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असितमृग
प्राचीन चरित्रकोश
अहल्या
राजाद्वारा नियुक्त भूतवीर नामक ब्राह्मण से यज्ञ का नेतृत्व किया। हल का अर्थ है विरुपता, तथा हल्य का अर्थ छीन कर, स्वयं ले लिया (ऐ. ब्रा.७.२७)। इसके अनेक है विरुपता के कारण प्राप्त निंद्यत्व । इसे हल्य न होने के पुत्र थे, उसमें से एक का नाम कुसुरुबिन्दु औद्दालकि था कारण, ब्रह्मदेव ने इसका नाम अहल्या रखा (वा. रा. (जै. बा. १.७५; ष. ब्रा. १.४)।
उ. ३०.२५)। आगे चल कर, ब्रह्मदेव ने इसे शरद्वत असिता-एक अप्सरा । कश्यप तथा मुनि की कन्या।। गौतम के पास अमानत के रूप में रखा । उपवर होने पर असितांग-अष्टभैरवों में से एक ।
उसने इसे ब्रह्मदेव के पास वापस दे दिया। असिपर्णिनी--कश्यप तथा मुनि की एक कन्या। विवाह-शरद्वत गौतम मुनि का जितेंन्द्रियत्व तथा असिलोमन-एक असुर । कश्यप तथा दनु का पुत्र। | तपःसिद्धि देख कर, ब्रह्मदेव ने यह कन्या उसे भार्या कह असीमकृष्ण-(सो. कुरु.) अश्वमेधक राजा |
कर दी (वा. रा. उ. ३०.२९; विष्णु. ४.१९; मत्स्य. का पुत्र । इसका पुत्र निमिचक्र ( अधिसामकृष्ण
५०)। परंतु इन्द्र, वरुण, अग्नि इ. देव, दानव, तथा देखिये)।
अन्य राक्षसों के मन में भी इसके प्रति अभिलाषा थी। असुरा-एक अप्सरा । कश्यप तथा प्राधा की कन्या।
तब प्रत्येक के सामर्थ्य की परीक्षा देखी जावे, इस हेतु से असुरायण-विश्वामित्र का पुत्र (म. अनु.
ब्रह्मदेव ने निश्चय किया कि, जो व्यक्ति सर्व प्रथम पृथ्वी ७.५६ कुं.)।
प्रदक्षिणा करेगा, उसे ही यह कन्या दी जावेगी । अहल्या २. व्यास की सामशिष्यपरंपरा में से एक । वायु
के अभिलाषी प्रदक्षिणा करने लगे। परंतु अर्धप्रसूत धेनु तथा ब्रह्माण्ड के मतानुसार, यह कौथुम पाराशय का | पृथ्वी ही होने के कारण, गौतम ने उसकी प्रदक्षिणा की, शिष्य है (व्यास देखिये)।
तथा एक लिंग की प्रदक्षिणा कर के, वह ब्रह्मदेव के पास असूर्तरजस्-मूर्तरय राजा का नामांतर। . गया। गौतम प्रथम आयां ऐसा जान कर, ब्रह्मदेव ने उसे असोम-मणिभद्र तथा पुण्यजनी का पुत्र। अपनी कन्या दी। देवता, एक के पश्चात् एक; आने लगे।
अस्ति-जरासंध की दो कन्याओं में से ज्येष्ठ ।। परंतु उन्हें मालूम हुआ कि, अहल्या तथा गौतम का इसकी कनिष्ठ भगिनी प्राप्ति । यह दोनों कंस की पत्नीयाँ विवाह हो गया। यह वार्ता सुन कर, इन्द्र को बहुत दुःख थीं। कृष्ण के द्वारा कंस का वध होने पर, यह दोनों हुआ, क्यों कि, इन्द्र इससे प्रेम करता था। विवाहोपरान्त पितृगृह में आ कर रहने लगीं (भा. १०.५०; म. स. गौतम तथा अहल्या ब्रह्मगिरी पर रहने के लिये गये। १३.३०)।.
__भ्रष्टता-कुछ दिन बाद, गौतम को आश्रम से बाहर अस्तिक-हरिमेध देखिये।
गया देख कर, इन्द्र गौतम के रूप में इसका उपभोग अस्वहार्य--अंगिरस गोत्रीय मंत्रकार ।
करने के लिये आया । गणेशपुराण में दिया है कि, नारदअहंयाति--(सो. पूरु.) शर्याति तथा वरांगी का | द्वारा अहल्या के रूप की स्तुति की जाते ही, कामुक बन पुत्र । इसकी पत्नी कृतवीर्यपुत्री भानुमती। इसका पुत्र | कर इन्द्र आया। , सार्वभौम (म. आ. ९०.१४-१५)। भागवत तथा | तब पतिव्रताधर्मानुसार उसका तथा इसका समागम विष्णु के मतानुसार, यह संयातिपुत्र है। मत्स्य में अहं- हुआ (ब्रह्म, ८७; १२२; म. उ. १२; वा. रा. उ. ३०. वर्चस् पाठभेद है । अहंपाति पाठ भी मिलता है। ३२, स्कन्द. १.२.५२)। इंद्र काफी दिनों तक लगातार अहंवर्चस्-अहंयाति देखिये।
इसके यहाँ आता था, ऐसा उल्लेख ब्रह्मपुराण में है। अहनू-अष्टवसुओं में से एक ।
परंतु यह इन्द्र है ऐसा जान कर भी, इसने उससे समागम अहर-कश्यप तथा दनु का पुत्र ।
किया। उसके शरीर के दिव्य सुगंध से अहल्या ने यह अहल्या--इसका निर्देश शतपथ ब्राह्मण मे अहल्या | जान लिया कि, यह मेरा पति नही है। (वा. रा. बा. मैत्रेयी नाम से मिलता है (श. ब्रा. ३.३.४.१८; जै. | ४८.१९)। इतने में गौतम ऋषि आया । तब इन्द्र तथा ब्रा. २.७९; ष. ब्रा. १.१)।
अहल्या को बहुत डर लगा। दो घटिकाओं के बाद यह जन्म—इसका पिता मुद्गल (भा. ९.२१) वयश्व | सामने आई, तथा पति का पदस्पर्श कर के इसने संपूर्ण को मेनका से यह कन्या हुई (ह. वं. १.३२)। यह | वार्ता बताई (गणेश. १.३०)। गौतम रोज-नदी पर ब्रह्ममानसपुत्री है । ब्रह्मदेव ने इसे अत्यंत सुन्दर निर्माण | स्नान के लिये जाने पर भी, दूसरा गौतम विद्यार्थियों को