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________________ रुशमा प्राचीन चरित्रकोश रेणुका एकबार इंद्र एवं रुशमा में पृथ्वी प्रदक्षिणा के लिए | एक सूक्त का प्रणयन इसने किया है (ऋ. ९. ७०)। शर्त लगी। तदोपरान्त इंद्र ने पृथ्वीप्रदक्षिणा की, एवं | इसे कुशिकगोत्र का मंत्रकार भी कहा गया है। रुशमा ने कुरुक्षेत्र की प्रदक्षिणा की। बाद में विजय | २. (सू. इ.)एक इक्ष्वाकुवंशीय राजा, जिसे प्रसेनजित् , किसका हुआ इस संबंध में निर्णय देते हुए देवों ने कहा, प्रसेन, एवं सुवेणु नामान्तर प्राप्त थे। इसकी कन्या का नाम 'कुरुक्षेत्र ब्रह्मा की वेदि है, जिस कारण समस्त पृथ्वी रेणुका था, जो जमदग्नि ऋषि की पत्नी एवं परशुराम की उंसमें समाविष्ट होती है। अतः विजय दोनों की ही हुई | माता थी (भा. ९.१५.१२; म. व. ११६.२)। है' (पं. ब्रा. २५.१३.३)। रेणुक-एक सत्वगुणसंपन्न नाग, जो रसातल में कई अभ्यासकों के अनुसार, इस कथा का संकेत | रहता था। इसने देवताओं के कहने पर दिग्गजों के पास रुशम ज्ञाति के लोगों की ओर है, एवं उनका कुरुओं के | जा कर धर्म के संबंधी प्रश्न पूछे थे (म.अनु. १३२.२६) साथ संबंध होने का संकेत इस कथा में प्राप्त है। | रेणुका-इक्ष्वाकुवंशीय रेणु (प्रसेनजित् ) राजा की रुशेकु-(सो. क्रोष्टु.) यादववंशीय रशादु राजा का | कन्या, जो जमदमि महर्षि की पत्नी थी (भा. ९.१५.२; नामान्तर । ह. वं. १.२७.३८; म. व. ११६.२)। कई अन्य ग्रंथों में रुशंगु--उशंगु ऋषि का नामान्तर ( उशंगु देखिये)। इसे अनावसु की, एवं विकल्प में सुवेणु की कन्या कहा रुषद्गु--(सो. क्रोष्टु.) यादववंशीय रशादु राजा | गया है (रेणु. ५)। कालिका पुराण में इसे विदर्भ राजा का नामान्तर । की कन्या कहा गया है (कालि. ८६)। इसे कामली रुशद्--यमसभा में उपस्थित एक राजा (म. स. | नामान्तर भी प्राप्त था। ८.१२)। __ जन्म--महाभारत के अनुसार, इसकी उत्पत्ति कमल रुषर्दिक-सुराष्ट्रवंशीय एक कुलांगार राजा, जिसने में हुई थी, एवं इसके पिता एवं भ्राता का नाम अपने दुर्व्यवहार के कारण अपने स्वजन एवं ज्ञाति- क्रमशः सोमप एवं रेणु था (म. अनु. ५३.२७)। सोमप बांधवों का नाश किया (म. उ. ७२.११) । पाठभेद | राजा के द्वारा इसका पालन होने कारण, संभवतः उसे (भांडारकर संहिता)- 'कुशर्द्धिक'। इसका पिता कहा होगा। रेणुकापुराण के अनुसार, रेणु रुषाभानु-हिरण्याक्ष असुर की पत्नी (भा. ७. | राजा ने कन्याकामेष्टियज्ञ किया। उस यज्ञकुण्ड से २.१९)। | इसकी उत्पत्ति हुई (रेणु. ३)। रूपक--एक शिवभक्त राक्षस, जिसके पुत्र का नाम अपने पूर्वजन्म में यह अदिति थी। इसका स्वयंवर संपति था। ये दोनों अन्याय्य मार्ग से संपत्ति प्राप्त कर, भागीरथी क्षेत्र में हुआ, जिस समय इसने स्वयंवर में वह शिव-उपासना के लिए व्यतीत करते थे। इस जमदमि का वरण किया (रेणु. ११)। इसके स्वयंवर के कारण मृत्यु की पश्चात् , शिव के मानसपुत्र वीरभद्र | समय इंद्र ने इसे कामधेनु, कल्पतरु, चिंतामणि एवं पारस ने इन्हें कहा, 'अगले जन्म में तुम चोर बनोगे, किन्तु | आदि विभिन्न मौल्यवान् चीजे भेट में दे दी ( रेणु.१३)। शिवभक्ति के कारण तुम्हारा उद्धार होगा' (पन. पा. | | एक बार जमदग्नि ऋषि बाणक्षेपण का खेल खेल रहे ११५)। थे, जिस समय बाण वापस लाने का काम इस पर सौंपा रूपवती--त्रेतायुग की एक वेश्या, जो देवदास | गया था। एकबार बाण लाने में इसे कुछ देरी हो गयी, नामक एक स्वर्णकार से प्रेम करती थी। वैशाखस्नान | जिस कारण क्रुद्ध हो कर जमदग्नि ने अपने पुत्र परशुराम के कारण, इन दोनों को मुक्ति मिल गयी (पद्म, पा. | से इसका शिरच्छेद करने के लिए कहा (म. अनु, ९५. ९७)। ७-१७)। अपने पिता की आज्ञानुसार, परशुराम ने रूपि-भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । | इसका वध किया, एवं पश्चात् जमदग्नि से अनुरोध कर रूपिन्-अजमीढ नामक सोमवंशीय राजा का पुत्र, | इसे पुनर्जीवित कराया (म. व. ११६.५-१८)। जिसकी माता का नाम केशिनी था। इसके जह्न एवं जन | परिवार-इसे निम्नलिखित पाँच पुत्र थे:-रुमण्वत् , सुषेण, वसु, विश्वावसु एवं परशुराम (म. व. ११६. रेणु-एक आचार्य, जो विश्वामित्र ऋषि का पुत्र था | १०-११)। रेणुकापुराण में ' रुमण्वत् ' एवं 'सुषेण' (ऐ. ब्रा. ७.१७.७; सां. श्री. १५.२६.१)। ऋग्वेद के | के बदले पुत्रों के नाम 'बृहत्भानु' एवं 'बृहत्कर्मन् ' | इसे पुनर्जीवित व नाया। इसके जह्न एवं मिक दो भाई थे ( म ७६८
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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