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आंगरिष्ट
प्राचीन चरित्रकोश
आटिकी
आंगरिष्ट--एक राजर्षि । इसने कामंद ऋषी को शुद्ध ४. शुनक का नामांतर । इसने बभ्र तथा सैन्धवायन धर्मादिकों के संबंध में प्रश्न पूछा था। जिससे चित्तशुद्धि
कों अथर्ववेद सिखाया (भा. १२.७.३)। . होती है वह धर्म, पुरुषार्थ साधन होता है वह अर्थ, तथा आंगिरसी-वसू की पत्नी (भा. ६.६.१५)। देह निर्वाह के लिये इच्छा होती है वह काम, ऐसा उत्तर २. ( शश्वती देखिये)। कामंद ऋषी ने इसे दिया (म. शां. १२३)।
आंगी-अपराचीन पुत्र अरिह की पत्नी। इसका पुत्र आंगि-हविधान आंगि देखिये।
| महाभौम (म. आ. ९०-८९९%)। आंगिरस-अंगिरसवंश के लोगों को यह शब्द कुल
आंगुलय वा आंगुलीय-वायु तथा ब्रह्माण्ड के नाम के तौर पर लगाया जाता है । वंशावलि भी प्राप्त है
मतानुसार, व्यास की सामशिष्य परंपरा के हिरण्यनाभ (छां. उ. १.२.१०पं. बा. २०.२.१; तै. सं. ७.१.४.
| का शिष्य । (व्यास देखिये)। १)। (अंगिरस देखिये)।
___ आंघ्रिक-विश्वामित्र का पुत्र (म. अनु. ७)।
- आचार-कश्यप तथा अरिष्टा का पुत्र । अथर्ववेद का प्रवर्तक अंगिरस है। इसके कुल के
आजकेशिन-इसका प्रतिकार बक ने किया (जै. ऋषियों ने सत्र किया। यज्ञानुष्ठान के लिये दूध निकालने
उ. ब्रा. १.९.३)। के लिये, इन्होंने एक गाय रखी थी। उस गाय का रंग सफेद था। अवर्षण के कारण, उस गाय को हरी घास
आजगर-अयाचित वृत्ति से रहने वाला एक ब्राह्मण । मिलना बंद हो गया। यज्ञ में प्राप्त कूटे हुए सोम के
प्रल्हाद से इसका संवाद हुआ था (म. शां. १७२)। अवशिष्टांश को खा कर, वह दिन बिता रही थी। भूख के
आजद्विष--बम्ब का पैतृक नाम । कारण, उसकी होने वाली दुर्दशा अंगिरस देख नही सकता
आजव--कथाजव के लिये पाठभेद। .. था। गाय के लिये काफी चारा यदि हम निर्माण नहीं
आजातशत्रव--भद्रसेन देखिये। कर सकते, तो सत्र प्रारंभ कर के क्या लाभ ? इस प्रकार
आर्जिहायन--काश्यप गोत्री ऋषिगण । . . के विचार उन्हें कष्ट देने लगे। आगे चल कर इन्होने,
आजीगर्ति--शुनःशेप का पैतृक नाम (ऐ. ब्रा. ७. कारीरि' इष्टि की। उससे भरपेट चारा प्राप्त होने लगा।
| १७)। आंगिरस नाम से इसका उल्लेख किया गया है। परंतु पितरो ने नये चारे में विष उत्पन्न करने के कारण, (क. सं. १६.११.२) गाय खराब होने लगी । परंतु पितरो को हविर्भाग देने
आज्य-सावर्णि मनु का पुत्र । पर, अंगिरसों को उत्कृष्ट चारा मिलने लगा तथा वह खूब आज्यप--एक पितृगण । ब्रह्ममानसपुत्र पुलह के दध देने लगी। (ते. ब्रा. २.१.१)। इन्होंने ही द्विरात्र | वंशज । इन्हें यज्ञ में आज्य (बकरी के दूध से बना घी) का याग शुरू किया (तै. सं. ७.१.४)। अंगिरस के द्वारा | पान करने के कारण, यह नाम पड़ा। इन्हें कहीं कहीं सुस्वध रथीतर की पत्नी में उत्पन्न ब्रह्मक्षत्र संतति को आंगिरस | भी कहा गया है (मत्स्य. १५)। कर्दम प्रजापती के लोकों कहते थे (भा. ९.६.३)।
में यह रहते हैं। इन्हें विराजा नामक एक कन्या है। (अभीवर्त, अभहीयु, अयास्य, आजीगर्ति, उचथ्य,
यही नहुष की पत्नी है (पन. स. ९)। वैश्य इन्हें पूज्य उत्तान, उरु, उर्ध्वसध्मन, कुस, कृतयशस, कृष्ण, गृत्समद
मानते हैं। घोर, च्यवन, तिरश्चि, दिव्य, धरुण, रुव, नृबैध, पवित्र, आंजन-एक दास । यह नेत्रों में अंजन लगाता था। पुरुमिहळ, पुरुमेध, पुरुहन्मन, पूतदक्ष, प्रचेतस, प्रभूवसु यह त्रिककुद पर्वत पर से आया था । त्रिककुद् को यामुन प्रियमेध, बृहन्मत्ति,, बृहस्पति, त्रैद भिक्षु, मूर्धन्वन्, बताया है। यह हिमालय का भाग था (अ. सं. ४.९.१हहूगण, वसुरोचिष, बिंदु, विरूप, विहव्य, वीतहव्य, | १०)। शक्ति व्यश्व, शिशु, शौनहोत्र, श्रुतकक्ष, संवनन, संवर्त, | आटविन्--ब्रह्मांड तथा वायु के मत में व्यास की सहयुग, सव्य, सुकश्य, सुदिति, सुधन्वन् , हरिमंत, हरिवर्ण | यजुःशिष्य परंपरा के याज्ञवल्क्य का वाजसनेय शिष्य हविष्मत् , हिरण्यदत् तथा हिरण्यस्तूप देखिये)। (व्यास देखिये)। आटविन् तथा आवटिन् एक ही है । २. भौत्य मनु का पुत्र ।
___ आटिकी-- उपस्ति चाक्रायण की पत्नी (छां. उ. ३. भीष्म के यहाँ आया हुआ ऋषि (भा. १.९. १.१०.१)। इस शब्द का अर्थ, स्तनादि स्त्री-चिह्न ८)।
| जिसके अव्यक्त है एसी स्त्री, ऐसा शंकराचार्य करते है ।