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________________ राम प्राचीन चरित्रकोश धनुष मंग हो कर उसके दो टुकड़े हुये पश्चात् राजा ने राम को सीता विवाह में दे दी एवं कहा:-- " इयं सीता मम सुता सहधर्मचरी तव ॥ प्रतीच्छ चैनभई ते पाणिग्रीव पाणिना । पतिता महाभागा छायेवानुगता सदा ॥ ( वा. रा. बा. ७३.२६ - २७ ) । (मेरी कन्या सीता आज से धर्म मार्ग पर चलते समय तुम्हें साथ देगी | साया के समान वह तुम्हारे साथ रहेगी। उसका तुम स्वीकार करो) उत्तर भारत में विवाहान्तर्गत कन्यादान के समय इन कोकों का आज भी बड़ी श्रद्धा भाव से पठन किया जाता हैं। राम के विवाह के समय उनक राजा ने राम के भाई लक्ष्मण, भरत एवं शत्रुघ्न के विवाह क्रमशः ऊर्मिला, मांडवी एवं श्रुतकीर्ति से करायें । उनमें से उर्मिला स्वयं जनक की, एवं माण्डवी एवं श्रुतकीर्ति जनक के छोटे भाई कुशध्वज की कन्याएँ थी ( वा. रा. बा. ७३ ) । वाल्मीकि रामायण में अन्यत्र लक्ष्मण अविवाहित होने का, एवं भरत का विवाह सीतास्यंवर के पहले ही होने का निर्देश प्राप्त है ( वा. रा. अर. १८.३; बा. ७३.४ ) । इन निर्देशों को सही मान कर, कई अभ्यासक राम के साथ साथ उसके अन्य भाईयों का विवाह होने का वाल्मीकि रामायण में प्राप्त निर्देश प्रक्षिप्त मानते हैं । परशुराम से संघर्ष - विवाह के पश्चात् अयोध्या आते समय, यकायक परशुराम ने राम के मार्ग का अवरोध किया। उसने राम से कहा, 'मेरे गुरु शिव के धनुष का भंग कर तुमने उनका अवमान किया है। मैं यही चाहता हूँ कि, मेरे हाथ में जो विष्णु का धनुष्य है उसका भी भंग कर तुम्हारें ताकद की प्रचीति मुझे दो' । इस पर राम ने परशुराम से कहा, 'अपने पिता के बध का बल लेने के लिए पृथ्वी के समस्त क्षत्रियों की नाश करने के लिए आप उगत हुए है, किन्तु अन्य क्षत्रियों की भाँति मैं आपकी शरण में न आऊँगा' । इतना कह कर राम ने परशुराम के विष्णुधनुष का भी भंग किया, जिस पर परशुराम इसकी शरण में आया। | यौवराज्याभिषेक -- विवाह के समय, राम एवं सीता की आयु पंद्रह एवं छः वर्षों की थी। अयोध्या में आने के पश्चात् बारह वर्षों तक राम तथा सीता का जीवन परस्परों के सहवास में अत्यंत आनंद से व्यतीत हुआ । अपने सद्गुण एवं धर्मपरायणता के कारण यह अपने पौरजनों में भी काफी लोकप्रिय बना था। इसकी आयु सताओस वर्षों की होने पर, दशरथ राजा ने इसे यौवराज्याभिषेक करने का निर्धय किया। इस समय उसने अपने सभाजनों से कहा, 'राम राजकारण मे कुशल है, एवं शौर्य में इसकी बराबरी करनेवाला क्षत्रिय आज पृथ्वी पर नहीं है। इसी कारण मैं अपने सारे पुत्रों में से राम को ही यौवराज्याभिषेक करना चाहता हूँ'। इस तरह राम के यौवराज्याभिषेक का दिन चैत्र माह में पुष्यनक्षत्र में निश्चित किया गया। वीवराज्याभिषेक के अगले दिन रात्रि में राम तथा सीता ने उपोषण किया एवं दर्भासन पर निद्रा की । तत्पश्चात् होमहवनादि धार्मिक' विधि भी किये दूसरे दिन प्रातःकाल में यह यौवराज्या भिषेक के लिए निकल ही रहा था, इतने में उशरथ राजा की ओर से सुमंत्र की हाथों इसे बुलावा आया । के कैकेयी से संभाषण -- उस बुलावे के अनुसार, कैकेयी महल में बैठे हुए अपने पिता से मिलने जाने पर, दशरथ ने इससे कोई भी भाषण न किया। फिर कैकेयी ने राम से कहा, 'दशरथ राजा तुमसे कुछ कहना चाहते है, किन्तु तुम्हारे प्रेम के कारण कह नहीं पाते। इस अवस्था में तुम्हारा वही कर्तव्य है कि उनकी इच्छा का तुम पालन करो ' । , राम इसपर दशरथ राजा की हर एक इच्छा का पालन करने का अपना दृढनिश्चय व्यक्त करते हुए राम ने कहा : इस तरह बड़ी उद्दण्डता से क्षत्रियसंहार के लिए तुले हुए परशुराम को राम ने परास्त किया, एवं पृथ्वी पर बचे हुए क्षत्रियों का रक्षण किया था. रा. मा. ७६-७७) । ७२८ 'अहं हि वचनाद्राज्ञः पतेयमपि पावके ॥ भक्षयेयं विषं तीक्ष्णं, पतेयमपि चार्णवे । नियुक्तो गुरुणा पित्रा; नृपेण च हितेन च ॥ हि वचनं देवि राज्ञो पक्षम्। करिष्ये प्रतिजाने च रामो मापते ॥ " ( वा. रा. अयो. १८.२८-३० ) । ( दशरथ के द्वारा आज्ञा किये जाने पर, मैं अग्निप्रवेश, विषभक्षण आदि के लिए भी सिद्ध हूँ। क्यों कि, दशरथ राजा मेरा पिता, गुरु, एवं हितदर्शी है। अतः राजा का मनोगत बताने की कृपा आप करें । उसका तुरंत ही पालन किया जाएगा, यही मेरी आन है । मैं सत्यप्रतिज्ञ हूँ, एवं प्रतिज्ञा का पालन करना अपना धर्म समझता हूँ । )
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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