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________________ यामिनी प्राचीन चरित्रकोश यास्क गया। मानी जाती है । इसकी माता का नाम असिक्नी था (भा. | उसी ग्रंथ में अन्यत्र इसके शिष्य का नाम जातूकर्ण्य दिया ६.६.२१)। | गया है (बृ. उ. २.६.३; ४.६.३)। ___ यामी-दक्ष राजा की कन्या, जो धर्मऋषि की पत्नियों निरुक्त के अंत में यारक को 'पारस्कर' कहा गया है, में से एक थी। इसे 'जामि' नामान्तर भी प्राप्त था। जिससे प्रतीत होता है कि यह पारस्कर देश में रहनेइसके पुत्र का नाम स्वर्ग एवं कन्या का नाम नागवीथी था। | वाला था। यामुनि-कश्यपकुलोत्पन्न एक गोत्रकार | पाठभेद- पाणिनि के व्याकरणग्रंथ में यास्क शब्द की व्युत्पत्ति प्राप्त 'सामुकि'। है, जिससे प्रतीत होता है कि, यह पाणिनि के पूर्वकालीन याम्य-स्वायंभुव मन्वन्तर का एक देव । | था (पा. स. २.४.६३)। पिंगल के छंदःसूत्र में एवं यायावर--एक व्यक्ति, जिसका कोई निश्चित आवास शौनक ऋकप्रातिशाख्य में इसका निर्देश प्राप्त है (छं. न था (तै. सं. ५.२.१.७; का. सं. १९.१२)। 'यायावर' | सू. ३.३०; शौनक देखिये)। इसका काल लगभग ई. का शब्दश: अर्थ 'इधर उधर घूमनेवाला' होता है। पू. ७७० माना जाता है। २. संन्यासियों का एक समूह, जो मुनिवृत्ति से कठोर निरुक्त-वेदों में प्राप्त मंत्रों का शब्दव्युत्पत्ति, शब्दव्रत पालन करते हुये इधर उधर घूमते रहते थे । जरत्कारु | रचना आदि के दृष्टी से अध्ययन करनेवाले शास्त्र को नामक सुविख्यात ऋषि इनमें से ही एक था (म. आ. 'निरुक्त' कहते है। यद्यपि आग्रायण, औदुंबरायण, १३.१०-१३)। इस ऋषि के धार्मिकता का निर्देश महा- | औपमन्यव, शाकपूणि आदि प्राचीन भाषाशास्त्रज्ञों ने भारत में प्राप्त है (म. अनु. १४२)। निरुक्तों की रचना की थी, तथापि उनके ग्रंथ आज महाभारत में अन्यत्र जरत्कारु ऋषि के पितृगण का नाम उपलब्ध नहीं है। प्राचीन निरुक्त ग्रंथों में से यास्क का 'यायावर' बताया गया हैं। उन्हें कोई संतान न होने के निरुक्त ही आज उपलब्ध है, जिसमें ऋग्वेद के कई मंत्रों कारण, वे स्वर्ग से च्युत हो गये थे। अतएव पुनः स्वर्गप्राप्ति के अर्थ का स्पष्टीकरण, एवं देवताओं के स्वरूप का निरूपण. होने के लिए, इन्होंने जरत्कारु ऋषि से, विवाह कर किया गया है। इस ग्रंथ में गाये, औदुंबरायण, एवं पुत्रप्राप्ति करने की प्रार्थना की थी (म. आ.१३.१४-१६; शाकपूणि नामक पूर्वाचार्यों का निर्देश प्राप्त है। ४१.१६-१७)। निरुक्त तथा व्याकरण ये दोनों शास्त्र शब्दज्ञान एवं .. यास्क--निरुक्त नामक सुविख्यात ग्रंथ का कर्ता, जो शब्दव्युत्पत्ति से ही संबंधित है। बेदमंत्रों का अर्थ जानने के 'शब्दार्थतत्त्व' का परमज्ञाता माना जाता है। यस्क | लिए पहले उनकी 'निरुक्ति' जानना आवश्यक होता ऋषि का शिष्य होने से इसे संभवतः यास्क' नाम प्राप्त है। इसी कारण, जो कठिण शब्द व्याकरणशास्त्र से नही हुआ होगा। इसने प्रजापति कश्यप के द्वारा लिखित | सुलझते थे, उनके अर्थज्ञान के लिए निरुक्त की रचना की निघंटु नामक ग्रंथ पर विस्तृत भाष्य लिखा था,जो 'निरुक्त' गयी है। नाम से प्रसिद्ध है। इसके द्वारा लिखित यह ग्रंथ वेदार्थ यारक के पहले 'निघंटु' नामक एक वैदिक शब्दकोश था, का प्रतिपादन करनेवाला सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ माना जाता जिस पर इसने निरुक्त नामक अपने भाष्य की रचना है । महाभारत के अनुसार, दैवी आपत्ति से विनष्ट हुआ की । वेदों में प्राप्त विशिष्ट शब्द विशिष्ट अर्थ में क्यों रूट निरुक्त ग्रंथ इसे विष्णुप्रसाद के कारण पुनःप्राप्त हुआ है, इसकी निरुक्ति इस ग्रंथ में की गयी है। इसी (म. शां. ३३०.८-९)। इसी कारण इसने अनेक यज्ञों | कारण वर्णागम, वर्णविपर्यय, वर्णविकार, वर्णनाश, आदि में श्रीविष्णु का शिपिविष्ट नाम से गान किया है (म. | विषयों का प्रतिपादन निरुक्त में किया गया है । यास्क ने शां. ३३०.६-७)। | वैदिक शब्दों को धातुज मान कर उनकी निरुक्ति की है, बृहदारण्यक उपनिषद में यास्क को आसरायण नामक जिस कारण वह एक असाधारण ग्रंथ बन गया है । इस आचार्य का समकालीन, एवं भारद्वाज ऋषि का गुरु ग्रंथ में वैदिक शब्दों की व्याख्या के साथ व्याकरण, भाषाकहा गया है (बृ. उ. २.५.२१, ४.५.२७ माध्य; श. विज्ञान, साहित्य आदि विषयों की जानकारी भी प्राप्त है। ब्रा. १४.५.५.२१)। संभवतः निरुक्तकार याक एवं निरुक्त में नैघंटुक, नैगम एवं दैवत नामक तीन काण्ड उपनिषदों में निर्दिष्ट यास्क दोनो एक ही व्यक्ति होंगे। है, जो बारह अध्यायों में विभक्त किये गये है। .
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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