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________________ प्राचीन चरित्रकोश आपस्तंव शरावती नदी के उत्तर की ओर, आंध्र देश में रहता होगा । उसी प्रकार, ऐसा उल्लेख है कि, पल्हव राजाओं ने आपस्तंबी लोगों को काफी भेंट ( देन ) दी ( I. A. v. (155) | इससे प्रतीत होता है कि, आपस्तंची शाखा आंध्र देश के आसपास निकली होगी । आपस्तंच कल्पसूत्र के (२८.२९) दो प्रश्न ही आपस्तंब धर्मसूत्र हैं । उसी प्रकार २५ तथा २६ इन दो प्रश्नों का एकत्रीकरण कर, उसे आपस्तंबीय मंत्रपाठ नाम दिया गया है। कल्पसूत्र के २७ वै प्रभ को आपस्तंचरा यह नाम है । आपस्तंत्र के गृह्यसूत्र तथा धर्मसूत्र में काफी साम्य है। आपस्तंत्रधर्मसूत्र में आचार, प्रायश्चित, ब्रह्मचारी के कर्तव्य तथा उनके व्यवहार के नियम, यज्ञोपवीतधारण के संबंध में नियम, श्राद्ध प्र. के संबंध में जानकारी दी गई है। उसी प्रकार बेटों के छः अंगों का भी विचार किया है। इसने सिद्ध किया है कि, कल्पसूत्र वेद न हो कर वेदांग ही है (आप. धर्म. २.४.८१२ ) । ब्राह्मणग्रंथ नष्ट हो गये हैं । प्रयोग से, वैसे ब्राह्मणग्रंथ होने चाहियें ऐसा इसका कथन है (आप. धर्म. १.४.१२ - १० ) ) आपस्तंच ने संहिता, ब्राह्मण तथा निरुल के कुछ उद्धरण लिये हैं। अपने धर्मसूत्र में कण्वपुष्करसादि दस धर्मशास्त्रकार, बौधायन एवं हारीत इनके भी मत इसने अनेक बार दिये हैं। संसार की उत्पत्ति तथा प्रलय के संबंध में भविष्यपुराण में दिये मत का आपस्तंत्र धर्मसूत्र में उलेख है तथा अनुशासन पर्व ( ९०.४६ ) का एक श्लोक इसने लिया है। आपस्तंत्र ने अपने धर्मसूत्रों में जैमिनि की पूर्वमीमांसा में से बहुत से मत एवं पारिभाषिक शब्दों का उपयोग किया है। आपस्तंव धर्मसूत्र का उल्लेख, शबर, ब्रह्मसूत्र के शांकरभाष्य, विश्वरूप का व्यवहार, मिताक्षरा एवं अपरार्क, इन ग्रंथों में किया गया है। आपस्तं धर्मसूत्र के कितने ही मत पूर्ववर्ती धर्मशास्त्रकारों के विरुद्ध हैं। आपस्तंत्र के मतानुसार नियोग त्याज्य है उसी प्रकार पैशाच तथा प्राजापत्य इन दो विवाह विधियों को, इसकी पूर्ण सम्मति है । इसके मतानुसार किसी भी प्रकार के मांस का भक्षण करने में कोई आपत्ति नहीं है। आपस्तंच धर्मसूत्र पर हरदत्त ने उज्ज्वला वृत्ति नामक टीका की है। आपस्तंब धर्मसूत्र में अध्यात्म विषयक दो पटलों पर शंकराचार्य का भाष्य हैं (१.८. २२-२३ )। अभिप्रतारिण आपस्तंब धर्मसूत्र से मित्र आपस्तंवस्मृति नामक २०७ श्लोकों का एक ग्रंथ, जीवानंद ने प्रकाशित किया है। आनंदाश्रम में प्रकाशित स्मृति में, दस अध्याय है। इस ग्रंथ में प्रायश्चित्त पर विचार किया गया है। स्मृतिचंद्रिका तथा अपरार्क ग्रंथों में इसके उद्धरण कई बार आये हैं । स्मृतिचंद्रिका में स्तोत्रापस्तंत्र नामक एक ग्रंथ का उल्लेख है। ६० र. बुल्हर ने इसका समय खि. पू. ३०० के पूर्व नहीं रहा होगा, ऐसा निश्चित किया है, परंतु तिलकजी ने इसका समय इससे भी पहले का माना है । ( गी. पृ. ५६१ ) । वैद्य ने आपस्तं श्रौतसूत्र का समय खि. पृ. १४२० निश्चित किया है, परंतु काणे रिल. पू. ६००-३०० मानते हैं । । आपस्तंवि अंगिराकुल का एक गोत्रकार । २. भृगुकुल का एक गोत्रकार । यह ब्रह्मर्षि था (म.व. २९९ १८ मत्स्य ७ ) । आपस्थूण बसि गोत्र का एक ऋषि गण -- आपिशलि -- एक व्याकरणकार संधि के विषय में लिखते समय पाणिनि ने इसका गौरव के साथ उल्लेख किया है (६. १. ९२) । इसने आपिशंलि नामक एक ग्रंथ लिखा (C.C.) उसमें प्राप्त, वर्णन का उल्लेख काशिका ( ७.३.९५.) एवं कैयट (५.१.२१ ) में भी प्राप्त है। काशिकाकार तथा तथा केवट ने यह ग्रंथ देखा होगा। २. भृगुकुल का एक ब्रह्मर्षि ।. आपिशी - भृगुकुल का एक गोत्रकार । अपिशली ऐसा पाठ है। आपूरण-- कद्रपुत्र । आपोद -- धौम्य का पैतृक नाम ( धौम्य देखिये) । आपोमूर्ति ( अपांमूर्ति) ब्रह्मसावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ।' आपोलव-- ( आंध्र भविष्य ) ब्रह्मांडमत में शातकर्णीपुत्र | आप्त- बहूपुत्र । आपत्य त्रित, द्वित एकत तथा भुवन देखिये। आप्यचाप मन्वंतर का देव । - आप्यायन ( स्वा. प्रिय.) यशवाह के सात पुत्रों में से छठवां इसका संवासर इसी के नाम से चालू है। आप्सवमन देखिये। अभिप्रतारिण -- वृद्धद्युम्न देखिये ।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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