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प्राचीन चरित्रकोश
अहल्या
दिखता था | एक बार जब इन्द्र भीतर था, तब गौतम के आते ही विद्यार्थियों ने उसे भीतर का गौतम दिखाया। क्रोधित होकर गौतम ने इन्द्र तथा अहल्या को शाप
दिया ।
शाप दाशाद गौतम इन्द्र को शाप देनेवाल्या ही था कि, वह माजीर के रूप में जल्दी जल्दी भागने लगा । गौतम को शंका आई, तथा डॉट वर 'कौन है? ऐसा उसने पूछा । स इन्द्रमूर्तिमन्त उसके सामने खड़ा हो । तब गया (बा. ८७ पद्म सु. ५०१ गणेश. १.२१ ) | गौतम ने उसे शाप दिया कि तुम शत्रओं के द्वारा पराभूत होगे । मनुष्यलोक में जारकर्म प्रारंभ करनेवालों के तुम उत्पादक हो, अतएव प्रत्येक जारकर्म का आधा पाप तुम्हारे माथे लगेगा । देवराजों को अक्षयस्थान कभी प्राप्त न होगा (बा. रा. २०१ . १२२ ) । तुम्हारे उ. ब्रह्म. शरीर को सौ छेद हो जायेंगे ( म. अनु. ४१; १५३; ब्रह्म. ८७; पद्म. स. ५० ) । तुम वृषणरहित हो जाओगे ( वा. रा. बा. ४८; लिंग. १.२९) ।
अहल्या
( ब्रह्म. ८७ ) । शाप से मुक्त होने के पश्चात्, यह पुनः पति के सहबास में गई।
शाप के पूर्व इसे शतानन्द नामक पुत्र था। वह निमिवंशीय राजाओं का उपाध्याय था ( वा. रा. बा. ५१, आ. रा. सार. १०३ ) । इसे दिवोदास नामक भाई था ( भा. ९.२१९ . . १.३२) वह उत्तर पंचाल का राजा था। 'अहस्यायै बार ऐसा इन्द्र का गौरवपूर्ण वर्णन देदों में है इससे प्रतीत होता है कि इंद्र अहल्या की कृपा । रूपकात्मक होनी चाहिये।
सौदास की पत्नी के कुंडल गुरुदक्षिणा में लाने के लिये कहा समर्थन -- इसने उत्तंक नामक अपने पति के शिष्य को था (म. आ. ५५) इन्द्र के द्वारा इसके साथ किया गया व्यभिचार देवों के कार्य के लिये ही किया गया। क्योंकि, गौतम का तप अधिक हो गया था, अतएव उसका क्षय आवश्यक था (बा. रा. वा. ४९)। इसे गौतमी भी कहा गया है (ब्रह्म. ८७) महर्षि गौतम के वन में अहल्याद्वारतीर्थं प्रसिद्ध है ( म. व. ८२.९३ ) । नया दृष्टिकोन -- अहल्या तथा इन्द्र के संबंध की कथा रूपकात्मक है, ऐसा ब्राह्मणग्रंथ जैमिनीसूत्रों से प्रतीत होता
है ।
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तदनंतर अहल्या की ओर मुड़कर गौतम ने कहा, किसी को भी नही दिखोगी ऐसे रूप में तुम्हारा विध्वंस हो जावेगा, तथा तुम्हारे रूप का सर्वत्र विभाजन हो जायेगा। राम जय यहाँ आयेंगे तब तुम्हारा उदार होगा ( वा. रा. बा. ४८ ॐ ३० ) । तुम शिला बन बाओगी (आ. रा. सार. १.१३ स्कन्द १.२.५२ गणेश, १.३१) । जनस्थान में तुम एक शुष्क नदी बनोगी (आ. रा. सार. १.२ ब्रह्म. ८७) तुम्हारे देह पर केवल अस्थिचमं रहेगा। सजीव प्राणियों के समान तुम्हारे शरीर पर मांस तथा नख उत्पन्न नहीं होंगे, तथा तुम्हारे इस रूप के कारण स्त्रियों के मन में पापकर्म के प्रति दहशत उत्पन्न हो जावेगी (पद्म. स. ५४ ) । इसपर अहल्या ने प्रार्थना की कि इन्द्र आपका रूप धारण कर के आया था, इसलिये मैं पहचान न सकी। शरद्वत गौतम ने ध्यानस्थ हो कर यह जान लिया कि, यह अपराधी नही है, तथा अशाप दिया कि, राम जय यहाँ आवेगा तब अपने तत्र पादस्पर्श से तुम्हारा उद्धार करेगा ( वा. रा. बा. ४८८४९ २०९ गणेश १.२१ ) । इसकी मुक्ति के उ. लिये गीतम ने फोटितीर्थ पर तप किया। तब यह मुक्त हुई। उससे अहल्यासरोवर निर्माण हुआ। उस आनंद के कारण ही, गौतम ने गीतमेश्वर लिंग की स्थापना की (द. १२.५२ ) । गोदावरी के साथ तुम्हारा संगम । होने पर तुम पूर्ववत् बनोगी, ऐसा भी इसे उःशाप था
२. इन्द्रपत्नी यह इन्दु ब्राह्मण से रत हुई। इसके स्थूल शरीर को सजा दे कर कुछ लाभ नही हुआ, क्यों कि, यह मनोमय शरीर से तादात्म्य हुई थी (यो. वा. ३.८९.८१ ) ।
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( १ ) अहल्या रात्रि है, गौतम चन्द्र है तथा इन्द्र को सूर्य मान कर यह रूपककथा निर्मित की गई है। उसका स्पष्टीकरण करते हुए बताया जाता है कि इन्द्ररूपी सूर्य ने अहल्या रूपी रात्रि का वर्षण किया। यह एक निसर्गदृश्य है (श. बा. २.२.४.२८ ) ।
डॉ. रवीन्द्रनाथ टागोरजी ने अहल्या का रामद्वारा उद्धार का जो विवरण किया है वह सुन्दर है ।
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(२) हल का अर्थ है नांगर, हत्या का अर्थ जोती हुई जमीन, तथा अहल्या का अर्थ है बंजर जमीन अगस्य ऋषि ने दक्षिण में प्रथम वास किया, अर्थात् दक्षिण की अहल्या जमीन हत्या कर के उसका उद्धार किया, तथा उस अहल्या भूमि की शाप से मुक्तता की इस प्रकार राम ने अहल्या का उद्धार किया, इसका अर्थ है, उसने दक्षिण की बंजर भूमि उर्वरा बनाई ।