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ययाति
प्राचीन चरित्रकोश
ययात
बनाओ; तुम्हें प्रतिलोमविवाह का कुछ भी दोष न यह सुन कर ययाति ने उसे शाप दिया, तुम एवं तुम्हारे लगेगा'। अंत में यह देवयानी को उनकी दासियों के | पुत्रों राज्य के अधिकार से वंचित होगे' (यदु देखिये)। सहित के अपने नगर वापस लाया।
| आगे चल कर, यही प्रश्न इसने तुर्वसु से किया, किन्तु पुत्रप्राप्ति--बाद में इसने अशोकवनिका के पास ही वह भी तैयार न हुआ। तब इसने उसे शाप दिया, शर्मिष्ठा तथा उसकी दासियों की योग्य व्यवस्था कर | 'तुम्हारी संतति नष्ट हो जावेगी, तथा जिन म्लेच्छों के दी । वहाँ देवयानी के साथ यह प्रसन्नपूर्वक विलासमय | यहाँ धर्म, आचार, विचार को स्थान न दिया जाता हो, जीवन बिताता रहा । कालांतर में देवयांनी से इसे दो पुत्र | एवं जहाँ की कुलीन स्त्रियाँ नीच वर्गों के साथ रमण भी हुए।
करती हो, उसी पापी जाति के तुम राजा बनोगे। एक बार ययाति को एकान्त में देख कर शर्मिष्ठा इसके पश्चात् यह शर्मिष्ठा के ज्येष्ठ पुत्र द्रुह्य के पास गया। पास आयी, तथा इससे अपने ऋतुकाल को सफल बनाने | वह भी जरावस्था को लेने के लिए तैयार न हुआ। फिर
पर इसने उसे शाप दिया, 'तुम्हारा कल्याण कभी न होगा! संवाद हुआ, किन्तु अंत में इसे शर्मिष्ठा की यथार्थता को | तुम्हे ऐसे दुर्गम स्थान पर रहना पड़ेगा, जहाँ का व्यापार स्वीकार कर, उसे अपनी भार्या बना कर सहवास करना पड़ा।
नावों के माध्यम से होता है। वहाँ भी तुम्हें अथवा कालान्तर में उससे इसे तीन तेजस्वी पुत्र हुए।
तुम्हारे वंशजों को राज्यपढ़ की प्राप्ति न होगी, तथा तुम
राज्याधिकार से वंचित होकर 'भोज' कहलाओगे' । . ___ शुक्र से शाप--एक दिन देवयानी ने शार्मिष्ठा के तीन
इसके उपरांत यह अपने पुत्र अनु के पास गया । पुत्र देखे। पूछने पर जैसे ही उसे पता चला कि,
वह भी राजी न होने पर, इसने उसे शाप दिया, 'तुम शुक्र के द्वारा रोके जाने पर भी, ययाति ने शर्मिष्ठा को
इसी समय जराग्रस्त हो जाओंगे। तुम्हारे द्वारा 'श्रीत' भार्या के रूप में स्वीकार कर उसे तीन पुत्र दिये हैं, वह
अथवा 'स्मार्त' अग्नि की सेवा न होगी, एवं तुम नास्तिक क्रोध में जल उठी, एवं तत्काल पिता के घर को चली
बन जाओगे' (म. आ. ७९.२३)। गयी । उसके पीछे पीछे यह भी जा पहुँचा । वहाँ जैसे ही शुक्राचार्य को सारी बातें पता चलीं, उन्हों ने ययाति को
__यौवनप्राप्ति-सबसे अन्त में यह अपने कनिष्ठ पुत्र पूरु
के पास गया, एवं उसकी युवावस्था माँगी । पूरु तैयार जराग्रस्त होने का शाप दिया।
हो गया। तब इसने उसके शरीर में अपनी जरा को दे कर तब ययाति ने शुक्राचार्य से प्रार्थना की कि, वह उसे उसका यौवन स्वयं ले लिया। पश्चात् इसने उसे वर प्रदान इस शाप से बचाये । तब शुक्राचार्य ने प्रसन्न हो कर कहा, किया, 'आज से मेरा सारा राज्य तुम्हारा एवं तुम्हारे नसने मेरा स्मरण किया है, अतएव मैं तुम्हें वरदान देता | पुत्रों का होगा' (म. आ. ७९.२४-३०)। हूँ कि, तुम अपनी यह जरावस्था किसी को भी दे कर, पूरु का यौवन प्राप्त कर ययाति अपनी विषयवासनाओं उसका तारुण्य ले सकते हो । जो पुत्र तुम्हें अपनी तरुणता को पूर्ण करने में निमग्न हआ। इसने देवयानी तथा दे, तथा तुम्हारी वृद्धावस्था स्वीकार करे, उसे ही तुम | शर्मिष्ठा से खूब विषयसुख लिया। बाद में इसने विश्वाची अपने राज्य का अधिकारी बनाओं; चाहे वह कनिष्ठ ही नामक अप्सरा के सहित नंदनवन में, तथा उत्तरस्थ मेरु क्यों न हो। तुम्हे तरुणता देनेवाला तुम्हारा पुत्र दीर्घ- | पर्वत के अलका नामक नगरी में अनेक प्रकार की जीवी, कीर्तिवान् तथा अनेक पुत्रों का पिता बनेगा' (भा. | विलासात्मक लिप्साओं का भोग किया। गौ नामक अप्सरा ९.१८; ब्रह्म. १४६ )। इस प्रकार वृद्धावस्था को धारण
के साथ चैत्ररथवन वन में विलास किया। इतना सुख कर ययाति अपने नगर वापस आया (म. आ. ७८. | लूटने के बाद भी, जब इसका जीन भरा, तब इसने अनेक - ४०-४१)।
यज्ञ किये, दान दिये, तथा राजनीति का अनुसरण कर पुत्रों को शाप--राजधानी में आकर, इसने अपने | के प्रजा को सुखी बनाया। अब यह विषयवासनाओं से ज्येष्ठ पुत्र यदु से कहा, 'तुम अपनी युवावस्थादे कर, मेरी | अत्यधिक ऊब चुका था। वृद्धता एवं चित्तदुर्बलता हज़ार वर्षों के लिए स्वीकार करो'। विरक्तावस्था- इसी विरक्त अवस्था में इसने अपनी यदु ने इन्कार करते हुए कहा, 'मेरे समान आपके अन्य | जीवन गाथा रुपक में बाँध कर देवयानी को कह सुनाई । इस भी पुत्र हैं। आप उनसे यही माँग करे, तो अच्छा होगा। | कथा में एक बकरा एवं बकरी की कथा कथन कि थी,
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