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वसिष्ट
प्राचीन चरित्रकोश
वसिष्ठ
तथा ब्रह्मा की इच्छा से, उर्वशी को देख कर स्खलित हुए भीष्मपंचक व्रत किया था (पा. उ. १२४)। यह एक मित्रावरुणों के वीर्य से यह कुंभ में उत्पन्न हुआ (वा. रा. व्यास भी था (व्यास देखिये)। उ. ५७; मत्स्य. ६०.२०-४०; २००)।
__ परिवार--ऋग्वेद के अनुसार, इसे शक्ति नामक
एक पुत्र था (ऋ. ३.५३.१५-१६)। उसी ग्रंथ में विश्वामित्र से शत्रुत्व—एक बार विश्वामित्र ऋषि इसके
अन्यत्र शतयातु एवं पराशर को क्रमशः इसका पुत्र एवं आश्रम में इसे मिलने आया । कामधेनु की सहायता से | A
| पौत्र कहा गया है (ऋ. ७.१८. २१)। विश्वामित्र का उत्कृष्ट आतिथ्य वसिष्ठ ने किया । तब
___पुराणों में प्राप्त जानकारी के अनुसार, वसिष्ठ के पुत्र उसने कामधेनु माँगी। किन्तु इसने अनाकानी की, तब
का नाम शक्ति, एवं पौत्र का नाम पराशर शाक्त्य था, उसने कामधेनु को जबरदस्ती ले जाने का प्रयत्न किया।
| जो कृष्ण द्वैपायन व्यास का पिता था। परंतु धेनु के शरीर से शक, पल्लव इत्यादि म्लेंच्छ उत्पन्न
इन्हीं ग्रंथों में वसिष्ठ की पत्नी का नाम कपिजली हुए, जिन्होंने विश्वामित्र को पराजित किया। पराजित हो जाने के उपरांत, विश्वामित्र ने यह अनुभव किया कि,
घृताची दिया गया है, जिससे इसे इंद्रप्रमति ( कुणि
अथवा कुणीति ) नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था। इंद्रप्रमति क्षत्रियबल की अपेक्षा ब्राह्मणबल श्रेष्ठ है, तथा तपश्चर्या |
को पृथु राजा की कन्या से वसु नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, करना आरंभ किया। विश्वामित्र ने वसिष्ठ से ब्रह्मर्षि
जिसके पुत्र का नाम उपमन्यु था। इस प्रकार वसिष्ठ, कहलाने का काफी प्रयत्न किया था। उक्त कथा संभवतः
शक्ति, वसु, उपमन्यु एवं अन्य छ: वसिष्ठ के वंशजों से वसिष्ठ देवराज की होगी।
'वसिष्ठवंश' का प्रारंभ हुआ। .. बाद में क्रोध से विश्वामित्र ने वसिष्ठ के सौ पुत्र वसिष्ठ वैडव-एक आचार्य, जिसने 'वासिष्ठ साम' राक्षसों के द्वारा भक्षण करवाये। इससे यह जीवन
नामक साम की रचना कर, सुखसमृद्धि एवं ऐश्वर्य प्राप्त से विरक्त हो कर नदी में प्राण देने गया, किन्तु बच
किया (पं. बा. ११.८.१४)। वीड का पुत्र होने के गया। इसीलिए उस नदी को विपाशा नाम दिया | कारण, इसे 'वैडव' पैतृक नाम प्राप्त हुआ था। गया (म. व. १३०.८-९)। क्यों कि, उस नदी ने
वसिष्ठ श्रेष्ठभाज-एक ऋषि, जो अयोध्या के. बसिष्ठ को पाशमुक्त कर के उसे बचाया था, उसे शतद्रु
मित्रसह कल्माषपाद राजा का पुरोहित था (म. आ. १६७. नाम प्राप्त हुआ। उसे यह नाम क्यों प्राप्त हुआ
१५,१६८.१०)। महाभारत में अन्यत्र इसे 'ब्रह्मकोश' उसका कारण यही है कि, जब यह शतद्रु (आधुनिक
उपाधि प्रदान की गई है। सतलज नदी ) में व्याकुल होकर कूद पड़ा, तब वह नदी
___कल्माषपाद राजा ने एक दुष्टबुदि राक्षस के वशीभूत इसे अग्नि के समान तेजस्वी समझ कर सैकडों धाराओं
हो कर इसे नरमांसयुक्त भोजन खिलाया, जिस कारण में फूट कर इधर उधर भाग चली । शतधा विद्रुत होने से :
न इसने उसे नरमांसभक्षक होने का शाप दिया । बारह उसका नाम 'शतद्र' हुआ (म. आ. १६७.९)।
| वर्षों के पश्चात् कल्माषपाद राजा शापयुक्त हुआ। तत्पश्चात् वसिष्ठ ने जब विश्वामित्र पर सौ पुत्रों के समाप्त करने
इसने उसकी पत्नी मदयन्ती को अश्मक नामक पुत्र का आरोप लगाया, तब पैजवन के समक्ष शपथपूर्वक
उत्पन्न होने का वर दिया (ब्रह्मांड. ३.६३.१५ वा. रा. उसने यह बात अमान्य की (मनु. ८.१०)। किन्तु
सु. २४.१२)। कालदृष्टि में यह कथा असंगत प्रतीत होती है (शक्ति
वसिष्ठ सुवर्चस्--एक ऋषि, जो हस्तिनापुर के देखिये)।
संवरण राजा का पुरोहित था (म. आ. ८९.३६-४०)। व्रतवैकल्य--कक्षसेन ने इसे अपनी संपत्ति दी थी यह सुदास राजा के पुरोहित वसिष्ठ ऋषि का पुत्र था, (म. अनु. २००.१५. कुं.)। इसने पक्षवर्धिनी एकादशी एवं इसके भाई का नाम शक्ति था। का व्रत किया था (पन. उ. ३६)। इसने बकुला-संगम पांचाल देश के राजा सुदास ने संवरण राजा को राज्यपर परमेश्वर की सेवा की थी (पद्म. उ. १३९)। इन्द्र- भ्रष्ट किया। तदुपरान्त वसिष्ठ की सहाय्यता से ऋक्षपुत्र प्रस्थ के सप्ततीर्थ के प्रभाव से इसे महापवित्र पुत्र हुए। संवरण ने पुनः राज्य प्राप्त किया, एवं इसीकी सहाय्यता थे (पद्म. उ. २२२)। ब्रह्मदेव के पुष्करक्षेत्र के यज्ञ में से विवस्वत् की कन्या तपती से उसका विवाह हुआ (म. यह होतृगणों का ऋत्विज था (पद्म. स. ३४)। इसने आ. १८०)। कालोपरान्त संवरण के.राज्य में अकाल