वाल्मीकि के पूर्व रामकथा मौखिक रूप में गेय महाकाव्य--वाल्मीकि के द्वारा रामायण की रचना वर्तमान थी, उसी प्रकार दीर्घकाल तक 'वाल्मीकि- | एक पाठ्य काव्य के नाते नहीं, बल्कि एक गेय काव्य रामायण' भी मौखिक रूप में ही जीवित रहा । इस | के नाते की गयी थी। रामायण की रचना समाप्त होने काव्य की रचना के पश्चात् , कुशीलवों ने उसे कंठस्थ | के पश्चात् , इस काव्य को नाट्यरूप में गानेवाले गायकों कि किया, एवं वर्षों तक वे उसे गाते रहे। किंतु अंत में | खोज वाल्मीकि ने की थी:इस काव्य को लिपिबद्ध करने का कार्य भी स्वयं वाल्मीकि चिन्तयामास को न्वेतत् प्रयुञ्जादिति प्रभुः॥ ने ही किया, जो 'वाल्मीकि रामायण' के रूप आज भी पाठ्ये गेये च मधुरं प्रमाणेनिभिरन्वितम् | वर्तमान है। जातिभिः सप्तभिर्युक्तं तंत्रीलय-समन्वितम् ॥ इसीसे ही स्फूर्ति पा कर भारत की सभी भाषाओं में (वा. रा. बा. ४.३, ८)। रामकथा पर आधारित अनेकानेक ग्रन्थों की रचना हुई, जिनके कारण वाल्मीकि एक प्रातःस्मरणीय विभूति बन (रामायण की रचना करने के पश्चात् , इस महाकाव्य गयाः के साभिनय गायन का प्रयोग त्रिताल एवं सप्तजाति में
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy