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वारुणि
स्वीकार किया, जिस कारण इन्हें ' वारुणि ' पैतृक नाम प्राप्त हुआ ।
४. वानरों का एक राजा ( ब्रह्मांड. ३.७.२३४ ) । वारुणी -- स्वायंभुव मन्वन्तर के वरुण की पत्नी । २. अरण्य प्रजापति की कन्या, जो चक्षुष राजा की पत्नी, एवं चक्षुष मनु की माता थी ( ब्रह्मांड, २३६. १०२-१०४)।
वार्कल अथवा वार्कलिन -- एक आचार्य (श. ब्रा. १२.३.२.६ ) । वृकला का वंशज होने से इसे यह मातृक नाम प्राप्त हुआ था । ऐतरेय आरण्यक में इसे 'वार्कलिन्' कहा गया है, किन्तु वह अशुद्ध रूप प्रतीत होता है ( ऐ. आ. ३. २.२ ) ।
प्राचीन चरित्रकोश
वारुणीपुत्र एक आचार्य, जो आर्तभागीपुत्र नामक आचार्य का शिष्य था । इसके शिष्य का नाम वारुणीपुत्र (द्वितीय) था (बृ. उ. ६.४.३१ माध्यं. ) ।
वारुणीपुत्र (द्वितीय) - - एक आचार्य, जो वारुणीपुत्र ( प्रथम ) का शिष्य था । इसके शिष्य का. नाम पाराशरीपुत्र था (बृ. उ. ६.५.२ काण्व . ) ।
वाक्ष -- प्रचेतस् पत्नी मारिषा का पैतृक नाम । वाजिनीवत --वाहि नामक यादव राजा का पैतृक नाम । वृजिनवत् नामक राजा का पुत्र होने से उसे यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ था ।
वार्धक्षत्र -- सौवीर देश के जयद्रथ राजा का नामांतर (म. व. २४८.६ ) ।
वार्धक्षेमि-- पांचाल देश के सुशर्मन् राजा का पैतृक नाम (सुशर्मन् ३. देखिये) । वृद्धक्षेम राजा का पुत्र होने कारण, उसे यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ था । २. त्रिगर्त देश के सुशर्मन् राजा का पैतृक नाम (म. उ. १६८.१६; सुशर्मन् १. देखिये) ।
वार्षगण - असित नामक आचार्य का पैतृक नाम (बृ. उ. ६.४.३३ माध्यं . ) । वृषगण का वंशज होने के कारण, उसे यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा ।
वार्षगणीपुत्र एक आचार्य, जो गौतमीपुत्र नानक आचार्य का शिष्य था । इसके शिष्य का नाम शालंका - यनीपुत्र था । वृषगण के किसी स्त्रीवंशज का पुत्र होने से, इसे यह नाम प्राप्त हुआ होगा।
वालखिल्य
२. सुश्रवस् नामक राजा का पैतृक नाम ( सुश्रवस् वार्षगण्य देखिये) ।
वार्षागिर -- एक पैतृक नाम, जो ऋग्वेद में निम्नलिखित राजाओं के लिए प्रयुक्त किया गया है :- अंबरीप, ऋज्राश्व, भयमान, सहदेव एवं सुराधस् (ऋ. १.१००.. १७) । वृषागिर के वंशज होने के कारण, उन्हें यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा ।
वार्ष्टिहव्य--उपस्तुत नामक वैदिक सूक्तद्रष्टा का पैतृक नाम (ऋ. १०.११५ ) ।
वार्ष्ण-- एक पैतृक नाम, जो निम्नलिखित आचायों के लिए प्रयुक्त किया गया है :- १. गोयल ( तै. ब्रा. ३. ११.९.३; जै. उ. बा. १.६.१ ); २. बर्कु (श. बा. १.१.१. १०; बृ. उ. ४.१.८ माध्यं . ); ३. ऐश्वाक (जै. उ. बा. १.५.४ ) । ' वृषन्', 'वृष्णि' अथवा 'वृष्ण के वंशज होने से, उन्हे यह पैतृकनाम प्राप्त हुआ होगा।
वार्ष्णायन --- धूम्रपराशरकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । वाणिबुद्ध-- उल नामक आचार्य का पैतृक नाम ( कौ. ब्रा. ७.४ ) । वृष्णिवृद्ध का पुत्र होने से, इसे यह नाम प्राप्त हुआ होगा ।
वार्ष्णेय शूप नानक आचार्य का पैतृक नाम ( तै. ब्रा. ३.१०) । वृष्णि का वंशज होने से, उसे यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा ।
२. निषधराज नल राजा का सारथी । नल के वनवास के समय, यह ऋतुपर्ण राजा का सारथी बना था ।
वार्षगण्य - एक आचार्य, जिसका एक सांख्ययोगाचार्य के नाते निर्देश प्राप्त है ( व्यासकृत योगशास्त्रमाप्य ४. ५३) । जैमिनिकृत उपकर्मागतर्पण में इसका निर्देश प्राप्त है (जै.. १.१४ ) ।
वार्ण्य - एक आचार्य, जिसका याज्ञवल्क्य के साथ 'देवयजन' के संबंध में संवाद हुआ था (श. ब्रा. ३.१. १.४ ) । इसे 'वा' नामान्तर भी प्राप्त था ।
वायणि -- एक वैय्याकरण, जिसका निर्देश एक पूर्वाचार्य के नात यास्क के ' निरुक्त' में प्राप्त है (नि. १.२)।
वालखिल्य - एक ऋषिसमुदाय, जो अंगुष्ठ के आकार के साठ हज़ार ऋषियों से बना हुआ था । प्रजा उत्पन्न करने के लिए तपस्या करनेवाले प्रजापति के केशों से ये उत्पन्न हुए थे ( तै. आ. १.२३.३ ) ।
वैदिक साहित्य में ऋग्वेद में वालखिल्य नामक ग्यारह सूक्त हैं (ऋ. ८.४९ -- ५९ ), जिनका निर्देश ब्राह्मण ग्रंथों में ऋग्वेद के परिशिष्टात्मक सूक्तों के नाते से किया गया है ( ऐ. बा. ५.१५.११ ३; कौ. व्रा. ३०.४.८९ पं. बा. १३.११.२, ऐ. आ. ५.२.४ ) । तैत्तिरीय आरण्यक में इन सूक्तों के प्रणयन का श्रेय इन्हीं ऋषियों
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