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________________ यम प्राचीन चरित्रकोश ययाति इसने उसे वर दिया था कि, जो भी इस दिन बहन के | पर यम के विचार प्राप्त हैं :- श्राद्ध (याज्ञ. १.२२५); हाथों बना भोजन ग्रहण करेंगे, उन्हे सदैव सौख्य प्राप्त | गोवध का प्रायश्चित्त (याज्ञ. ३.२६२); कन्या का विवाहहोगा (स्कंद. २.४.११)। योग्य वय (स्मृतिचं. पृ. ७९); अपवित्र अन्न शुद्ध कैसे हर्षण राजा के विश्वरूप नामक पिता को तथा विष्टि | किया जा सकता है (अपरार्क. पृ. २६७); ब्रह्मचारी नामक माता को भीषण स्वरूप प्राप्त हुआ था। हर्षण ने | का वेश कैसा चाहिए (अपरार्क. पृ. ५८); ब्राह्मण को यम की उपासना कर इससे प्रार्थना की कि, उन्हे सौम्य | देहान्त शासन न देना चाहिए (स्मृतिचं. पृ. ३१६); स्वरूप प्राप्त हो । तब इसने उन्हे गंगास्नान का व्रत | असुर पत्नी का स्त्रीधन (याज्ञ. २.१४५); व्यभिचार बताया (ब्रह्म. १६५)। (अपरार्क. पृ. ८६०)। आयुष्यक्षय के संबंध में इसने एक बार इसके तप को देख कर इंद्र को भय हुआ, नचिकेत को बतायी हुयी गाथाएँ महाभारत में प्राप्त हैं एवं उसने एक अप्सरा को भेज कर, इसका तप भंग (म. अनु. १०४.७२-७६)। करना चाहा । तब इसने इंद्र को सूचित किया कि, यह यम के अनुसार, स्त्रियों के लिए संन्यास-आश्रम उसका इंद्रासन नहीं चाहता। बाद को इसने 'धर्मारण्य' अप्राप्य है। उन्हें चाहिये कि, वे अपनी एवं अपनी जाति नामक प्रदेश प्राप्त किया, जो शंकर का वासस्थान था | के संतानों की सेवा करे (स्मृतिचं. पृ. २५४)। ___ यम के द्वारा रचित 'लघुयम' एवं 'स्वल्पयम' ग्रन्य--यम के नाम पर तीन ग्रन्थ उपलब्ध हैं:-१. स्मृतिग्रंथों के उद्धरण भी हरदत्त, अपरार्क एवं स्मृतियमसंहिता; २. यमस्मृति, ३. यमगीता। रत्नाकर में प्राप्त हैं। धर्मशास्त्रकार-याज्ञवल्क्य के द्वारा दी गयी धर्मशास्त्र- यमक-एक लोकसमूह, जो युधिष्ठिर के राजसूय कारों की सूची में यम का भी उल्लेख आता हैं (१.५)। यज्ञ के समय भेंट ले कर उपस्थित थे (म. स. ४८. वसिष्ठ धर्मसूत्र में यम के श्लोक आये हैं। अपरार्क ने | १२) । पाठभेद (भांडारकर संहिता)-'वैयमक' । शंखस्मृति में यम के धर्मविषयक विचारों को व्यक्त किया | यमदूत-विश्वामित्र ऋषि का एक पुत्र । है, जिसके अनुसार कुछ पक्षियों का ही माँस खाना उचित | यमराज--एक ग्रंथकार, जिसने 'भास्करसंहिता' के कहा गया है (अपरार्क पृ. ११६७)। हर एक रूप में अंतर्गत 'ज्ञानार्णवतंत्र' की रचना की थी (ब्रह्मवै. दुसरे जीवों के प्राणों की रक्षा के लिए भी वहाँ गया | २.१६)। है । जीवानंद संग्रह में इसके श्लोकों की संख्या अठत्तर दी| यमिन--स्वायंभुव मन्वन्तर के जिताजित् देवों में से गयी हैं, जो आत्मशुद्धि एवं प्रायश्चित्त से सम्बन्धित हैं। एक । आनंदाश्रम के 'स्मृतिसमुच्चय' में इसकी निन्नानवे यमी वैवस्वती--यम वैवस्वत की बहन, जो विवस्वत् श्लोकों की स्मृति प्राप्त है, जिसमें प्रायश्चित्त, श्राद्ध आदि | आदित्य एवं संज्ञा की कन्या थी (भा. ६.६.४०; ८. के बारे में विचार प्राप्त है। इसकी स्मृति में इसका निर्देश १३.९)। कई ग्रंथों में इसकी माता का नाम सरण्यू 'भास्वति ' ( सूर्यपुत्र ) नाम से किया गया है। दिया गया है। इसे 'यमना' नामान्तर भी प्राप्त था। यम के अनुसार, विवाह के पश्चात् पत्नी का स्वतंत्र | ऋग्वेद के एक सूक्त का प्रणयन भी इसने किया था ( ऋतु, गोत्र नष्ट हो कर, उसका एवं उसके पति का गोत्र एक ही | १०.१०)। होता है (याज्ञ. १.२५४ )। 'बृहद् यम स्मृति' नामक | ऋग्वेद में इसने अपने भाई यम के साथ किया हुआ एक अन्य स्मृतिग्रंथ भी प्राप्त हैं, जिसमें पाँच अध्याय, 'यम-यमी संवाद' प्राप्त है, जहाँ इसने यम से संभोग एवं १८२ श्लोक प्राप्त है। उस स्मृति में शुद्धि आदि की याचना की थी (ऋ. १०.८; यम वैवस्वत देखिये)। विषयों का विचार किया गया है। इस स्मृति में 'यम' 'भय्यादूज' का व्रत कर, इसने अपने भाई यम को एवं 'शातातप' आचार्यों के निर्देश प्राप्त हैं (बृहद्- प्रसन्न किया था ( स्कंद. २.४.११)। यम. ३.४२, ५.२०)। यमुना--यमी वैवस्वती का नामान्तर । विश्वरूप, विज्ञानेश्वर, अपरार्क, स्मृतिचंद्रिका आदि ययाति--(सो. आयु.) प्रतिष्ठान देश का एक उत्तरकालीन ग्रंथों में 'यमस्मृति' में से तीन सौ के उपर | सुविख्यात राजा, जो नहुष राजा का पुत्र, एव देवयानी श्लोक उदधृत किये गये है, जिनमें निम्नलिखित विषयों | तथा शर्मिष्ठा का पति था। महाभारत एवं पुराणों में इसे
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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