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________________ यौवनाश्व प्राचीन चरित्रकोश रक्षस् यौवनाश्व--युवनाश्व राजा के पुत्र मांधातृ का पैतृक | ३. इक्ष्वाकुवंशीय युवनाश्व (तृतीय) राजा का नाम (मांधातृ देखिये)। नामान्तर (युवनाश्व ३. देखिये)। २. भद्रावती नगरी के श्वेतपर्ण राजा का पैतृक नाम यौवनाश्चि--मांधातृ राजा का नामान्तर। (श्वेतपर्ण यौवनाश्व देखिये)। रक्त--एक असुर, जो महिषासुर का पुत्र था। यह पत्नी का नाम ब्रह्मधना था, जिससे इसे नौ पुत्र एवं चार स्वायंभुव मन्वन्तर का सुविख्यात असुर हिरण्याक्ष के समान कन्याएँ उत्पन्न हुयीं थी (ब्रह्मधना देखिये)। पराक्रमी था। इसे बल.एवं अतिबल नामक दो पुत्र थे। इसका सविस्तृत स्वरूपवर्णन ब्रह्मांड में निम्न प्रकार प्राप्त इसकी सेना अत्यंत प्रचंड थी, जिसके बल से इसने है :-यह तीन पैरोंवाला, तीन हाथोंवाला, तीन सिरवाला, इन्द्र को भी परास्त किया था। इसके धूम्राक्ष आदि काली आँखेवाला, खड़े बालवाला, एवं पीली मूंछेवाला तैतीस सेनापति थे, जो प्रत्येकी एक हजार अक्षौहिणी सेना था। इसका शरीर शक्तिशाली किंतु कद में छोटा था। के अधिपति थे (स्कंद. ७.१.११९)। इसके स्कंध विशाल थे, किन्तु उदर अत्यंत कृश था। यह रक्तकर्णी--एक राक्षसी, जो रक्षस् एवं ब्रह्मधना की प्रबाह, जिहास्य, शंकुकर्ण, पिंगलोवृत्तनयन, जटिल, कन्या थी। महोरस्क, पृथुघोण, अस्थूल एवं लंबमेदाण्डपिंडक था । यह रक्तबीज--एक असुर, जो शुभ एवं निशुंभ के पक्ष में अत्यंत विरूप था, जिसका मुँह कानों तक फटा हुआ था, शामिल था। इसे रुद्र का वरदान था कि, जब भी यह एवं नाक फैली हुयी थी। इसे केवल आठ ही दाँत थे। घायल हो कर इसके खून की बूंदें भूमि पर गिरेंगी, कौनसी भी शीला का यह मुष्टिप्रहार से चकनाचूर कर उनसे इसके सादृश उतने ही राक्षस निर्माण होंगे। रुद्र देता था, जिस कारण इसे 'शीलासंहनन' उपाधि प्राप्त के इस वर के कारण, यह अत्यंत उन्मत्त बन गया था। हुयी थी (ब्रह्मांड. ३.७.४७)। एक बार यह शंभ-निशुंभ के पक्ष में चामुंडा देवी से | . २. एक मानव जातिविशेष, जो वैदिक साहित्य में प्रायः युद्ध करने गया। इस युद्ध म मध्यस्थता करते समय, सर्वत्र मनष्यजाति के शत्रओं. पार्थिव दैत्यों एवं राक्षसों इसने बडी उद्दण्डता से देवी से कहा, 'तुम शुभ-निशुभ के लिए प्रयुक्त किया गया है। की पत्नी हो जाओ, नही तो इस युद्ध में तुम्हारा पराजय अटल है। फिर देवी ने अत्यंत भयंकर रूप धारण कर वैदिक साहित्य में असुरों, राक्षसों एवं पिशाचों को इसका सारा खून भूमि पर एक ही बूंद छिड़कने का मौका क्रमशः देवों, मनुष्यों एवं पितरों का विरोधी कहा गया है न देते हुये प्राशन किया। इस तरह देवी ने इसका एवं (तै. सं. २.४.१)। इस कारण, जहाँ वृत्र, पिण, शंबर इससे उत्पन्न राक्षसों का संपूर्ण विनाश किया (दे. भा. आदि इंद्र के शत्रुओं को असुर कहा गया है, वहाँ मनुष्य५.२७-२९; मार्कं. ८५शिव. उमा. ४७; देवी-चामुंडा जाति के यज्ञों का विनाश करनेवाले यातु एवं यातुधान देखिये)। राक्षसों को रक्षस् कहा गया है । वैदिक साहित्य में दैत्य, रक्तांग-धृतराष्ट्रकुलोत्पन्न एक नाग, जो जनमेजय दानव एवं असुर शब्द समानार्थी रूप में प्रयुक्त किये के सर्पसत्र में दग्ध हुआ था (म. आ. ५२.१६)। गये है। रक्ष--एक व्यास (व्यास देखिये)। पाणिनि के अष्टाध्यायी में असुर, रक्षस् एवं पिशाच रक्षस्-एक राक्षस, जो कश्यप एवं खशा का पुत्र तीन स्वतंत्र मानव जातियाँ मानी गयी है, जिनके 'आयुधथा। इसका जन्म प्रातःकाल के समय हुआ था। इसकी । जीवीसंघों' का निर्देश वहाँ स्वतंत्र रूप से किया गया है । ७११
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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