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अश्विनीसुत
प्राचीन चरित्रकोश
अष्टावक्र
सूर्य की स्तुति करने पर यह रोगरहित तथा यज्ञ में भाग | अष्टादंष्ट्र वैरुप-सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.१११) तथा प्राप्त करनेवाला हुआ (ब्रह्मवै. १.१०-११)। अश्विनी- | सामद्रष्टा (पं. बा. ८.९.२१)। कुमारों से यह कथा मिलती जुलती है।
अष्टारथ-दिवोदास (२.) देखिये । अश्व्य-वश देखिये।
अष्टावक्र-कहोल का पुत्र । उद्दालक के सुजाता अषाढ उत्तर पाराशर्य-एक आचार्य (जै. उ. | नामक कन्या का पुत्र, तथा श्वेतकेतु का मामा (म. ब्रा. ३.४१.१)।
व. १३८)। कहोल के द्वारा निरंतर किये जानेवाले अषाढ कैशिन-कुंति देश ने पांचालदेश का परा- | अध्ययन का इसने गर्भवास में ही मज़ाक उड़ाया । तब, भव किया, उस संबंध में इसका उल्लेख है (क. सं.
शिष्य के समक्ष तुमने मेरा अपमान किया, इसलिये आठ २६.९)। .
स्थानों पर तुम टेढे रहोगे, ऐसा शाप कहोल ने इसे दिया । अषाढ सावयस-एक ऋषि । यज्ञ करते समय,
कुछ दिनों के पश्चात् , दशम मास लगने के कारण सुजाता यजमान ने यज्ञ के पूर्व दिन अनशन व्रत करना चाहिये,
का प्रसवकाल निकट आ गया। आवश्यक धन न होने ऐसा इसका मत है। क्यों कि, आनेवाले देवताओं
के कारण, कहोल जनक के पास धनप्राप्ति के लिये गया। को हवि देने के पहले खाना अयोग्य है (श. ब्रा.
परंतु वहाँ, वरुणपुत्र बंदी ने कहोल को वादविवाद में १.१.१.७)।
जीत कर, वहाँ के नियमानुमार पानी में डुबो दिया। .. अषाढि सौश्रीमतेय-यज्ञकुंड में ईंटें लगाने के
उद्दालक की इच्छानुसार, यह बात गुप्त रख ने का सब ने
निश्चय किया। जन्म के बाद, अष्टावक्र उद्दालक को ही लिये अयोग्य पद्धति का स्वीकार किये जाने के कारण,
अपना पिता तथा श्वेतकेतु को भाई समझता था। इसकी मृत्यु हो गई (श. बा. ६.२.१.३७)।
बारह वर्ष का होने के पश्चात् , एक दिन सहजभाव से अष्टक वैश्वामित्र-सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.१०४ )।
यह उद्दालक की गोदमें बैठा था। तब, यह तुम्हारे बाप . विश्वामित्र का पुत्र (ऐ. ब्रा. ७.१७. सा. श्री. सू. १५.
की गोदी नही है,-कह कर श्वेतकेतु ने इसका अपमान २६)। विश्वामित्र ऋषि को माधवी से उत्पन्न पुत्र
किया। तब पूछने पर सुजाता ने इसे पूरी जानकारी दी। (म. उ. १.१७.१७-१९)। यह बड़ा विद्वान् था। एक
तदनंतर, श्वेतकेतु के साथ यह जनक के यज्ञ की ओर बार, अपने प्रतर्दन, वसुमनस् तथा शिबि इन तीन बंधुओं
गया। वहाँ प्रवेश के लिये बाधा आई। द्वारपाल से के साथ, जब यह रथ में बैठ कर जा रहा था, तब मार्ग
सयुक्तिक भाषण कर के इसने सभा में प्रवेश प्राप्त किया, में नारद इसे मिले। इसने उन्हें रथ में बिठाया तथा पूछा
तथा वहाँ बंदी को वाद का आव्हान कर के उसे पराजित कि, हम चारों में से सबसे पहले किसका पतन होगा,
किया। बंदी ने जिस जिस व्यक्ति को बाद में जीत कर यह बताओ। तब नारद ने कहा कि, यद्यपि तुमने बहुत
पानी में डुबोया था, वे सब वरुण के घर के द्वादश वार्षिक .गोप्रदान किये हैं, तथापि उसका तुम्हें अभिमान होने
सत्र में गये थे। वे सब वापस आ रहे है, ऐसा कह कर के कारण, तुम्हारा ही पतन पहले होगा (म. व.
इसने सब को वापस लाया। कहोल तथा अष्टावक्र का १९८)।
मिलन हुआ। तथापि अन्त में, बंदी को जनक ने सागर में इसका पितामह तथा माधवी का- पिता ययाति
डुबो ही दिया (म. व. १३४)। उपरोक्त अष्टावक्र की आत्मश्लाघा के कारण, स्वर्ग से पतित हुआ। तब इसने कथा, लोमश ने युधिष्ठिर को श्वेतकेतु के आश्रम में उससे इसलोक तथा परलोक के संबंध में, अनेक प्रश्न बताई है। कहोल ने समंगा नदी में स्नान करने को बता पूछ कर ज्ञान प्राप्त किया, तथा अपना पुण्य दे कर उसे | कर, इसका टेढा शरीर सीधा किया (म. व. १३२)। पुनः स्वर्ग में भेजा (म. आ. ८३-८५; मत्स्य.
| आगे चल कर, वदान्य ऋषि की सुप्रभा नामक कन्या से ३८-४१)।
इसका विवाह तय हुआ। परंतु उसने इसे कहा कि, उत्तर . यह विश्वामित्र गोत्र के प्रवर में है। इसके पुत्र का | दिशा में हिमालय के ऊपरी भाग में, एक वृद्ध स्त्री तपश्चर्या नाम लौहि ।
| कर रही है । वहाँ तक जा कर आने के बाद ही यह विवाह - अष्टम-ब्रह्मसावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में | होगा। अष्टावक्र ने यह शर्त मंजूर की। प्रवास करते से एक।
करते, उस दिव्य प्रदेश से कुबेर का सत्कार स्वीकार कर
प्रा. च. ७]