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________________ रुचि प्राचीन चरित्रकोश ३. एक अप्सरा, जिसने अलकापुरी में अष्टावक्र के निर्देशित त्रिमूर्ति की कल्पना के अनुसार, ब्रह्मा को सृष्टि स्वागतसमारोह में नृत्य किया था (म. अनु. १९.४४)। उत्पत्ति का, विष्णु को सृष्टिसंचालन (स्थिति) का, एवं ४. देवशर्मन् नामक ऋषि की पत्नी, जिस पर इन्द्र | शिव को सृष्टिसंहार का देवता माना गया है । मोहित हुआ था (म. अनु. ४०.१७-१८)। एक बार भयभीत करनेवाले अनेक नैसर्गिक प्रकोप एवं रोगइसकी रक्षा का भार अपने शिष्य विपुल पर सौंप कर, | व्याधि आदि के साथ मनुष्य जाति को दैनंदिन जीवन में देवशर्मन् यज्ञ के लिए बाहर गया। तत्पश्चात् कामासक्त | सामना करना पड़ता है। वृक्षों को उखाड़ देनेवाले झंझाइंद्र इसके पास आया, एवं भोग की याचना करने लगा। वात, मनुष्यों एवं पशुओं को विद्युत् एवं उल्कापात से नष्ट फिर विपुल ने इन्द्र का प्रतिकार किया एवं इसके सतीत्व | कर देनेवाले निसर्गप्रकोप, एवं समस्त पृथ्वी में संहारसत्र की रक्षा की। शुरू करनेवाले रोग एवं व्याधियाँ आदि की, मनुष्य जाति __ इसकी बहन का नाम प्रभावती था, जो अंगराज चित्ररथ | प्रागैतिहासिक काल से ही शिकार बन चुकी है। इसी की पत्नी थी। प्रभावती के द्वारा प्रार्थना किये जाने पर, नैसर्गिक एवं व्याधिजनित प्रकोपों का प्रतीकरूप मान कर इसने उसे एक दिव्य पुष्प प्रदान किया था (म. अनु. | रुद्रदेवता की उत्पत्ति वैदिक आर्यों के मन में हुई, जिस ४२; प्रभावती ४. देखिये )। अंत में अपने पति के साथ | तरह उन्हें प्रातःकाल में 'उपस्' देवता का. एवं उदित यह स्वर्गलोक गयी (म. अनु. ४३.१७)। होनेवाले सूर्य में 'मित्र' देवता का साक्षात्कार हुआ था। ५. नहप राजा की कन्या, जो आप्नवान् ऋषि की पत्नी वैदिक साहित्य में नैसर्गिक एवं व्याधिजनित उगत थी। निर्माण करनेवाले देवता को रुद्र कहा गया है, एवं उसी रुचिपर्वन-दर्योधनपक्षीय एक राजा, जो कृति राजा | उत्सातों का शमन करनेवाले देवता को शिव कहा गया , का पुत्र था। भारतीय युद्ध में सुपर्वन राजा ने इसका वध है। इस प्रकार रुद्र एवं शिव एक ही देवता के रौद्र एवं किया (म. द्रो. २५.४५)। शांत रूप है। रुचिप्रभ--एक राक्षस, जो प्राचीन काल में पृथ्वी का शासक था (म. शां. २२०.५२)। पाठभेद- 'रुचि । सृष्टि का प्रचंड विस्तार एवं सुविधाएँ निर्माण करनेवाले परमेश्वर के प्रति मनुष्य जाति को जो आदर, कृतज्ञता एवं . रुचिर--(सो. कुरु.) कुरुवंशीय राधिक राजा का प्रेम प्रतीत हुआ, उसीका ही मूर्तिमान् रूप भगवान् विष्णु है, एवं उसी सृष्टि का विनाश करनेवाले प्रलयंकारी नामान्तर । मत्स्य में इसे जयत्सेन राजा का पुत्र कहा देवता के प्रति जो भीति प्रतीत होती है, उसीका मूर्तिमान गया है। रूप रुद्र है । पाश्चात्य देवताविज्ञान में सृष्टिसंचालक रुचिरधि--पुरूरवस्वंशीय गुरु राजा का नामान्तर एवं सृष्टिसंहारक देवता प्रायः एक ही मान कर, (गुरु. २. देखिये)। विष्णु में इसे संकृति राजा का पुत्र इन द्विविध रूपों में उसकी पूजा की जाती है । किन्तु कहा गया है। रुचिराश्व--(सो. अज.) एक राजा, जो सेनजित् भारतीय देवताविज्ञान में सृष्टि की इन दो आदि शक्तियों को विभिन्न माना गया है, जिसमें से सृष्टि राजा का पुत्र था। संचालक शक्ति को विष्णु-नारायण-वासुदेव-कृष्ण कहा रुचिरोमा--स्कंद की अनुचरी एक मातृका (म.श. गया है, एवं सृष्टिसंहारक शक्ति को रुद्र कहा गया है। ४५.७) । पाठभेद- कद्रुला। रुचीक--गुहवासिन् नामक शिवावतार का एक इस तरह ऋग्वेद से ले कर गृह्यसूत्रों तक के ग्रंथों में शिष्य। रुद्र देवताविषयक कल्पनाओं की उत्क्रांति जब हम रुतिमत्--(सो. कुरु. भविष्य.) कुरवंशीय वृष्णिमत् देखते है, तब ऐसा प्रतीत होता है कि, ऋग्वेद आदि राजा का नामान्तर । वायु में इसे शुचिद्रथ राजा का पुत्र ग्रन्थों में रुद्र निसर्गप्रकोष का एक सामान्य देवता था। वही कहा गया है। | रुद्र उत्तरकालीन ग्रंथों में पशु, जंगल, पर्वत, नदी, स्मशान रुद्र-वैवस्वत मन्वंतर का एक देवगण । आदि सारी सृष्टि को व्यापनेवाला एक महाबलशाली रुद्र-शिव--एक देवता, जो सृष्टिसंहार का मूर्तिमान् देवता मानने जाने लगा, एवं यह विष्णु के समान ही प्रतीक माना जाता है। प्राचीन भारतीय साहित्य में | सृष्टि का एक श्रेष्ठ देवता बन गया। ७५४ प्रभु।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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