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मिश्रकशी प्राचीन चरित्रकोश
मुचुकुंद मिश्रकेशी--एक अप्सरा, जो कश्यप एवं प्राधा की | मुचि--एक राक्षस, जो नमुचि का छोटा भाई था। कन्या थी (म. आ. ५९.४८)। पूरु राजा के पुत्र रौद्राश्व | इन्द्र ने नमुचि का वध करने पर, इसने क्रुद्ध हो कर इंद्र पर के साथ इसका विवाह हुआ था, जिससे इसे निम्नलिखित | आक्रमण किया। पश्चात् इंद्र ने इसका भी वध किया दस महाधनुर्धर पुत्र उत्पन्न हुए थे:--अन्वग्भानु, रुचेयु, (पद्म. सृ. ६८)। कक्षेयु (कृकणेयु), स्थंडिलेयु, बनेयु, स्थलेयु, तेजेयु, मुचुकुंद--(सू. इ.) एक सुविख्यात इक्ष्वाकुवंशीय सत्येयु, धर्मयु (घर्मयु), एवं संतनेयु (संततेयु) (म. | राजा, जो मांधातृ राजा का तृतीय पुत्र था। राम दाशरथि आ. ८९.८७३४% ८९.९-१० पाठ.)।
के पूर्वजों में से यह इकतालिसवाँ पुरुष था। इसके नाम २. वसुदेव के भाई वत्सक राजा की पत्नी, जिससे इसे | के लिए 'मुचकुंद' पाठभेद भी प्राप्त है (म. शां. वृक आदि पुत्र उत्पन्न हुए थे (भा. ९.२४.४३; म. आ. | ७५.४)। ५९.४८)। मिश्री--एक नाग, जो बलराम के स्वर्गारोहण के समय,
इसकी माता का नाम बिन्दुमती था (ब्रह्मांड. ३.६३. उसके स्वागतार्थ प्रभासक्षेत्र में उपस्थित था।
७२, मत्स्य. १२.३५, ब्रह्म. ७.९५)। इसने नर्मदा नदी
के तट पर पारिपात्र एवं ऋक्ष.पर्वतों के बीच में अपनी एक मीदष-शक नामक आदित्य का एक पुत्र । इसकी
नयी राजधानी स्थापन की थी। आगे चल कर, हैहय. माता का नाम पौलोमी था (पौलोमी १. देखिये)।
राजा महिष्मंत ने उस नगरी को जीत लिया, एवं उसे.. मीदवस्--(सू . नरि.) एक राजा, जो भागवत के
'माहिष्मती' नाम प्रदान किया। इससे प्रतीत होता है अनुसार दक्ष राजा का पुत्र था। इसके पुत्र का नाम कूर्च
कि, मुचुकुंद राजा की उत्तर - आयु में इक्ष्वाकु वंश की . था।
राजसत्ता काफी कम हो चुकी थी। इसने 'पुरिका' नामक मीनरथ--(सू. निमि.) विदेह देश का एक राजा,
और एक नगरी की भी स्थापना की थी, जो विध्य एवं जो अनेनस् राजा का पुत्र था । भागवत में इसके नाम के |
ऋक्ष पर्वतों के बीच में बसी हुयी थी ( ह. वं. २.३८.२, लिए 'समरथ' पाठभेद प्राप्त है।
१४-२३)। मुकुट--एक क्षत्रिय वंश, जिसमें 'विगाहन' नामक कुलांगार राजा उत्पन्न हुआ था।
मुचुकुंद-वैश्रवण संवाद-मुचुकुंद ने अपने बाहुबल मुकुटा--स्कंद की अनुचरी एक मातृका (म. श. ४५.
से पृथ्वी को अपने अधिकार में ला कर, उस पर राज्य
स्थापित किया था। इसकी जीवनकथा एवं वैश्रवण नामक २३)। . मकुंद--एक राजा, जिसकी अस्थियाँ सहजवश
इंद्र के साथ हुआ इसके संवाद का निर्देश महाभारत में यमुना नदी में गिरने के कारण यह मुक्त हुआ था।
प्राप्त है, जो कुन्ती ने युधिष्ठिर को बताया था (म. उ. (पद्म. उ. २०९-२१०)।
१३०.८-१०; शां. ७५)। .. मुक्त--भौत्य मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक। एक बार स्वबल की परीक्षा देखने के लिए इसने कुबेर मुक्तकर्मन्-एक मुमुक्षु साधक, जो गीता के दूसरे | पर आक्रमण कर दिया। तब कुबेर ने राक्षसों का निर्माण अध्याय के पठन से मुक्त हुआ था ( मित्रवत् देखिये)। | कर, इसकी समस्त सेना का विनाश किया। अपनी बुरी
मुखकर्णी-स्कंद की अनुचरी एक मातृका (म. श. | स्थिति देख कर, इसने अपना सारा दोष पुरोहितों के सर ४५.२८)। इसके नाम के लिए 'सुकर्णी' पाठभेद प्राप्त | पर लादना शुरू किया । तब धर्मज्ञ वसिष्ठ ने उग्र तपश्चर्या
कर राक्षसों का वध किया। उस समय कुबेर ने इससे मुखमंडिका-शिशुग्रहस्वरूपा दिति का नामान्तर | कहा, 'तुम अपने शौर्य से मुझे युद्ध में परास्त करो। (म. व. २१९.२९)।
| तुम ब्राह्मणों की सहायता क्यों लेते हो ?' तब इसने कुबेर मुखर--एक कश्यपवंशीय नाग (म.उ.१०१.१६)। को तर्कपूर्ण उत्तर देते हुए कहा, 'तप तथा मंत्र का बल मुखसेचक--धृतराष्ट्रकुल में उत्पन्न एक नाग, जो | ब्राह्मणों के पास होता है, तथा शस्त्रविद्या क्षत्रियों के पास जनमेजय के सर्पसत्र में दग्ध हुआ था (म.आ.५२.१४)। होती है। इस प्रकार राजा का कर्तव्य है कि, इन दोनों इसके नाम के लिए ' मुखमेचक' पाठभेद प्राप्त है। शक्तियों का उपयोग कर राष्ट्र का कल्याण करे। इसके
मुख्य सावर्णि मन्वन्तर का एक देवविशेष। | इस विवेकपूर्ण वचनों को सुन कर कुबेर ने इसे पृथ्वी का