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प्राचीन चरित्रकोश
राम
(i) अध्यात्मरामायणः-ग्रंथकर्ता--अनिश्चित, किन्तु । (६) पुरातनरामायण (जांबवत् रामायण)--जो पमकई अभ्यासकों के अनुसार रामानंद इस ग्रंथ के | पुराण पातालखंड में प्राप्त है। यह प्रायः गद्य में है, एवं रचयिता थे; रचनाकाल--इ. स. १४ वीं अथवा १५ वीं | जांबवत् के द्वारा राम को कथन किया गया है। शताब्दी; लोकसंख्या-४३९९, जो ७ काण्डों में, एवं ६५ (७) संक्षेपरामायण--जो महाभारत वन पर्व में प्राप्त सर्गों में विभाजित है; महत्त्व-यह ग्रंथ सांप्रदायिक | है (म. व. १४७.२३-३८), एवं हनुमत् के द्वारा भीम रामायणों में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है । इस को कहा गया है। ग्रंथ में रामानुज के द्वारा प्रतिपादित समुच्चयवाद का स्पष्ट
| (८) मंत्ररामायण-जिसमें रामायण के वेदमूलत्व का शब्दों में विरोध किया गया है, विशिष्टाद्वैत का कहीं | प्रतिपादन किया गया है । इस ग्रंथ में, ग्रंथा नीलकंठ ने भी समर्थन नहीं हुआ। आनंद रामायण, तुलसीदासजी- |
वैदिक मंत्रों का एक संग्रह प्रस्तुत किया है, जिसका परोक्षार्थ कृत रामचरितमानस एवं एकनाथ के मराठी भावार्थ
रामकथा से संबंध रखता है। रामायण पर इसका काफी प्रभाव है। रामभक्ति के विकास
(९) भुशुंडीरामायण (= मूलरामायण = आदिमें इस ग्रंथ का महत्त्व अधिक माना जाता है ।
रामायण)-जो पूर्व, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर नामक पों इस ग्रंथ में राम एवं सीता को क्रमशः परम पुरुष एवं में विभाजित है। माया माना गया है, एवं इसी रूपक के द्वारा शंकराचार्य
(१०) वेदान्तरामायण--जिसमें वाल्मीकि के द्वारा प्रणीत अद्वैत वेदांत का प्रतिपादन किया गया है। सरल
परशुराम का जीवन चरित्र राम को सुनाया गया । प्रतिपादन, भक्तिप्राधान्य, अद्वैत तत्त्वज्ञान का प्राधान्य, एवं
इनके अतिरिक्त निम्नलिखित रामायण-ग्रंथों का निर्देश अल्पविस्तार, इन गुणों के कारण यह ग्रंथ भारतीय
श्रीरामदास गौड के 'हिन्दुत्व' में प्राप्त है, जिनमें से रामभक्तों में विशेष आदरणीय माना जाता है।
अधिकांश ग्रंथ १७ वीं शताब्दी अथवा उसके बाद की रचनाएँ (२) आनंदरामायण--चनाकाल-१५ वीं शताब्दी, प्रतीत होती हैं :--महारामायण, संवृत्तरामायण, लोमशअर्थात् अध्यात्म रामायण के पश्चात् , एवं एकनाथ के पूर्व
| रामायण, अगस्त्यरामायण, मंजुलरामायण,सौपद्यरामायण, श्लोकसंख्या--१२२५२, जो निम्नलिखित ९ काण्डों में |
सौहार्दरामायण, सौयरामायण, चांद्ररामायण, मैदरामायण, विभाजित है :--सार,यात्रा, याग, विलास, जन्म, विवाह,
सुब्रह्मरामायण, सुवर्चसरामायण, देवरामायण, श्रवणराज्य, मनोहर एवं पूर्ण । इस ग्रंथ में अध्यात्म रामायण
रामायण, एवं दुरंतरामायण । के कई उद्धरण प्राप्त है।
बौद्ध एवं जैन वाङ्मय में रामकथा--ई. पू. चौथी (३) अद्भुतरामायण--रचनाकाल--ई.स.१३००
शताब्दी से ई. स. सोलहवी शताब्दी तक के बौद्ध १४०० श्लोकसंख्या--१३५३, जो २७ सर्गों में विभाजित
एवं जैन साहित्य में, रामकथाविषयक अनेकानेक ग्रंथ प्राप्त है; महत्त्व--इस ग्रंथ की रचना 'वाल्मीकिभारद्वाजसंवाद'
हैं, जिनमें निम्नलिखित ग्रन्थ प्रमुख है :--दशरथजातक के रूप में प्राप्त है, एवं उसके अधिकांश सर्ग में (११-१५)।
की गाथाएँ (ई. पू. ४ थी शताब्दी); अनामकजातक राम एवं हनुमत् का भक्ति के विषय में एक संवाद प्राप्त है।
| (ई. १ ली शताब्दी); पउमचरियम्, दशरथकथानकम् (४) महारामायण (=योगवासिष्ठ वसिष्ठ रामायण) | (ई. ४ थी शताब्दी); पद्मचरित (ई.७ वीं शताब्दी); ग्रंथकर्ता-वसिष्ठ; रचनाकाल-ई. स. ८ वीं शताब्दी | पउमचरिउ (ई. ८ वीं शताब्दी); रामलक्खणचरियम् (विंटरनित्स ), अथवा ११ वीं शताब्दी (डॉ. राघवन् ); (ई. ९ वीं शताब्दी); अंजनापवनांजय (ई. १३ वीं श्लोकसंख्या--३२ हजार; महत्त्व--यह ग्रंथ वसिष्ठ एवं शताब्दी); रामदेवपुराण; बलभद्रपुराण (ई. १५ वीं राम के संवाद के रूप में लिखा गया है, जिसमें | शताब्दी); सौमसेन विराचित रामचरित (ई. १६ वीं अध्यात्म का विस्तृत एवं प्रासादिक विवेचन प्राप्त है। | शताब्दी)।
(५) तत्त्वसंग्रहरामायण--ग्रंथकर्ता--राम ब्रह्मानंद; आधुनिक भारतीय भाषाओं में रामकथा--आधुनिक रचनाकाल-ई. स. १७ वी शताब्दी; महत्व-इस ग्रंथ में | भारतीय भाषाओं में रामकथा पर आधारित अनेकानेक रामकथा के तत्त्व (अर्थात् राम के परब्रह्मत्व) पर प्रकाश | ग्रन्थों की निर्मिति ११ वी शताब्दी के उत्तरकाल में हो डाला गया है।
| चुकी है, जिनकी संक्षिप्त जानकारी निम्नप्रकार है:-- ७४१