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रंतिदेव सांकृत्य
प्राचीन चरित्रकोश
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रंभा
कारण इसे स्वर्गप्राप्ति हो गयी (म. शां. २६.१७ | कन्या प्रभा इसकी माता थी। हरिवंश के अनुसार, इसे अनु. २००.६)।
कोई पुत्र न था (ह. वं. १.२९) । किन्तु भागवत में इसका सांकृत्य ब्राह्मण-रंतिदेव राजा के एवं इसके भाई | वंशक्रम निम्नप्रकार दिया गया है:-रंभ-रभस-गंभीरगुरुधि के वंशज जन्म से क्षत्रिय हो कर भी ब्राह्मण बन | अक्रिय । रंभ के ये सारे वंशज जन्म से क्षत्रिय हो कर गये। इस कारण वे 'सांकृत्य ब्राह्मण' कहलाते थे।भी आगे चल कर ब्राह्मण बन गये ( भा. ९.१७.१०)। कालोपरान्त ये आंगिरस कुल में शामिल हो गये, जिसके | २. (सू. दिष्ट.) एक राजा, जो भागवत के अनुसार, एक गोत्रकार के नाते उनका निर्देश प्राप्त है ( वायु. विविंशति राजा का पुत्र था। इसके पुत्र का नाम खनिनेत्र ९९. १६०)।
था। रतिनार--(सो. पूरु. ) सुविख्यात पूरुवंशीय सम्राट, ३. रामसेना का एक वानर (वा. रा. यु. २६)। जो ऋतेयु नामक राजा का पुत्र था। मत्स्य में इसे अंतिनार, ४. रंभ-करंम नामक दो दानवों में से एक। भागवत में इसे रंतिभार, एवं वायु में इसे रंति कहा गया |
__ रंभ-करंभ--दानवद्वय, जो कश्यप एवं दनु के है। मत्स्य एवं वायु में इसके पिता का नाम क्रमशः |
पुत्र थे । एक बार ये दोनों भाई पानी में तप कर रहे थे, औचेयु एवं रजेयु दिया. गया है। .
जब इन्द्र ने मगर का रूप धारण कर इनमें से करंभ का इसकी पत्नी का नाम सरस्वती था (वायु. ९९. ध किया। १२९), जिसका नाम मत्स्य में मनस्विनी दिया गया है।
अपने भाई की मृत्यु से रंभ अत्यधिक दुःखी हुआ, 'अपनी इस पत्नी से इसे निम्नलिखित चार पुत्र उत्पन्न
एवं आत्महत्या करने के लिए उद्यत हुआ। उस समय हुये थे:--तंसु, महान् , अतिरथ एवं द्रुह्यु । कई पुराणों के
अग्नि ने प्रकट हो कर इसे सान्त्वना दी, एवं वरप्रदान अनुसार, इसे अप्रतिरथ (प्रतिरथ ) नामक और एक
किया. 'तुम्हारे वंश की परंपरा आगे चलानेवाला विजयी पुत्र भी था, जिसके पुत्र काण्व ने आंगिरसांतर्गत काण्व
पुत्र तुम्हे प्राप्त होगा। अग्नि के इस वर के अनुसार, शाखा का प्रारंभ किया ( पार्गि. २२५)।
इसे महिषासुर नामक एक पुत्र उत्पन्न हुआ। आगे चल . रभस--रामसेना का एक वानर (वा.रा. यु. ४. कर एक महिष के द्वारा रंभ का वध हुआ (दे. भा. . ३६ )।
५.२; शिव. उ. ४६)। . २. रावण पक्ष का एक राक्षस ( वा. रा. यु. ९.१)।
रंभा--एक सुविख्यात अप्सरा, जो कश्यप एवं प्राधा ३. (सो. पुरूरवस् .) एक राजा, जो आयुपुत्र रंभ का
की कन्याओं में से एक थी (म. आ. ५९.४८)। यह पुत्र था । महाभारत में इसे सोम एवं मनोहरा का पुत्र कहा |
कुबेरसभा में रहती थी। अर्जुन के जन्मोत्सव में, एवं . गया है (म. आ. ६०.२१)।
अष्टावक्र के स्वागतसमारोह में इसने नृत्य किया था रमेणक--तक्षक कुलोत्पन्न एक नाग, जो जनमेजय
(म. आ. ११४.५१; अनु. १९.४४)। इसने इंद्रसभा के सर्पसत्र में मारा गया था (म. आ. ५२.७)। में भी अर्जुन के स्वागतार्थ नृत्य किया था (म. व. ४४.
रमठ-एक म्लेंच्छ जाति, जो मांधातृ के राज्यकाल | २९)। में उसके राज्य में निवास करती थी (म. शां. ६५.१४)। कुबेरपुत्र नलकूबर के साथ यह पत्नी के नाते से
रमण-एक वसु, जो धर नामक वसु के पुत्रों में से | रहती थी। एक बार रावण ने इस संबंध में इसकी खिल्ली एक था।
उड़ायी, जिस कारण क्रुद्ध हो कर नलकूबर ने रावण को रमणक--एक राजा, जो प्रियव्रत पुत्र यज्ञबाहु के | शाप दिया, 'तुझे न चाहनेवाली किसी स्त्री से अगर तुं सात पुत्रों में से तीसरा था। इसका राज्य ( वर्ष ) इसीके बलात्कार करेगा, तो तुझे प्राणों से हाथ धोना पडेगा'। ही नाम से प्रसिद्ध था (मा.५.२०.९)।
नलकूबर के इसी शाप के कारण राम के द्वारा रावण का २. एक राजा, जो प्रियव्रतपुत्र वीतिहोत्र के दो पुत्रों | वध हुआ (म. व. २६४.६८-६९)। से ज्येष्ठ था (भा. ५. २०.३१)।
विश्वामित्र के तपोभंग के लिए इन्द्र ने इसे उसके पास रंभ-(सो. पूरूरवस् .) एक राजा, जो भागवत एवं भेजा था। किन्तु विश्वामित्र ने इन्द्र के षड्यंत्र को पहचान विष्णु के अनुसार, पुरूरवस् राजा का पौत्र, एवं आयु लिया, एवं क्रुद्ध हो कर इसे शाप दिया, 'तुम हजारों राजा के पुत्रों में से चौथा पुत्र था । स्वर्भानु असुर की | वर्षों तक शिला बन कर रहोगी (म. अनु. ३.११)।
हा कर नलकूबर ने
शाप दिया,
का राज्य (वर्ष
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