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________________ रुक्मिन् प्राचीन चरित्रकोश रुचि पुत्र था। यह एवं इसके पिता यादववंशीय विदर्भ राजा | देखिये)। किन्तु अभिमानी दुर्योधन ने भी इसकी के वंश में उत्पन्न हुयें थे, एवं स्वयं को भोजवंशीय कहलाते सहाय्यता ठुकरा दी । तब अपमानित हो कर यह अपने थे। महाभारत में इसे दन्तवत्र एवं क्रोधवश नामक नगर में लौट आया (म. व. ११५)। असुरों के वंश से उत्पन्न हुआ कहा गया है (म. आ. परिवार-इसे रुक्मवती अथवा शुभांगी नामक एक कन्या थी, जिसका विवाह रुक्मिणीपुत्र प्रद्युम्न से हुआ यह अत्यंत पराक्रमी था। इसने गंधमादन निवासी | था। इसकी रोचना नामक पौत्री का विवाह कृष्ण के पौत्र द्रम ऋषि का शिष्य हो कर, चारों पादों से युक्त संपूर्ण | अनिरुद्ध से हुआ था। रोचना के विवाह के समय इसने धनुर्वेद की विद्या प्राप्त की थी । द्रुम ऋषि ने इसे इंद्र का | बलराम के साथ कपटता के साथ द्यूत खेला था, एवं उसकी विजय नामक एक धनुष भी प्रदान किया था, जो गांडीव, निंदा की थी, तब क्रोधित हो कर बलराम ने स्वर्ण के शार्ग आदि धनुष्यों के समान तेजस्वी था (म. उ. १५५. | पाँसों से इसका वध किया (ह. व. २.६१.५, २७-४६ ३-१०)। परशुराम ने इसे ब्रह्मास्त्र प्रदान किया था। भा. १०.६१)। श्रीकृष्ण से पराजय-इसके मन के विरुद्ध, इसकी रुक्मेषु--(सो. कोष्ट.) एक यादव राजा, जो मत्स्य बहन रुक्मिणी का श्रीकृष्ण ने हरण किया। उस समय, | एवं वायु के अनुसार रुक्मकवच राजा का पुत्र था। क्रुद्ध हो कर अपने पिता के सामने इसने प्रतिज्ञा की, 'मैं भागवत में इसे रुचक राजा का, तथा विष्णु एवं पन में कृष्ण का वध कर रुक्मिणी को वापस लाऊँगा, अन्यथा | इसे परावृत् राजा का पुत्र कहा गया है। लौट कर कुण्डिनपुर कभी न आऊँगा'। ___अपने भाई पृथुरुक्म की सहाय्यता से, इसने यादव तत्पश्चात् अपनी एक अक्षौहिणी सेना के साथ, इसने | राजा ज्यामघ को अपने राज्य से भगा दिया। तत्पश्चात् श्रीकृष्ण पर हमला किया। इस युद्ध में श्रीकृष्ण ने इसे | ज्यामघ ने शुक्तिमती नामक नगरी में नया राज्य स्थापित परास्त कर इसे विरूप कर दिया (भा. १०.५२-५४; / किया (ब्रह्म. १४.१०-१६; ज्यामघ देखिये)। रुक्मिणी देखिये)। तत्पश्चात् अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार, रुक्ष--पूरुवंशीय उरुक्षय राजा का नामान्तर । यह कुण्डिनपुर वापस न गया, एवं जिस स्थान पर कृष्ण रुच--(सो. कुरु. भविष्य.) एक राजा, जो वायु के ने इसे परास्त किया था, वहीं भोजकट नामक नई नगरी अनुसार सुनीथ राजा का पुत्र था। इसे ऋच नामान्तर बसा कर यह रहने लगा। इसी कारण उत्तरकालीन साहित्य भी प्राप्त था। इसके पुत्र का नाम नृचक्षु (त्रिचक्षु)था। में इसे भोजकट नगर का राजा कहा गया है (म. उ. रुचक--(सो. क्रोष्ट.) एक यादव राजा, जो भागवत १५५.२; व. २५५.११)। - सहदेव के दक्षिण दिग्विजय के समय, इसने एवं के अनुसार उशनस् राजा का पुत्र था। इसके पिता भीष्मक ने उसके साथ दो दिनों तक युद्ध | २.(सू. इ.) इक्ष्वाकुवंशीय भरुक राजा का नामान्तर । किया था, एवं तत्पश्चात् उसके साथ संधि किया था (म. ३. एक यक्ष, जो मणिभद्र एवं पुण्यजनी के पुत्रों में से स. २८.४०-४१)। दुर्योधन की ओर से दक्षिणदिग्विजय | एक था। के लिए निकले हुए कर्ण के यद्धकौशल्य से प्रसन्न रुचि--एक प्रजापति, जो ब्रह्मा के मन से उत्पन्न हो कर, इसने उसे भेंट एवं कर प्रदान किये थे (म. व. हुआ था। इसकी पत्नी का नाम आकृति था, जो स्वायंभुव परि. १. क्र. २४. पंक्ति.५१-५४)। मनु की कन्या थी। आकूति से इसे यज्ञ एवं दक्षिणा भारतीय युद्ध में--भारतीय युद्ध के प्रारंभ में, बड़े नामक जुड़वे संतान (मिथुन) उत्पन्न हुयें। पुत्रिकाधर्म अभिमान से एक अक्षौहिणी सेना ले कर यह भोजकट से | की शर्त के अनुसार, इसने उन दोनों पुत्रों को मन को निकला, एवं कृष्ण को प्रसन्न करने के हेतु से पाण्डवों के | वापस दे दिया (भा. ३.१२.५६, ४.१.२; पद्म. सृ. ३; पास गया । वहाँ इसने अर्जुन से बड़ी उद्दण्डता से कहा, | ब्रह्मांड. १. १.५८)। 'यदि पाण्डव मेरी सहाय्यता की याचना करेंगे, तो मैं | २. एक प्रजापति । यह पहले ब्रह्मचारी था, किन्तु उनकी सहाय्यता करने के लिए तैयार हूँ' । अर्जुन के | पितरों के कहने पर इसने मालिनी नामक अप्सरा से विवाह द्वारा इन्कार किये जाने पर, यह दुर्योधन के पास गया, | किया, जो वरुणपुत्र पुष्कर एवं प्रम्लोचा नामक अप्सरा की जहाँ इसने अपना उपर्युक्त कहना दोहराया ( युधिष्ठिर | कन्या थी (गरुड. १.८९-९०; मार्क. ९२)। प्रा. च. ९५] ७५३
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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