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लोपामुद्रा
काशी के सुविख्यात राजा प्रतर्दन का पौत्र अलर्क को खोपामुद्रा के द्वारा विपुल धनसंपत्ति एवं राज्यश्री प्राप्त होने की कथा पुराणों में प्राप्त है ( वायु ९२,६७: ब्रह्म. ११.५३ ) | आनंद रामायण के अनुसार इसके पास एक ' अक्षय खाली थी, जिससे अपरिमित अन्न की प्राप्ति होती थी ( आ. रा. विवाह. ५ ) ।
प्राचीन चरित्रकोश
लोमश
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यहाँ आया है। काम्यकवन में रहनेवाला युधिष्ठिर अर्जुन के कारण चिंताग्रस्त हो चुका है मैं यही चाहता हूँ कि तुम युधिष्ठिर के पास जा कर अर्जुन का कुशल वृत्तांत उसे बता देना एवं उसके मनवहाब के लिए भारत के अन्यान्य तीर्थों का दर्शन उसे कराना (म. व. ४५.२९३३)।
दक्षिण भारत में-- अगस्त्य ऋषि का सर्वाधिक संबंध दक्षिण भारत से था, जिसको पुष्टि देनेवाली लोपामुद्रा की एक जन्मकथा भागवत में प्राप्त है। इस कथा में इसका निर्देश कृष्णा नाम से किया गया है, एवं इसे मध्य
पाण्ड्य राजा की कन्या कहा गया है। यहाँ इसकी माता का नाम वैदर्भी दिया गया है, एवं इसके सात माईयों को द्रविड देश के राजा कहा गया है। अगस्य ऋषि श्री से इसे हटत नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसके पुत्र का नाम इवाहन था (भा. ४.२८ ) ।
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तीर्थयात्रा - इंद्र की आज्ञानुसार, यह काम्यकवन में आया इसने अर्जुन का कुशलवृत्त युधिडिर को सुनाया, एवं तीर्थयात्रा प्रस्ताव उसके सम्मुख रखा । पश्चात् यह युधिष्ठिर के साथ तीर्थयात्रा करने के लिए निकला। पहले ये महेंद्र पर्वत पर गयें एवं चतुर्दशी के दिन परशुराम का दर्शन कर प्रभासक्षेत्र में गये । वहाँसे यमुना नदी के किनारे ये कैलास पर्वत के पास आ पहुँचे ( म. ब. ८९ - १४० ) ।
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पश्चात् गंधमादन पर्वत की तराई में सुबाहु नामक किराताधिपति का सत्कार स्वीकार कर, इन्होंने गंधमादन पर्वत का आरोहण करना प्रारंभ किया। किन्तु ये दोनों थकने के कारण, भीम ने घटोत्कच की सहाय्यता से इन्हें गं मादन पर्वत पर स्थित नरनारायण आश्रम में पहुँचा दिया ( म.. १४१-१४६ ) ।
लोभ -- ब्रह्मा का एक मानस पुत्र, जो उसके अधरोष्ठ सेपन्न हुआ था (मरस्य २.१०) १ भागवत में इसे अधर्मपुत्र दंभ एवं माया का पुत्र कहा गया है। लोभालोभ -- एक ऋग्वेदी ब्रह्मचारी । लोमगायनि अथवा लोमगायिन एक आचार्य, जो वायु एवं ब्रह्मांड के अनुसार, व्यास की सामशिष्य परंसा में से लांगलि नामक आचार्य का शिष्य था। - लोमपाद - - अंगदेश के रोमपाद राजा का नामान्तर (रोमपाद १. देखिये) ।
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बाद में सत्रह दिनों तक प्रवास कर ये नृपपर्वन् के आश्रम में पहुँच गयें, एवं चार दिनों के उपरान्त आर्ष्टिषेण ऋषि के आश्रम में आयें (म.व. १५५ ) । वहाँ धौम्य ऋषि ने युधिष्ठिर को सूर्य चंद्र की गति के संबंध में जानकारी बतायी ( म. व. १६०) ।
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लोमश -- एक दीर्घजीवी महर्षि, जिसका हृदय धर्म'पालन से विशुद्ध हो चुका था. ( म. व. ३२.११ ) । इसके शरीर पर अत्यधिक लोम (केश ) थे, जिस कारण इसे लोमश नाम प्राप्त हुआ था। इसकी आयु इतनी अधिक थी कि प्रत्येक कान्त के समय इसका केवल एक ही बाल झडता था । एक बार इसने सौ वर्षों तक कमल के फूलों से शिव की उपासना की थी, जिस कारण इसे प्रत्येक कल्प के अन्त में एक एक बाल झडने का, एवं प्रलयकाल के समय मुक्ति प्राप्त होने का आशीर्वाद प्राप्त हुआ था (स्कंद १.२.१३) ।
इंद्र से भेंट -- एकबार घूमते घूमते ह इंद्र के पास पहूँचा। वहाँ इंद्र के पास अस्त्रविद्या के प्रप्ति के लिए इंद्रलोक में आया हुआ अर्जुन इसे दिखाई पड़ा, जो इंद्र के अर्धासन पर विराजमान हुआ था। इंद्र ने लोमश से कहा, 'अर्जुन साक्षात नरनारायण का ही अवतार है, जो कौरवों पर विजय पानेवाले अस्त्रों की प्राप्ति करने के लिए
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इतने में इंद्र की सहाय्यता से अर्जुन गंधमादन पर्वत पर आ पहुँचा ( म. व. १६१.१९ ) । पश्चात् यह युधिष्ठिर एवं अर्जुन के साथ चार वर्षों तक गंधमादन पर्वत पर ही रहा (म.प. १७२.८ ) । पाण्डवों के वनवास के दस साल पूर्ण होने के पश्चात्, लोमश उन्हें पुनः एक बार नरनारायण आश्रम में ले आया । किराताधिपति सुबाहु के घर एक महिने तक रहने के पश्चात्, ये यामुनगिरि पर स्थित विशाखपूप में गयें, एवं बहाँसे द्वैतवन में गयें। वहाँ सरस्वती नदी के किनारे बरसात के चार महिने व्यतीत करने के पश्चात्, पौर्णिमा होते ही, इसने पाण्डवों को काम्यकवन में पहूँचाया, एवं यह स्वयं तपस्या लिए चला गया (म.व. १०८ - १७९ ) ।
आख्यानकथन - - तीर्थयात्रा के समय, लोमश ऋषि ने युधिष्ठिर को अनेक देवता एवं धर्मात्मा राजाओं के आख्यान सुनायें, जिनमें निम्न भाख्यान प्रमुख थे: