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मुर
प्राचीन चरित्रकोश
मूजवंत
उसका पीछा करता हुआ वहाँ भी पहुँच गया। पश्चात् । मुसल--विश्वामित्र के ब्रह्मवादी पुत्रों में से एक (म. श्रीविष्णु ने अपनी योगमाया से एक देवी का निर्माण | अनु. ४.५३)। किया, जिसके द्वारा मुर का वध हुआ।
महर्त--एक देवसमूह, जो धर्मऋषि एवं मुहूर्ता के __मुर का वध करनेवाले देवी पर श्रीविष्णु अत्यधिक | पुत्र थे। प्रसन्न हुए, एवं उन्होंने उसे वर प्रदान किया, 'आज से | महर्ता--धर्मऋषि की पत्नी, जो प्राचेतस दक्ष की तुम्हारा नाम 'एकादशी' रहेगा, एवं समस्त पापों का | कन्याओं में से एक थी । मुहूर्त नामक देवसमूह इसी के नाश करने का सामर्थ्य तुम्हे प्राप्त होगा' (पन. उ. ३६. | ही पुत्र थे (भा. ६.६.४-९)। . . ५०-८०)।
मूक-हिरण्यकशिपु के वंश का एक राक्षस, जो सुंद २. एक पंचमुखी राक्षस, जो नरकासुर का सेनापति था। एवं ताटका का पुत्र था। इसे निम्नलिखित सात पुत्र थे:--ताम्र, अन्तरिक्ष, श्रवण, २. तक्षक वंश का एक नाग, जो जनमेजय के सर्पसत्र विभावसु, वसु, नभस्वत् एवं अरुण (भा. १०.५९.३-१०)। | में दग्ध हुआ था (म. आ. ५२.८)।
इसने नरकासुर के प्रागज्योतिषपुर के राज्य के सीमा | ३. एक चाण्डाल, जो अत्यंत मातृभक्त एवं पितृभक्त । पर छः हजार पाश लगाये थे, जिनके किनारों पर छूरे | था। नरोत्तम नामक एक ब्राह्मण इसके पास उपदेशप्राप्ति लगाये थे । उन पाशों को इसके नाम से 'मौरव' पाश | के लिए आया था ( पम. सु. ५०, नरोत्तम देखिये)। कहते थे। श्रीकृष्ण ने उन पाशों को अपने सुदर्शन चक्र से ४. एक दानव, जो इंद्रकील पर्वत पर रहता था। उस तोड़ कर, इसका एवं इसके सात पुत्रों का वध किया | पर्वत पर तपस्या करने के लिए आये अर्जुन को, इसने (म. स. परि. १.२१.१००६))
वराहरूप धारण कर काफ़ी त्रस्त किया था, जिस कारण ३. एक यवन राजा, जो जरासंध का मांडलिक था | अर्जुन ने इसका वध किया था (म. व. ४०.७-३३)। (म. स. १३.१३)। इसकी कन्या का नाम मौर्वी का- - शिवपुराण के अनुसार, इसीके ही कारण किरात-. मकटंकटा था, जो घटोत्कच को विवाह में दी गयी थी | रूपधारी शंकर एवं अर्जुन का युद्ध हुआ था। एक समय, . (घटोत्कच देखिये)।
यह वराह रूप धारण कर घुमता था, जब किरात एवं ४. एक राक्षस, जो कश्यप एवं दनु के पुत्रों में से एक | अर्जुन दोनों ने ही इसे बाण मार कर विद्ध किया। तदोथा। शिव की तपस्या कर, इसने उससे वर प्राप्त किया | परान्त इस वराह का वध किसने किया, इस संबंध में : था कि, अपना हाथ यह जिसके हृदय पर रखेगा वह किरात एवं अर्जुन के बीच वाद-विवाद हुआ, जिस कारण तत्काल मृत होगा।
| सुविख्यात 'किरातार्जुननीय' युद्ध हुआ (शिव. शत. श्वेतद्वीप में इसका एवं श्रीकृष्ण का युद्ध हुआ, जिसमें | ४१)। इसका हाथ इसीके हृदय पर रखने के लिए कृष्ण ने इसे | मचीप (मूवीप)--एक बर्बर जाति, जो संभवतः विवश किया, एवं इसका वध किया (वामन. ६०- | 'मूतिब' का पाठभेद है (सां. श्री. १२.२६-६)। ६१)। इसका वध करने के कारण, कृष्णरूपधारी श्रीविष्णु
| मुजवंत--एक जाति, जिसका निर्देश महावृष, गंधार. को 'मुरारि' नाम प्राप्त हुआ।
एवं बलिक लोगों के साथ प्राप्त है (अ. वे. ५.२२. मुरु-मुर राक्षस के नाम के लिए उपलब्ध पाठभेद ५)। संभवतः ये सारी जातियाँ समाज से बहिष्कृत थी. (मुर. १.२. ३. देखिये)।
जिस कारण ज्वर को इन लोगों के प्रदेश मे जाने की
प्रार्थना की गयी है । एक दूरस्थ लोगों के रूप में इनका मुष्कवत्--इंद्र नामक वैदिक सूक्तद्रष्टा का विशेषण ।
निर्देश यजुर्वेद संहिताओं में भी प्राप्त है (तै. सं. १.८% मष्टिक--वसिष्ठपुत्र 'महोदय' का नामांतर । का. सं. ९.७)। विश्वामित्र के शाप के कारण, महोदय को एवं उसके | काश्मीर की दक्षिणपश्चिमी निचली पहडीयों को मूजवंत भाईयों को निषाद बनना पड़ा, जिस समय उन्हे यह नाम | पर्वत कहा जाता था। संभव है, उसी पर्वत के नाम से प्राप्त हुआ था (वा. रा. बा. ५९.२०-२१, ६०.१)। इन लोगों को ' मूजवंत' नाम प्राप्त हुआ होगा। बाद
२. कंससभा का एक मल्ल, जो बलराम के द्वारा मारा | के महाकाव्य में मूजवंत पर्वत को हिमालय के अंतर्गत गया था (भा. १०.४४.२४)।
| एक पर्वत बताया गया है।