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'मूजवंत
प्राचीन चरित्रकोश
मृगमंदा
२)।
ऋग्वेद में सोम को 'मौजवंत' (मूजवंत पर्वत से प्राप्त) संवर्धन काफ़ी गुप्तता से किया गया होगा, जिसका संकेत कहा गया है (ऋ. १०.३४.१)।
इसके 'नारीकवच' नाम के जनश्रुति में प्राप्त है। मूढ--एक राक्षस, जिसका ऋषिका नामक उपासिका [.
इसके पुत्र का नाम दशरथ था, जिससे आगे चल कर के लिए शिव ने वध किया था (शिव. कोटि. ७)।
इक्ष्वाकुवंश का विस्तार हुआ! मूतिब--एक बर्बर जाति, जो विश्वमित्र की जाति
२. एक राक्षस, जो कुंभकर्ण का पुत्र था । इसका बहिष्कृत संतानों में से एक थी (ऐ. ब्रा. ७.१८.२)।
| जन्म मूल नक्षत्र में होने के कारण, कुंभकर्ण ने इसे इनके नाम के लिए 'मूचीप' अथवा ' मूवीप' पाठभेद
अशुभ मान कर फेंक दिया था। किन्तु मधुमक्खियों ने भी प्राप्त है (सां. श्री. १५.२६.६)।
इसे शहद पिला कर बड़ा किया। . मूर्तरय-(सो. अमा.) कान्यकुब्ज देश का एक
बड़ा होने पर यह अत्यंत बलवान् हुआ, एवं समस्त राजा, जो कुश राजा का पुत्र था (भा. ९.१५.४)। ब्रह्म |
पृथ्वी को त्रस्त करने लगा। इसी कारण सीता ने राम के में इसे 'मूर्तिमत्', एवं विष्णु में इसे 'अमूर्तरयस्' |
द्वारा इसका वध करवाया (आ. रा. राज्य. ५-६)। कहा गया है, (ब्रहा. १०.३३; अमूर्तरयस् देखिये)। मूलचारिन्-एक आचार्य, जो वायु के अनुसार इसने धर्मारण्य नामक नगर बसाया था (वा. रा. बा. ३२. | व्यास की सामशिष्यपरंपरा में से लौगाक्षि नामक ऋषि
का शिष्य था। मूर्ति-प्राचेतस दक्ष की सोलह कन्याओं में से एक,
मूलमित्र गोभिल-एक आचार्य, जो वत्समित्र जो धर्मऋषि की पत्नी थी। यह नर एवं नारायण की माता
गोभिल का शिष्य था। इसके शिष्य का नाम वरुणमित्र थी (भा. ४.१.५२)।
गोभिल था (वं. ब्रा. ३)। २. स्वारोचिष मन्वन्तर का एक प्रजापति, जो वसिष्ठ
मूलहर--अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। ऋषि के पुत्रों में से एक था।
मूषकाद (मूषिकाद)-एक नाग, जो कश्यप एवं कद्र ३. स्वारोचिष मनु के पुत्रों में से एक ।
के पुत्रों में से एक था । इंद्रसारथी मातलि को नारद ने .४. ब्रह्मसावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक। | इसका परिचय कराया था (म. उ. १०१.१४)।
मूर्तिमत्--मूर्तरय नामक राजा के नाम के लिए | मृकंड (मृकंडु)-स्वायंभुव मन्वन्तर का एक ऋषि, उपलब्ध पाठभेद (मूर्तरय देखिये)।
जो धाता ऋषि का पुत्र था। इसकी माता का नाम २. (सो. पूरु.) एक पूरुवंशीय राजा, जो मत्स्य के | | आयति था। इसकी पत्नी का नाम मनस्विनी था, जिससे अनुसार अन्तिनार राजा का पुत्र था।
इसे मार्कडेय नामक सुविख्यात पुत्र उत्पन्न हुआ (भा. मूर्धन्एक देव, जो भृगु एवं पौलोमी के पुत्रों में से | ४.१.४३-४४; ब्रह्मांड. २.१-६; मार्क. ४९.२०)।। एक था।
विष्णु, नारद, वायु एवं मार्कंडेय में इसके नाम के मूर्धन्वत् आंगिरस (वामदेव्य)--एक वैदिक
लिए 'मृकंडु' पाठभेद प्राप्त है (विष्णु. १.१०; वायु. सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.८८)।
२८.५, नारद. १.४)। इसने एक 'अयुत युग' तक मूल--सोम की पत्नियों में से एक ।
शालिग्रामतीर्थ पर तपस्या की थी।
मृक्तवाह द्वित आत्रेय--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा मूलक-(सू. इ.) एक इक्ष्वाकुवंशीय राजा, जो (ऋ.५.१८; द्वित देखिये)। नारीकवच नाम से सुविख्यात था। भागवत, विष्णु एवं वायु के अनुसार, यह अश्मक राजा का पुत्र था। परशुराम
मृग-सोम की पत्नियों में से एक । के डर सें, यह स्त्रियों में छिपा रहने के लिए विवश
२. भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । इसके नाम के लिए हुआ । इस कारण इसे 'नारीकवच' नाम प्राप्त हुआ।
'भृत' पाठभेद प्राप्त है। ऐतिहासिक दृष्टि से, अश्मक एवं मूलक राजाओं मृगकेतु-कश्यपकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । से परशुराम काफ़ी पूर्वकालीन माना जाता है। इक्ष्वाकु- मृगमंदा--पुलह ऋषि की पत्नी, जो कश्यप एवं क्रोधा वंशीय कल्माषपाद राजा के पश्चात् अयोध्या का राज्य | की कन्याओं में से एक थी। इससे रीछ आदि प्राणी काफी कमजोर हुआ। इसी के कारण, मूलक राजा का । उत्पन्न हुए (म. आ. ६०.६०)।
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