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________________ आदिवराह प्राचीन चरित्रकोश आपस्तंब चौथा पुत्र। आदिवराह--हिरण्याक्ष को मारने के लिये वर्तमान २. वरुण की पत्नी । परंतु इसे अग्नि से पृथ्वी तथा कल्पारंभ में हुआ अवतार । इसे श्वेतवराह भी | आकाश ये दो संताने हुई (तै. सं. ५.५.४)। कहते हैं। आप--अबसु का नाम । आद्य--रैक्तमनु का देवगण (मनु देखिये)। २. स्वारोचिष मन्वन्तर में वसिष्ठपुत्र प्रजापति । २. चाक्षुष मन्वंतर का देव। ३. धर्म तथा बसु का पुत्र । इसके पुत्र वैतंड्य, शांत ३. विश्वामित्र कुल का एक गोत्रकार । यह उपरिचर | तथा ध्वनि (विष्णु. १.१५)। वसु के सोलह ऋत्विजों में एक था। आपगव--औपगव देखिये। आधूर्तरजस्--गय राजा का पिता । अमूर्तरय भी आपमूर्ति--स्वारोचिष मनु का पुत्र । पाठ है । ( म. व. ९३.१७; अमूर्तर यस् ( ३.) देखिये )। आपव वसिष्ट-- वसिष्ठकुल में से एक । इसे आनक--(सो. यदु.) शूर को गरिषा से उत्पन्न वरुणपुत्र कहा गया है (ब्रह्मांड. ३.६९. ४२; वायु. ९४. ४३,९५.१-१३)। हिमालय के पास यह रहता था । कार्त वीर्य के हाथ से इसकी पर्णकुटी जली, इसलिये इसने उसे इसे कंका नामक स्त्री से पुरुजित् एवं सत्यजित् , ऐसे शाप दिया था ( कार्तवीय देखिये)। इसकी कुटी मेरु दो पुत्र हुए। पर्वत के पास थी ऐसा कहीं कहीं उल्लेख मिलता है । आनकदुंदुभि--(सो. यद.) कृष्ण के पिता वसुदेव अष्टवसु इसकी कामधेनु सुरभि को चुराकर ले गये, इस का नाम । इनके जन्म के समय देवताओं ने दुंदुभि बजाई, लिये तुम मत्यलोक में जन्म लो, ऐसा इसने उन्हें शाप इसलिये यह नाम पडा। दिया। इसीके उशाप के कारन, भीष्म को छोड, अन्य आनंद-गालव्यकुलोत्पन्न एक ब्राहाण । इसने | सबको गंगा ने पानी में डुबाया (म. आ. ९३)। ब्रह्माजी का अधिकार धारण कर नवीन यज्ञबद्धति, विवाह आपस्तंब--भृगकुलोत्पन्न एक ब्रताल। यह तैत्तिरीय पद्धति तथा वर्णाश्रमपद्धति स्थापित की (वायु. २१.२६; शाखा का था। कश्यप ने दिति के द्वारा पुत्रकामेष्टि यज्ञ २३.४६ ) । इसके मानस पुत्र विराट ने इसके पश्चात् करवाया, उसमें यह आचार्य था । उसी इष्टि से मरुद्गण राज्य किया। यह राज्य १३२ वर्ष रहा । इसके पश्चात् उत्पन्न हुए (मस्य.७)। .३०० वर्षों तक प्रजासत्ता-मक राज्य चालू था (दप्तरीकृत __ उसकी स्त्री का नाम अक्षसूत्रा तथा पुत्र का नाम कर्कि धर्मरहत्य, पृष्ठ १५४)। (ब्रह्म. १३०.२-३)। इसके रचित ग्रंथ १. आपस्तंब२. मेघातिथि के सात पुत्रों में से एक । इसी नाम से श्रौतसूत्र, २. आपस्तंबगृह्यसूत्र, ३. आपस्तंबब्राह्मण, इसका संवत्सर है (विष्णु. २.४.४ )। ४. आपस्तं बमंत्रसंहिता, ५. आपस्तंबसंहिता, ६. आप३. सत्य नामक देवगण में से एक । स्तंवसूत्र, ७. आपस्तैवस्मृति, ८. आपस्तंबोपनिषद्, ९. · आनंदज चांधनायन-- शांब का शिष्य । इसका आपस्तंबाध्यात्मपटल, १०. आपस्तंबान्त्येष्टिप्रयोग, शिष्य भानुमत् (वं. बा. १)। ११. आपस्तंबापरसूत्र, १२. आपस्तंबप्रयोग १३. आपआनभिम्लात-- यह दूसरे एक आनभिग्लात का | स्तंबशुल्बसूत्र, १४. आपस्तंवधर्मसूत्र (C.C.)। इसके शिष्य (बृ. उ. २.६.२)। | श्रौतसूत्रों में श्रीत, गृह्य, धर्म, शूल्व, मंत्रसंहिता आदि आनर्त-- (सु. शर्याति.) शर्यातिपुत्र । आनर्त देश | भाग हैं। (गुजरात) इसी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसका पुत्र | इसका नाम याज्ञवल्क्य स्मृति में दिये गये स्मृतिकारों रेवत (दे. भा. २.५)। इसने कुशस्थली नगरी स्थापित | में है । तर्पण में इसका नाम बौधायन के पीछे तथा की (ब्रह्म. ७; ह. वं. १.१०.३२-३३)। सत्याषाढ हिरण्यकेशी के पहले आता है। इससे पता २. (सो. सह.) मत्स्यमतानुसार वीतिहोत्रपुत्र । चलता है कि इसकी शाखा हिरण्यकेशी शाखा के काफी आंतरिक्ष-- एक व्यास (व्यास देखिये)। पहले की होगी। आपस्तंव ने अपने धर्मसूत्र में (२.७. आंध्रभृत्य- (आंध्र. भविष्य.) म स्यमतानुसार १७.१७) उदीच्य लोगों के एक श्राद्ध का उल्लेख किया पुलोमा का पुत्र । है। उदीच्य शब्द का अर्थ हरदत्त ने शरावती नदी के मार-स्वारोचिष मनु का पुत्र । उत्तर की ओर रहनेवाले लोग, ऐसा दिया है। आपस्तंब
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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