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अश्वपति
प्राचीन चरित्रकोश
अश्वि
अश्वपति-कश्यप तथा दनु के पुत्रों में से एक। अश्वपेज-वेद की शाखा प्रारंभ करनेवाला ( पाणिनी
२. मद्र दश का राजा । इसे मालवी नामक पत्नी थी। देखिये)। इसकी अनेक पत्नीयों मे से वह ज्येष्ठा थी । इसने सावित्री अश्वपेय-वेद की शाखा प्रारंभ करनेवाला (पाणिनी देवी की पराशरोक्तः गायत्री मंत्र से आराधना की, तथा / देखिये)। आराधना के पश्चात का हवन करते समय, सावित्री अग्नि अश्वमित्र गोभिल-वरुणमित्र गोभिल का शिष्य में से प्रगट हुई । उसने इसे वरदान दिया कि, दोनों (वं. बा.३)। ( ससुराल तथा मायका) कुलों का उद्धार करनेवाली कन्या अवमेध-व्यरुणक तुम्हें होगी। उस वर के अनुसार इस सावित्री नामक एक (ऋ५.२७.४-६)। कन्या हुई । इसी सावित्री द्वारा यम से मांग गये वर के
अश्वमेध भारत-सूक्तद्रष्टा (३.५.२७) । अनुसार इन सौ पुत्र हए ( ब्रह्मवैवर्त. २.२३; म. आर.
! अश्वमेधज (सो. पुरु.) सहस्त्रानीक राजा का पुत्र । २७७: सावित्री देखिये)।
| इसका पुत्र असीमकृष्ण (भा. ९.२२.३९)। अश्वपति कैकय-एक आत्मज्ञानी पुरुष । प्राचीन
अश्वमेधदत्त-(सो. कुरु.) शतानीक का पुत्र तथा शालादि कोई विद्वान पुरुष आत्मा के संबंध में जब विचार जनमेज्य का पौत्र । इसकी माता वैदेही (म. आ. ९०. कर रहे थे, तब उन्हें कुछ निश्चय नहीं बन रहा था।
नहीं बन रहा था। ९५)। यह अधिसोमकृष्ण हो सकता है। इसे आत्मज मान कर वे इसके पास आये। उसने इनका
___ अश्वयु-अंगिरकुल का एक गोत्रकार । यथायोग्य नत्कार किया तथा दूसरे दिन यह उन्हें दक्षिणा ।
अश्वरथ-विश्वामित्र गोत्र का एक प्रवर। देने लगा । वह उन्होंने अमान्य कर दी। तब इसे ऐसा
अश्वल-वैदेह जनक का होता । वैदेह जनक ने बड़ा लगा कि, इस में कुछ दोप होगा, तभी उन्होनें दक्षिणा
यज्ञ किया, तथा काफी दक्षिणा भी रखी। उपस्थित ऋषियों . अमान्य कर दी। तब इसने अपने राज्य की स्थिति का
| में, याज्ञवल्क्य सर्वश्रेष्ठ इसलिये जब आगे बढे, तब इसने 'नमे स्तेनो जनपदे, न कदया-न मद्यपो, नानाहितामिनी
उसे कुछ प्रश्न पूछ कर रोकने का प्रयत्न किया। परंतु याज्ञ. • विद्वान, न स्वैरी, स्वेरिणी कुतः', इस प्रकार कथन किया।
वल्क्य ने इसे चुप कर दिया (बृ. उ. ३.१.२; १०)। आये हुए लोगों ने कहा कि, हम दक्षिण के लिये नही, वैश्वानर आत्मा का ज्ञान पाने के लिये आये है। तब इसने
अश्ववत्-(सी. कुरु.) अविक्षित् (२..) देखिये। उन्हें ज्ञान दिया (श. ब्रा. १०.६.१.२; छा. उ. ५.११;
अश्वशंकु-कश्यप तथा दनु का पुत्र । ४; मै. उ. १.४)।
अश्वसूक्ति काण्वायन-सूक्तद्रष्टा (ऋ.८.१४-१५)
तथा सामद्रष्टा (पं. वा. १८.४.१०)। २. केकय देश का राजा । इसकी पत्नी बड़ी साहसी
२. फक्य दश का राजा । इसका पत्ना बडा साहसा अश्वसेन-तक्षक का पुत्र। अर्जुन ने जब खांडववन थी । वह किसी भी चीज की चिंता नही करती थी। एक
जलाया, तब तक्षक वहाँ नही था। इसकी माता ने इसे ऋषि के द्वारा दिये गये वर के अनुसार इसे पक्षियो की
मुँह में पकड़ कर, कूद कर बाहर निकलने का प्रयत्न भाषा समझती थी। एक बार. जंभ पक्षियों के जोडे की बातें
किया । तब अर्जुन ने इसकी माँ का सिर काट डाला । सुन कर इसे हंसी आ गई । इसकी पत्नी ने हँसने का
परंतु वेगवान् वायु के कारण यह दूर जा कर गिरा तथा .कारण पूछ' । इसने कहा कि, कारण इतना भयंकर है कि |
बच गया (म. आ. २१८.९; २२०.४०; ६०.३५)। उसे बताते ही मेरी मृत्यु हो जायेगी । कारण इतना भयंकर
| अर्जन से बदला लेने के लिये, इसने कर्ण के बाण पर होते हार भी, उसकी पत्नी ने उसे बताने की जिद की।।
आरोहण किया । यह जान कर, कृष्ण ने रथ ऐसा दबाया तब इसने वरदान देने वाले ऋषि को यह बात बताई।।
कि, अश्व घुटनों पर बैठ गये। अतः बाण ग्रीवा पर न लग ऋषि ने उससे कहा कि, तुम अपनी पत्नी को भगा दो।।
कर मुकुट पर लगा, तथा मुकुट के टुकडे हो गये। पश्चात इसने तत्काल वैसा ही किया।
अर्जुन ने इसे मार डाला (म. क. ६६)। इसे युधा जित् तथा कैकयी नामक दो पुत्र थे । इसमें अश्वायु-(सो.) मत्स्य के मतानुसार यह पुरुरवा से, युधाजित भरत का मातुल था । अश्वपति नाम, उपनाम | पुत्र है । के समान भी लगाया जाता था ( वा. रा. अयो. १.२)।। अश्वि -धर्म त
का पुत्र।