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लोहगंध
प्राप्त हुई थी । जनमेजय को ब्रह्महत्त्या के पातक से मुक्त करानेवाले इंद्रोत शौनक ने उसके शरीर की यह दुर्गंधी भी दूर करायी (ब्रह्मांड. ३.६८.२३ - २६; ह. वं. १.३० १०- १४; म. शां १४१.११ ) ।
प्राचीन चरित्रकोश
. लोहलय - - वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । लोहवैरिवसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । लोहिशवक्त्र-स्कंद का एक सैनिक ( म. श ४४.७० ) । लोहित--विश्वामित्र ऋषि के ब्रह्मवादी पुत्रों में से
एक
२. रुद्रसावर्णि मन्वन्तर का एक देवगण ।
३. एकं स्मृतिकार ( C. C.)। ४. एक राजा, जिसे अर्जुन ने उत्तरदिग्विजय के समय जीता था ( म. स. २४.१७ ) ।
५. वरुणसभा का एक नाग ( म. स. ९.८; ११ ) । लोहिताक्ष -- एक ऋषि, जो जनमेजय के सर्पसत्र में स्थपति (वास्तुविद्याविशारद) नामक ऋत्विज था । यज्ञ के लिए भूमि शुद्धि करते समय ही इसने भविष्यवाणी की थी, ‘यह सत्र एक ब्राह्मण के द्वारा जल्द ही बन्द हो जायेगा ('म. आ. ४७.१५; ५१.६, ५३.१२ ) ।
२. ब्रह्मा को द्वारा स्कंद को दिये गये चार पार्षदों में • से एक । अन्य तीन पार्षदों के नाम नन्दिषेण, घण्टाकर्ण, एवं कुमुदमलिन् थे ( म. श. ४४.२१ - २२ ) । लोहितायन -- स्कंद की धाय, जो लालसागर की कन्या थी। इसकी कदंब के वृक्षों पर पूजा होती है (म. . व. २१९.३९) ।
लोहितारण--( स्वा. प्रिय.) एक राजा, जो घृतपृष्ठ राजा के सात पुत्रों में से एक था । इसका वर्ष इसीके ही नाम से प्रसिद्ध था ।
लोहिताश्व -- वसुदेवपुत्र रोहिताश्व का नामान्तर । लौक्य -- बृहस्पति का नामान्तर । 'लोकपुत्र' होने के कारण बृहस्पति को यह नाम प्राप्त हुआ था ( बृहस्पति १. देखिये ) ।
लौहित्य
जो व्यास की सामशिष्य परंपरा में से पौप्यंजि नामक आचार्य का शिष्य था ।
एक स्मृतिकार के नाते से इसका निर्देश मिताक्षरा में प्राप्त है, जहाँ इसके अशौच एवं प्रायश्चित के संबंधी श्लोक उद्धृत किये गये हैं (याज्ञ. ३.१.२ ; २६०; २८९ ) । अपरार्क के द्वारा भी इसके निम्नलिखित विषयों के संबंधी गद्यापद्यात्मक उद्धरण दिये गये हैं: -- संस्कार, वैश्वदेव, चातुर्मास्य, द्रव्यशुद्धि, श्राद्ध, अशौच एवं प्रायश्चित |
योग एवं क्षेम शब्दों की व्याख्या करनेवाला, एवं उन दोनों का अभिन्नत्व प्रस्थापित करनेवाला लौगाक्षि का एक श्लोक प्रसिद्ध है, जो मिताक्षरा आदि धर्मशास्त्र ग्रंथों में प्राप्त है ।
लौक्षि-- अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार | लक्षिण्य -- भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । पाठभेद-' लौगाक्षि ' ।
लौगाक्षि -- एक शतशाखाध्यायी सामवेदी आचार्य,
ग्रंथ - - १, आर्षाध्याय; २. उपनयनतंत्र ३ काटक गृह्यसूत्र; ४. प्रवराध्याय ५. श्लोकदर्पण |
२. लौक्षिण्य नामक भृगुकुलोत्पन्न गोत्रकार का नामान्तर । लौपायन -- एक पैतृक नाम, जो निम्नलिखित आचार्यों लिए व्यवहृत है : - बन्धु (ऋ. ५.२४.१ ); विप्रबन्धु ( ऋ. ५.२४.४ ); श्रुतबन्धु (ऋ. ५.२४.३ ); सुबन्धु (ऋ. ५.२४.२ ) । इस पैतृक नाम का 'गौपायन' पाठभेद भी प्राप्त है।
के
लोमहर्षणि -- रोमहर्षण सूत के सौति नामक पुत्र का नामान्तर (सौति देखिये) ।
लौहवैरिण -- भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । लौहि--अष्टक ऋषि का पुत्र, जो विश्वामित्र ऋषि का पौत्र था ।
२. (शिशु. भविष्य.) एक राजा, जो अजातशत्रु राजा का पुत्र था । लौहित्य -- य-- एक पैतृक नाम, जो जैमिनीय उपनिषद ब्राह्मण में निम्नलिखित गुरु के लिए प्रयुक्त किया गया है:कृष्णदत्त, कृष्णरात, जयक, त्रिवेद कृष्णशत, दक्ष जयन्त, पल्लिगुप्त, मित्रभूति, यशस्विन् जयन्त विपश्चित् दृढजयन्त, वैपश्चित् दार्दजयन्ति, वैपश्चित दाईजयन्ति, दृढजयन्त, श्यामजयन्त, श्यामसुजयन्त, सत्यश्रवस् (जै. उ. ब्रा. ३.४२.१)।
लोहित का वंशज होने से इन आचार्यों को यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा ।
२. एक आचार्य (सां. आ. ७.२२) ।
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