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________________ युधिष्ठिर प्राचीन चरित्रकोश युधिष्ठिर युधिष्ठिर के उत्तर जहाँ अराजकता है। देवता, अतिथि, नौकर-चाकर, पितर एवं आत्मा को तृप्त करनेवाला। देवता। ब्रह्म। धैर्य से। सत्य। धनहीन । शस्त्रादि से। विद्या से। . हमारे कुरुकुल के लिए लांछन है । कौरवों के साथ संघर्ष करते समय, सौ कौरव एवं पाँच पाण्डव अलग अलग रहेंगे, किन्तु किसी परकीय शत्रु से युद्ध करते समय, हम दोनो एक सौ पाँच बन कर उसका प्रतिकार करे, यही उचित है परस्पराणां संघर्षे, वयं पञ्च च ते शतम् । अन्यैः सह विरोधे तु, वयं पञ्चाधिकं शतम् । जयद्रथ की मुक्तता-इसीके ही पश्चात् थोडे दिन में जयद्रथ ने द्रौपदी का हरण करने का प्रयत्न किया (म. व. २५५.४३)। उसी समय भी इसने जयद्रथ धृतराष्ट्र की कन्या दुःशीला का पति है,यह जान कर उसकी मुक्तता की (म. व. २५६.२१-२३)। जयद्रथ के द्वारा किये गये द्रौपदीहरण से खिन्न हुये युधिष्ठिर को, मार्कंडेय ऋषि ने रावण के द्वारा किये गये सीताहरण की, एवं अश्वपति राजा की कन्या सावित्री की कथा सुनाई, एवं मनःशांति प्राप्त करा दी। ___ यक्षप्रश्न-कालान्तर में यह काम्यकवन छोड़ कर फिर द्वैतवन में रहने लगा। एक बार सभी लोग प्यासे थे । इसने नकुल से पानी लाने के लिए कहा किन्तु नकुल वापस न लौटा । तब इसने बारी बारी से सहदेव, अर्जुन तथा भीम को भेजा । किन्तु कोई वापस न लौटा । हार कर यह जलाशय के तट पर आया तब अपने सभी भाइयों को मूछित देखकर अत्यधिक क्षुब्ध हुआ, एवं दुःख से पीड़ित हो कर विलाप करने लगा । तत्काल, इसे शंका हुयी कि दुर्योधन ने इस जलाशय में विष घुलवा दिया हो। इतने में एक ध्वनि आयी, 'तुम मेरे प्रश्नों का उत्तर दो, फिर पानी ले सकते हो । यदि मेरी बात न मानोंगे, तो तुम्हारी भी यही हालत होगी, जो तुम्हारे भाइयों की हुयी है। तब बक रूप धारण कर, उस यक्ष ने इसे अस्सी प्रश्न किये, जो साधारण बुद्धि, तत्वज्ञान, दर्शन, धर्म तथा तथा वर दिया, 'अज्ञातवास के समय तुम्हें कोई पहचान राजनीति सम्बन्धी थे। इसने उन सभी का उत्तर संतोष- न सकेगा। वह यक्ष कोई दूसरा न था, बल्कि साक्षात जनक दिया । उनमें से प्रमुख प्रश्न तथा उनके उत्तर निम्न- यमधर्म ही था। उसने इसे विराटनगरी में रहने के लिए लिखित थे ( यक्ष प्रश्न की तालिका देखिये)। कहा, तथा ब्राह्मण की अरणी देते हुए वर प्रदान किया, इस प्रकार अपने सभी प्रश्नों का तर्कपूर्ण उत्तर पा कर, 'लोभ, क्रोध तथा मोह को जीत कर दान, तप तथा सत्य बकरूपधारी यक्ष ने सन्तुष्ट होकर युधिष्ठिर से कहा, 'तुम | मैं तुम्हारी आसक्ति हो (म. व. २९५-२९८)। अपने भाइयों में किसी एक को पुनः प्राप्त कर सकते हो। अज्ञातवास-पाण्डवों के अज्ञातवास में इसने गुप्त तब इसने माद्रीपुत्र नकुल का जीवनदान माँगा। तब इसके | रूप से जय, तथा प्रकट रूप से कंक नामक ब्राह्मण का रूप पक्षपातरहित समत्वबुद्धि को देख कर यक्ष प्रसन्न हो | धारण किया था (म. वि. १.२०, ५.३०)। अज्ञातउठा । उसने इसके सभी भाइयों को जीवित कर दिया, / वास शुरु होने के पूर्व धौम्य ऋषि ने इसे अज्ञात वास में सूर्य का आधार क्या है ? . धर्म का अधिष्ठान क्या है ? . सूर्य के साथ कौन है ? आदमी को बल कैसे प्राप्त होता है ? क्षत्रिय देवत्व किस प्रकार प्राप्त कर सकता है ? ब्राह्मण देवत्व किस प्रकार पा सकता है ? कौन आदमी मृत है ? कौन राष्ट्र मृत है ? जीवित कौन है ? यक्ष के प्रश्न 500
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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