SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 849
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वायु प्राचीन चरित्रकोश वारुणि २३)। इसी कारण, इसे 'नियुत्वत्' (एक दल के द्वारा। ३. एक राजा, जो क्रोधवश नामक दैत्य के अंश से खींचा जानेवाला) कहा गया है। उत्पन्न हुआ था (म. आ. ६१.५८)। भारतीययुद्ध में अन्य देवों की भाँति यह भी सोमप्रेमी था, एवं सभी यह पाण्डवों के पक्ष में शामिल था। देवों में क्षिप्र' होने के कारण, यह सर्वप्रथम अपना वायुहन--मंकणक ऋषि का एक पुत्र । पेयभाग प्राप्त करता था (श. ब्रा. १३.१.२)। वाय्य सत्यश्रवन--एक वैदिक आचार्य (ऋ. ५. एक बार सोम प्राप्त कराने के लिए देवताओं में होड़ ७९.१०२)। वय्य का वंशज होने से इसे 'वाय्य लगी, जिस समय यह एवं इंद्र क्रमशः प्रथम एवं द्वितीय पैतृक नाम प्राप्त था। पहुँच गये (ऐ. बा. २.२५)। इस पर अनुग्रह करने के लिए, आत्रेय सत्यश्रवस इसकी उपासना करने से यश,संतान एवं संपत्ति प्राप्त नामक ऋषि के द्वारा उषस् की प्रार्थना की गयी थी। होती है (ऋ. ७.९०)। यह शत्रुओं को भगाता है एवं वारकि-कंस नामक आचार्य का पैतृक नाम (जै. निर्बलों की रक्षा करता है (ऋ. १.१३४)। उ. ब्रा. ३.४१.१)। पुराणों में--इन ग्रन्थों में इसे वायुतत्त्व की देवता वारक्य-जैमिनीय उपनिषद् ब्राह्मण में निर्दिष्ट एक कहा गया है, एवं इसका जन्म आकाश से होने का निर्देश | पैतृक नाम, जो निम्नलिखित आचार्यों के लिए प्रयुक्त प्राप्त है । यह भूवर्लोक का अधिपति था, इस कारण इसे है:- कंस, कुवेर, जनश्रुत, जयंत एवं प्रोष्ठपद (जै. उ. 'भुवस्पति' एवं 'मातरिश्वन्' नामान्तर प्राप्त थे। शाकद्वीप ब्रा. ३. ४१.१) । 'वरक' का वंशज होने के कारण, में प्राणायाम के द्वारा इसकी उपासना की जाती थी। इन आचार्यों को यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा। (भा.५.१५.१५) मत्स्य में कृष्णमृग पर सवार हुए वारण--(सो.अन.) एक राजा, जो मत्स्य के इसकी प्रतिमा के पूजन का निर्देश प्राप्त है (मत्स्य, | अनुसार चंप राजा का, एवं वायु के अनुसार चित्ररथ २६१.१९)। राजा का पुत्र था। परिवार--पुराणों में इसके अंश से उत्पन्न हुए, निम्न वाराह--श्रीविष्णु के वराह नामक तृतीय अवतार लिखित संतानों का निर्देश प्राप्त है :-१. इला (भा. का नामान्तर (भा. ११.४.१८; वराह देखिये)। ४.१०.२); २. मुदा नामक अप्सरासमूह; ३. भीमसेन २. एक असुर (मत्स्य. १७२)। पाण्डव; ४. 'मनोजव' हनुमत् (विष्णु. १.८.११)। वाराहि-अंगिराकुलोत्पन्न गोत्रकारद्वय । २. एक आचार्य, जो मृत्यु नामक आचार्य का शिष्य वाराही--सात मातृकाओं में से एक, जिसका वाहन था। इसके शिष्य का नाम इंद्र था (द. बा. २)। बैल था (ब्रह्मांड. ४.१९.७)। ३. एक राक्षस, जो वायु के अनुसार अनुहाद नामक | वारिप्लव-स्वत मन्वन्तर के 'पारिप्लव' नामक • राक्षस का पुत्र था (वायु. ६३.१२)।। वायुवक-मंकणक ऋषि के सात पुत्रों में से एक देवगण का नामान्तर । वारिषेण--यमसभा में उपस्थित एक राजा (म. स. (मंकणक देखिये)। २. युधिष्ठिर की सभा का एक ऋषि (म.स.४.११ ।। ८.१८) । पाठभेद-वारिसेन'। वायुज्वाल एवं वायबल-मंकणक ऋषि के त्र। | वारिसार--(मौर्य. भविष्य.) एक राजा, जो भागवत वायभक्ष--एक ब्रह्मर्षि, जो युधिष्ठिर की सभा में | के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य राजा का पुत्र, एवं अशोकवर्धन उपस्थित था (म. स. ४.११; शां. ४७.६६%)। हस्ति- | राजा का पिता था. (भा. १२.१.१३)। नापुर जानेवाले श्रीकृष्ण से इसकी भेंट हुई थी (म.उ. वारुणि--धमेसावर्णि मन्वन्तर का एक ऋषि। ३८८.८%)। . २. एक पक्षिराज, जो कश्यप एवं विनता के पुत्रों में वायुमंडल एवं वायरतस्--मंकणक ऋषि के पुत्र। | से एक था। वायुवेग--मंकणक ऋषि के सात पुत्रों में से एक।। ३. एक पैतृक नाम, जो अगस्त्य, भृगु एवं वसिष्ठ आदि इसके नाम के लिए 'वातवेग' पाठभेद भी प्राप्त है। | ऋषियों के लिए प्रयुक्त किया जाता है (ऐ.बा. ३.३४. २. (सो. कुरु.) धृतराष्ट्र के शतपुत्रों में से एक, जो | १; श. ब्रा. ११.६.१.१)। ब्रह्मा के यज्ञ में से ये सारे द्रौपदीस्वयंवर में उपस्थित था (म. आ. १७७.२)। ऋषि उत्पन्न होने पर, वरुण ने इनका पुत्र के रूप में ८२७
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy