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________________ वसिष्ठ 'छा गया, जिस समय उसके न होते हुए भी इसने बारह वर्षों तक हस्तिनापुर के राज्य का कारोबार योग्य प्रकार से चलाया (म. आ. १६० - १६४ ) । तारकामय युद्ध के बाद, सृष्टि में महान अकाल आ गया, जिस समय इतने फल - मूल - औषधि आदि का निर्माण कर देव, मनुष्य एवं पशुओं के प्राणों की रक्षा की ( ब्रह्मांड. ३.८. ८९.९०; म. शां. २२६.२७; अनु. १३७.१३ ) । वसिष्ठ हिरण्यनाभ कौशल्य-- एक आचार्य, जो जैमिनि नामक आचार्य का शिष्य था । जैमिनि ने इसे वेदों की पाँच सी संहिताएँ सिखायी थी, जो आगे चल कर इसने अपने वाशवल्क्य नामक शिष्य को प्रदान की (बावु ८८.२०७ ) । प्राचीन चरित्रकोश बलिष्ठपुत्र ऋषि के कर्ज नामक पुत्र का का नामान्तर, जो सप्तर्षियों में से एक था ( वायु. ६२.१६) । यसु प्राचेतस दक्ष की कन्या, जे धर्म ऋषि की पानी थी । विभिन्न कल्पों में इसने अनेकानेक अवतार लिये, जिस कारण इसे विभिन्न नाम प्राप्त हुए । महाभारत में प्राप्त इसके विभिन्न नाम निम्नप्रकार हैं:-१. शांडिल्या २२. रा ४ धूम्रा ५. प्रभाता ६. मनखिनी । इन मुओं को अनेकानेक पुत्र हुए, जो बसु नामक उत्पन्न देवता समूह कहलाते है (भा. ६.६.४; ब्रह्मांड. २.९.५०; वसु. २.. देखिये )। २. एक देवतासमूह जिसकी संख्या आठ होने के 'कारण ये ' अष्टवसु ' नाम से प्रसिद्ध हैं ( ऐ. बा. २.१८; श. ब्रा. ४.५,७ ) । तैत्तिरीय संहिता में इनकी संख्या ३३३ दी गयी हैं (रा.सं.५०५२) । वेद में देवताओं का त्रिपदीय विभाजन निर्देशित है, जहाँ वसु, रूद्र एवं आदित्यों को क्रमशः पृथ्वी, अंतरिक्ष एवं स्वर्ग में निवास करनेवाले देव कहा गया है (७.२६.१४ ) | ब्राह्मणांथों में बसु, रुद्र एवं आदित्यों की संख्या क्रमशः आठ, ग्यारह एवं बारह बतायी गयी है। इन्हीं देवों में यो एवं पृथ्वी मिल्दा कर देवों की कुल संख्या तैतीस बतायी गयी है । धनु वैवस्वत मन्वन्तर के सात देवतासमूह में इनका निर्देश प्राप्त है ( मत्स्य. ५. २०-२१; ९.२९ ) । वैदिक ग्रंथों में तथा पुराणों में, अग्नि को वसुओं का नायक बताया गया है ( ब्रह्मांड. २. २७ २४ मत्स्य. ८.४) । देवासुर संग्राम में इन्होंने कालेय नामक दैत्यों से युद्ध किया था ( भा. ८. १०.३४ ) । इन्हें साध्य देवों के बन्धु कहा गया है, एवं वसिष्ठ ऋषि से इन्हें लैंगिक समागम से पुनः जन्म प्राप्त होने का शाप प्राप्त हुआ था । अष्टवसु-पुराणों में अष्ट नाम निम्नप्रकार दिये गये हैं:-१. अनल २. अनिल २. अप् ४. घर: ५. लव ६ प्रत्यूष प्रभासः ८. सोम - परिवार अश्वमुओं की माता, पनियाँ एवं पुत्र आदि के बारे में विस्तृत जानकारी महाभारत एवं पुराणों में प्राप्त है (४. ८१२ पर दी गयी 'अनुवसुओं का परिवार की तालिका देखिये) । " भागवत में इस ग्रंथ में अतुओं के नाम एवं परिवार के संबंध में अन्य सारे पुराण एवं महाभारत से विभिन्न जानकारी प्राप्त है, जो निम्नप्रकार है: बस ( १ ) द्रोण ( २ ) प्राण ( ४ ) अर्क (५) अग्नि (६) दोष (७) वसु पत्नी अभिमति ऊर्जस्वती धरणि वासना बसोरा कृतिका शर्वरी आंगिरसी ८) विभावसु उपा पुत्र हर्ष, शोक, भय । सह आयु पुरोजव पुरस्थ देवता । वर्ष । द्रविणक, कंद, विशाख । शिशुमार विश्वकर्मन् न्युट, रोचिए, आठप पंचयाम | भा. ६.६.११-१६ ) । ३. वैवस्वत मन्वन्तर का देवगण | ४. प्रतर्दन देवों में से एक । ५. आय देवों में से एक। पौराणिक साहित्य में इन ग्रंथों में बतओं को धर्म एवं वसु के पुत्र माने गये हैं । किन्तु वहाँ वसु एक स्त्री न हो कर कल्पभेदानुसार अनेकानेक स्त्रियाँ मानी गयी हैं ( भा. ६.६.१०; ब्रह्मांड. २.३८.२; वसु १. देखिये ) ऐश्वर्यप्राति के लिए वसुओं की उपासना की जाती है ( भा. २.३.३ ) । ये वासुदेव के अंश माने जाते हैं, एवं । का ६. दस विश्वेदेवों में से तीसरा देव । यह भृगु ऋषि पुत्र था ( मत्स्य. १९५.१३) । | ७. ब्रह्मभ्यो अनि का नामान्तर पाठभेद' वमुधाम' ( ब्रह्मांड. २.१२.४३ ) । ८११
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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