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________________ अष्टावक्र . प्राचीन चरित्रकोश असित यह वृद्ध स्त्री के स्थल पर आया। वहाँ इसे ऐश्वर्य की १०)। यह भानुमती का पुत्र था (मत्स्य. १३.९४; परमावधि तथा अनेक सुन्दर स्त्रियाँ दिखीं । उन्हें जाने के | पद्म. स. ८)। लिये कह कर, उस वृद्ध स्त्री के पास रहने का इसने | पूर्वजन्म में यह योगी था, तथापि कुसंगति से योगनिश्चय किया। रात्रि के समय शय्या पर जब यह विश्राम भ्रष्ट हो गया । पूर्वजन्म का स्मरण होने के कारण, कर रहा था, तब वह वृद्ध स्त्री ठंड से कँपकँपाती हुई, इसे कुसंगति के प्रति घृणा उत्पन्न हो गई । पुनः इसके पास आई तथा इसको आलिंगन कर प्रेमयाचना कुसंगति प्राप्त न हो, इस भय से इसने अपना व्यवहार करने लगी। परंतु परस्त्री मान कर अष्टावक्र ने उसकी | असमंजसता का रखा । इस के शरीर में पिशाच का प्रार्थना अमान्य कर दी। उसकी हर चीज की ओर देख | संचार होने से यह ऐसा व्यवहार करता था (ब्रह्माण्ड. कर, अष्टावक्र के मन में घृणा उत्पन्न होती थी। दूसरा ३.५१)। ऐसे वर्तन के कारण, लोक त्रस्त हो कर दूर ही दिन उसी ऐश्वर्य में बिताने के बाद, रात्रि के समय पुनः रहें, ऐसा इसका उद्देश्य रहता था। इस लिये यह लोगों के वही प्रकार हुआ। उस समय, वृद्धा ने यौवनरूप धारण बच्चों को सरयू नदी में डुबो देता था। तब लोगों ने सगर के किया था। उसने यह भी कहा कि, वह कुमारिका है। पास इसकी शिकायत की। इसलिये राजा ने इसे घर से परंतु, मेरा विवाह तय हो गया है, ऐसा बता कर इसने बाहर निकाला। तब यह वन में चला गया, किन्तु जाते उसे निवृत्त किया। तब इसके निग्रही स्वभाव के प्रति समय डुबोये हुए सब बच्चों को इसने योगसामर्थ्य से संतोष प्रगट कर, वृद्धा ने कहा कि, मैं उत्तरदिग्देवता हूँ। जीवित कर, लोगों को वापस कर दिया। तब नागरिकों को तुम्हारे भावी श्वशुर की इच्छानुसार मैंने तुम्हारी परीक्षा ली | आश्चर्य लगा, तथा राजा को अत्यंत पश्चात्ताप हुआ (भा. (म. अनु. ५०-५२) । तदनंतर सुप्रभा के साथ इसका ९.८.१४-१९; म. व. १०७; ब्रह्म.७८.४०-४३.)। विवाह हुआ। यह बड़ा तत्वज्ञानी था। इसके नाम पर दशरथ, कैकेयी तथा सिद्धार्थ नामक प्रधान के. संबाद में 'अष्टावक्रगीता' नामक एक ग्रंथ प्रसिद्ध है। वह गीता | इसका उल्लेख है ( वा. रा. बा. ३६ )। इसने जनक को बताई। इसका पुत्र अंशुमत् । असमंजस् को पंचजन नामांतर एक बार लोकेश्वर नामक ब्रह्मदेव के समय, व्याध के | था (ह. वं. १.१५, ब्रह्म. ८.७३.)। बाण से हरिहर नामक ब्राह्मण का पैर टूट गया । चक्रतीर्थ असमाति-राथप्रौष्ठ-रथप्रोष्ठ कुल का ऐक्ष्वाक राजा में स्नान करने पर, वह पैर उसे पुनः प्राप्त हुआ। चक्रतीर्थ अपने गौपायन नामक दो उपाध्यायों से इसका झगडा हुआ की महत्ता की यह कथा, इसने बताई है (स्कन्द ३.१. (जै. ब्रा. ३.१६७; पं. बा.१३.१२.५; ऋ. १०.५७.१; २४)। ६०.७; सायण-शाट्या. वा.)। तदनंतर, किरात तथा _ 'अष्टावक्रसंहिता' नामक ग्रंथ इसके नाम पर है (C. आकुलि इन दो असुरों ने गौपायन बधुओं को छोड देने के C.)। इसने अप्सराओं को विष्णु को पतिरूप में प्राप्त | लिये राजा को समझाया, तथा उनमें से गौपायन सुबंधु का करने का वरदान दिया, परंतु पानी से बाहर आने पर | वध करवाया। परंतु उस के अन्य बंधुओं ने एक सूक्त के अप्सरायें इसका वक्रत्व देख कर हँस पड़ी । तब इसने उन्हें | जाप से उसे पुनः जीवित कर लिया (ऋ. १०.५७-६०; शाप दिया कि, आभीर तुम्हारा हरण करेंगे (ब्रह्म. २१२. बृहद्दे. ७.९१.९६)। ८६)। उसी के अनुसार, कृष्ण निर्माण के पश्चात् अर्जुन ___ असमौजस्-(सो. यदु.) वायु के मतानुसार जन कष्णपत्नियों को द्वारका से ले जा रहा था, तब मागे | कंबलबर्हिष का पुत्र । में आभीरों ने उनका हरण किया। असिक्नी-पाचेतस दक्ष की पत्नी । पंचजन असकृत्-भृगु तथा पुलोमा का पुत्र। प्रजापति की कन्या होने के कारण, इसे पांचजनी कहा है असंग-(सो. वृष्णि.) मत्स्य तथा विष्णु के मता- (भा. ६.४)। नुसार युयुधानपुत्र। असिज-वायु के मतानुसार उतथ्य का नामान्तर । ___ असमंजस्-(सू. इ.) सगर को केशिनी नामक असित-मांधाता राजा के द्वारा पराभूत एक राजा स्त्री से उत्पन्न पुत्र (भा. ९.८.१५, ह. वं. १.१५, विष्णु. | (म. शां. २९.८१)। ४.४.३; ब्रहा. ८.७३; वायु. ८८.१५९; नारद ८.६८; २. (स्. इ.) भरतराजा का पुत्र । इसके शत्रु हैहय वा. रा. बा. ३८)। यह शैब्या का पुत्र था (म.व. १०६. तालजंघ तथा शशबिंदु ने इसका पराभव कर के, इसे राज्य
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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