SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 792
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राचीन चरित्रकोश - रैवत इस संवाद में एक हंस दूसरे से कहता था, 'जिस प्रकार | २. एक ऋषि, जो विश्वामित्र ऋषि का पुत्र, एवं पाँसों का अंतिम डाव जीतनेवाले को उस खेल के सारे | भरद्वाज मुनि का मित्र था (म. शां. ४९.४९) । महादान प्राप्त होते है, उसी प्रकार सृष्टि के हरएक पुण्य- | भारत में अन्यत्र इसे अंगिरस् ऋषि का पुत्र कहा गया है। वान् व्यक्ति के द्वारा किया गया पुण्यसंचय, गाडी के नीचे इसे अर्वावसु एवं परावसु नामक दो पुत्र थे (म. व. निवाप्त करनेवाले रैक्व ऋषि तक पहुँचता है । । १३५.१२-१३) । भरद्वाज ऋषि के पुत्र यवक्रीत के दुरा हंसों का यह संवाद सन कर, जानश्रति को अत्यंत | चरण से क्रुद्ध हो कर इसने उसका वध किया, जिस पर आश्चर्य हुआ, एवं वह इसे ढूँढते ढूँढते वहाँ तक पहुँच | भरद्वाज ऋषि ने इसे अपने ज्येष्ठ पुत्र के द्वारा वध होने गया, जहाँ खुजली को खुजलाते यह गाड़ी के नीचे बैठा | का शाप दिया। था, राजा ने इसे अनेक गायें, सुवर्ण का रत्नहार, आदि | पश्चात् अपने पुत्र परावसु के द्वारा हिंस्र पशु के धोखे अनेक उपहार देना चाहा, किंतु इसने उनका स्वीकार न | में इसका वध हुआ। किन्तु इसके द्वितीय पुत्र अर्वावसु. कर, अपनी गाडी ही राजा को दान में दे दी। ने अध्ययन से प्राप्त वेदमंत्रो से इसे पुनः जीवित किया पश्चात् जानश्नति ने अपनी कन्या इसे विवाह में दे (म. व. १३९.५-२३; स्कंद ३.१.३३; यवक्रीत देखिये )। दी, एवं इसको प्रसन्न कर इससे तत्त्वज्ञान की शिक्षा ३. (सो. पुरूरवस्.) एक राजा, जो भागवत के पा ली । जानश्रुति ने इसे एक गाँव भी प्रदान किया था, अनुसार, सुमति राजा का पुत्र था। जो महावृष देश में रैक्वपर्ण नाम से सुविख्यात हुआ ४. ब्रह्मा के पुत्रों में से एक। एक बार यह वसु एवं (छां. उ. ४.३.१--२, स्कंद. ३.१.२६)। अंगिरस् ऋषियों के साथ बृहस्पति के पास गया, एवं तत्त्वज्ञान-रैक्व का कहना था कि, इंद्रद्यम्न के | इसने मोक्षप्राप्ति के बारे में अनेकानेक प्रश्न किये। मोक्ष समान समस्त सृष्टि का आदि कारण एवं अदिदैवत वायु | कर्म से नहीं, बल्कि ज्ञान से प्राप्त होता है, यह ज्ञान प्राप्त ही है, जिसमें सृष्टि की सारी वस्तुएँ विलीन होती है। | होने पर यह गया में तपश्चर्या करने लगा, जहाँ सन' इस प्रकार, अग्नि को बुझाने पर वह वायु में विलीन होता | त्कुमारों से इसकी भेंट हुई थी (वराह. ७)। . है; सूर्य एवं चंद्र अस्तंगत होने पर वे भी वायु में अंतर्धान | एक बार इसकी तपस्या में बाधा डालने के लिये उर्वशी होते हैं। उपस्थित हुई, जिसे इसने विरूप होने का शाप दिया। . रक्व का यह तत्त्वजान ग्रीक तत्त्वज्ञ अनॉक्झेमिनीज | पश्चात् उर्वशी के द्वारा प्रार्थना किये जाने पर, इसने उसे के तत्त्वज्ञान से काफी मिलता जुलता है. जिसके | यागिनी-कुंड में स्नान कर पूर्ववत् बनने का उ:शाप दिया. अनुसार वायु को समस्त सृष्टि का आदि एवं अन्त माना | जब से योगिनी-कुंड को 'उर्वशीकुंड' नाम प्राप्त हुआ गया है। वायु के कारण सृष्टि की सारी वस्तुएँ विनष्ट (स्कंद २.८.७)। कैसी हो जाती है, इसका स्पष्टीकरण रैक्व के द्वारा नहीं । ५. एक मुनि, जो वीरण ऋषि का शिष्य था। वीरण दिया गया है। किन्तु जिस प्राचीन काल में, अप एवं से इसे सात्वत धर्म का उपदेश प्राप्त हुआ था, जो इसने अग्नि को सृष्टि का आदि कारण माना जाता था. उस | अपने दिक्पाल कुक्षि नामक पुत्र को प्रदान किया था समय सृष्टि के अन्य वस्तुओं के समान, अप एवं अग्नि | (म. शां. ३३६.१७)। पाठभेद-रौच्य'। स्वयं वायु में ही विलीन होते हैं, यह क्रान्तिदर्शी तत्त्वज्ञान | ६. रैवत मन्वन्तर के भूतरजस् देवगणों में से एक। रैक्व के द्वारा प्रस्थापित किया गया । रैवत-एक राजा, जो पंचम मन्वंतराधिप मनु माना पद्म में भी रैक्व का निर्देश प्राप्त है, जहाँ इसने | जाता है । भागवत के अनुसार, यह प्रियव्रत राजा का जानश्रुति को गीता के छठवे अध्याय के पठन से | पुत्र, एवं तामस राजा का भाई था । विष्णु में इसे प्रियव्रत मनःशान्ति प्राप्त करने का उपदेश प्रदान करने की | राजा का वंशज कह कर, इसके माता एवं पिता के नाम कथा प्राप्त है ( पद्म. उ. १७६ )। क्रमशः रेवती एवं प्रमुच दिये गये हैं (विष्णु ३.१.२४; रैभ्य-एक आचार्य, जो पौतिमाष्यायण एवं कौण्डि- रेवती ४. देखिये)। न्यायन नामक आचार्यों का शिष्य था (बृ. उ. २.५. यह श्रेष्ठ धर्मवेत्ता था, एवं इसने बीजमंत्र का जप कर २०, ४.५.२६)। रेभ का वंशज होने से इसे यह नाम | प्रजा की वर्णाश्रमधर्म के अनुसार पुनर्रचना की थी। प्राप्त हुआ होगा। | मृत्यु के पश्चात् यह इंद्रलोक गया (दे, भा, १०-८) ७७०
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy