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आकथ
प्राचीन चरित्रकोश
आग्रायण
आ
आकथ-मंकण का पुत्र । यह बड़ा ही शिवभक्त आग्निवेश्यायन-क्षत्रिय नरिप्यन्त कुल मे पैदा था। इसके घर में आग लग कर आधा शिवलिंग जल | हुवा एक ब्राह्मणकुल (भा ९.२.२१-२२)।
।। । अतः यह अपना आधा शरार जला रहा था, तब स्वरित कहाँ होता है, यह विशेषरूप से बतानेवाला शंकर प्रसन्न हुए (पन. पा. ११७)।
एक आचार्य (तै. प्रा. १४.४२.२)। अग्निवेश्य (२.) आकाशज विप्र--ब्रह्मदेव का नाम । इसे मारा नहीं | देखिये। जा सकता, ऐसा मृत्यु ने यम को बताया । पार्थिव देह तथा कर्म न होने के कारण इसे मृ य नही है । यह केवल
__ आग्नीध्र--प्रियव्रत तथा बर्हिष्मती के दस पुत्रों अज तथा विज्ञानरूप है (यो. वा. ३.२, ब्रह्मन् देखिये)।
में ज्येष्ठ पुत्र । विष्णु पुराण में अग्नीध्र है। कर्दम की
कन्या नामक कन्या का पुत्र । इसे उर्जस्वती नामक बहन आकुलि—एक असुर (असमाति राथप्रौष्ठ देखिये )।
थी। दो बहनें और भी थीं, जिनके नाम सम्राज् तथा आकृति--रुचि ऋषि की पत्नी । यह स्वायंभुव मनु
| कुक्षि थे। यह जंबुद्वीप का अधिपति था। पुत्रप्राप्ति की तथा शतरूपा की तीन कन्याओं में से प्रथम है । इसे यज्ञ
इच्छा से, यह मंदराचल के पहाड़ में जब ब्रह्मदेव की तथा दक्षिणा नामक कन्यारूप मिथुन हुआ (मनु देखिये)। - २. (स्वा. प्रिय) पृथुषेण राजा की पत्नी।
आराधना कर रहा था, तब ब्रह्मदेव ने देवसभा में गायन
करनेवाली पूर्वचित्ति नामक अप्सरा इसके पास भेजी। ३. (स्वा. उत्तान.) व्युष्टपुत्र सर्वतेजस् की पत्नी, तथा |
| उसने शंगारचेष्टा इत्यादि से आग्नीध्र का मन कामवश चक्षुर्मनू की माता (भा..४.१३.१५)।
किया। उसके सौंदर्य, बुद्धिमत्ता इ. अलौकिक गुणों पर आकृति-एक गारुड-विद्या का आचार्य । जब । | लुब्ध हो कर, इसने दस कोटि वर्षो तक उसका विषयोपभोग 'युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया, तब सहदेव दक्षिण किया। उससे आग्नीध्र को नौ पुत्र हुए। उनके नामः--
दिशा जीतने गया । तब इसे जीत कर उसने इससे | १. नाभि, २. किंपुरुष ३. हरिवर्ष, ४. इलावृत्त, ५. : ‘करभार लिया था (म. स. २८.३९)।
रम्यक (रम्य), ६. हिरण्मय (हिरण्वान), ७. कुरू, ८. · आक्ताक्ष्य--अग्निपूजा के बारे में विचार प्रगट ! भद्गाश्व, तथा ९. केतुमाल | कुछ काल के अनन्तर, वह करनेवाला एक गृहस्थ (श. बा. ६.१.२.२४)। अप्सरा ब्रह्मलोक चली गई। उसके विरह से यह राजा
आक्षील--भरद्वाजांगिरस वंशमालिका का एक अत्यंत उदास हो गया । तदनंतर जंबुद्वीप के नौ विभाग -द्विगोत्री ऋषि ।
कर के, प्रत्येक विभाग को अपने पुत्रों का नाम दे कर, वे ___ आगस्त्य--एक आचार्य (ऋ. प्रा.१-२: सां. आ. | विभाग उन्हें सौप कर, यह शालिग्राम नामक अरण्य में ७.२) । यह अगस्त्य नामक महर्षि का पुत्र, है। तप करने चला गया। कोन सा विभाग किसे दिया इसका संहिता शब्द का अर्थ मांडूकेय तथा माक्षव्य के मता- वर्णन विष्णु पुराण में है, वह इस प्रकार है:-१.नाभी को नुसार क्रमशः वायु संहिता तथा आकाश संहिता ऐसा | हिमवर्ष (हिन्दुस्थान), २. किंपुरुष को हेमकृटवर्ष, ३. है। आगस्त्य का कहना है कि, दोनों सिद्धान्त तुल्यबल हरिवर्ष को नैषधवर्ष, ४. इलावृत्त को मेरुपर्वतयुक्त इलावृत्तहैं (ऐ. आ. ३. १.१)। दहळच्युत देखिये।
वर्ष, ५. रम्यक को नील पर्वतयुक्त रम्यकवर्ष, ६. हिरण्वान : आग्ना प्रासेव्य-कश्यप गोत्र का एक ऋषिगण। | काव
| को श्वेतदीपवर्ष, ७. कुरू को शृंगवद्वर्ष, ८. भद्राश्व को आग्निवेशि शत्रि--यह दानस्तुति में दान देने वाले | मेरू के पूर्व में स्थित भद्राश्ववर्ष, तथा ९. केतुमाल को राजा का नाम है (ऋ. ५.३४.९)
गंधमानवर्ष, (विष्णु. २.१; भा. ५.१.३३; १. २२)। आग्निवेश्य--शांडिल्य, आनभिम्लात तथा गार्ग्य | आग्नीध्रक--रुद्रसावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्पियों में से का शिष्य । इसका शिष्य गौतम (बृ.२.६.२, ४.६.२.)। एक। . विसर्गसंधि के विषय में मतप्रतिपादन करनेवाला आचार्य | आग्रायण--इन्द्र शब्द की व्युपत्ती के विषय में, मत (ते. प्रा. ९.४)।
| दर्शानेविला आचार्य (नि. १०.९)।
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