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अश्वत्थामन्
प्राचीन चरित्रकोश
अश्वथ
तब अश्वत्थामा ने कौरवेश्वर से, 'किसका वध होने से यह इतना कर के, इस घटना कथन करने के लिये, यह सेना अस्तव्यस्त हो कर दौड रही है, ऐसे पूछा (म. द्रो. कृतवर्मा तथा कृपाचार्य के साथ उस स्थान पर गया, १६५)। धृष्टद्युम्न ने अधर्म से अपने पिता का वध किया, | जहाँ दुर्योधन घायल हो कर तड़प रहा था। भारतीय यह ज्ञात होते ही अश्वत्थामा ने, धृष्टद्युम्न को मारने की युद्ध के संपूर्ण सेना में, केवल पांच पांडव, श्रीकृष्ण तथा प्रतिज्ञा की (म. क. ४२)। पितृवध से संतप्त अश्वत्थामा हम तीनों ही जीवित हैं, बाकी संपूर्ण सेना का संहार ने सात्यकी, धृष्टद्युम्न, भीमसेन इ. रथीवीरों का पराभव हो गया, यह सुनकर राजा दुर्योधन ने सुख से प्राण कर के उन्हें भगा दिया । द्रोणाचार्य के वध से पश्चात् , | छोडे (म. सौ. ९)। नीलवीर ने कौरवसेना का विध्वंस प्रारंभ किया, तब अश्व- द्रौपदी के सब पुत्रों का वध अश्वत्यामा द्वारा किये स्थामा ने उसका सिर काट दिया (म. द्रो. ३०.२७)। जाने के कारण, उसने अत्यंत शोक किया। अश्वत्थामा पांडवसेना पर इसके द्वारा छोडे गये नारायणास्त्र ने अति- |
के मस्तक का मणि निकाल कर युधिष्टिर के मस्तकपर संहार प्रारंभ करने पर, भगवान कृष्ण ने सब को निःशस्त्र
देखेंगी, तो ही मै जीवित रहूंगी, ऐसी प्रतिज्ञा उसने की । होने के लिये कहा । तब वह अस्त्र शांत हुआ (म. द्रो.
उसकी पूर्ति के लिये भीमसेन ने अश्वत्थामा पर आक्रमण १७०-१७१)। इसने पांडवपक्ष के अंजनपर्वादि राक्षस,
किया (म. सौ. ११)। व्यासादि ऋषिसमुदाय में, द्रुपद राजा के सुरथ, शत्रुजय ये पुत्र तथा कुंतिभोज राजा
अश्वत्थामा धूल से भरा हुआ उसने देखा । अश्वत्थामा के के दस पुत्रों का तथा घटोत्कच का वध किया (म. द्रो.
अस्त्रप्रभाव के सामने भीम का कुछ नही चलेगा, ऐसा १३१.१२६-१३१)।
सोच कर, कृष्ण अर्जुनसमवेत भीम का सहायता सब कौरवों की मृत्यु के पश्चात् , एक बार रात्रि के | के लिये निकला। पांडवों के नाश के लिये, अश्वत्थामा ने समय, अश्वत्थामा, कृपाचार्य तथा कृतवर्मा यह तीनों ब्रह्मशीर नामक अस्त्र छोडा। उससे पृथ्वी जलने लगी। विश्रांति के लिये वृक्ष के नीचे लेटे थे। क्या किया उसा अस्त्र का प्रतिकार करने के लिये, अर्जुन ने भी वही जावे, यह अश्वत्थामा सोच रहा था । इतने में एक उल्लू अस्त्र छोड़ा। इन दोनों के युद्ध में पृथ्वी का कहीं नाश ने छापा मार कर, उस वृक्ष के असंख्य कौएं मार डाले। न हो जाये, यह सोच कर, व्यासादि मुनियों ने इस उस घटना से. एक नयी चाल इसने सोंची, तथा पांडवों | अविचार के लिये अश्वत्थामा को डॉट लगाई, तथा की सेना पर रात्रि के समय छापा मारने का निश्चय मस्तक का दिव्यमणि पांडवों को दे कर शरण जाने के इसने किया । इस विचार से इसे परावृत्त करने का काफी
लिये कहा। इसने मणि दिया, परंतु उत्तरा के उदर में उपदेश करवर्मा तथा कपाचार्य किया, परंतु उनका न | स्थित पांडव वंश का नाश करके ही अपना अस्त्र शांत सुनते हुए, अश्वत्थामा अकेला ही छापा डालने के लिये होगा, ऐसा जबाब दिया । तब कृष्ण ने उसे शाप दिया निकल पड़ा (म. सौ. ५)। पांडवों के शिबिरद्वार के
| कि, पीप तथा रक्त से भरा दूषित शरीर ले कर, तीन पास आते ही, इसने शिबिर की रक्षा करनेवाला एक
हजार वर्षों तक मूकभाव से यह अरण्यों में घूमेगा।। भयंकर प्राणी देखा । उससे इसने युद्ध आरंभ किया।
उत्तरा के गर्भ को कृष्ण ने 'जीवित किया (म. सौ. अश्वत्थामा के किसी भी शस्त्रास्त्र का प्रयोग इस प्राणी
१३-१६; भा. १.७.१६)। पर नही हुआ । इसके सब शस्त्र समाप्त हो गए। तब
यह शंकर का अवतार हो कर चिरंजीव है, तथा गंगा निरुपाय हो कर, अश्वत्थामा उस शूलपाणि शंकर की | के तट पर रहता है (शिव. शत. ३७)। शरण में गया (म. सौ. ६)। शंकर की स्तुति करने के यह सावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में एक होगा पश्चात्, इसने अग्नि में स्वयं अपनी आहुती दी। इससे | (मनु देखिये)। यही व्यास भी होगा (व्यास शंकर प्रसन्न हो कर, उन्होंने इसे दर्शन दिये, तथा इसे | देखिये)। दिव्य खड़ग् दे कर इसके शरीर में प्रवेश किया। २. अऋर के पुत्रों में से एक । (म. सौ. ७)। रात्रि में ही, इसने पांडवों के हजारों अश्वथ-ऋग्वेद के दानस्तुती में, पायु को दान देनेवाला सैनिक, द्रौपदी के सब पुत्र, तथा पांचाल, सूत, सोम, | ऐसा इसका उल्लेख है (ऋ. ६.४७.२२-२४) । अश्वथ, धृष्टद्युम्न, शिखंडी आदि अनेक वीरों का नाश किया दिवोदास तथा अतिथिग्व, ये प्रस्तोक के ही अन्य नाम (म. सौ. ८)।
[ है, ऐसा सायणाचार्य कहते है।