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मान
प्राचीन चरित्रकोश
मान्धात
- मान-अगस्य ऋषि का नामान्तर (ऋ. ७.३३.१३)। मानुतंतव्य--ऐकादशाक्ष नामक राजा का पैतृक नाम इसके वंशजों का निर्देश ऋग्वेद में 'मानाः 'नाम से किया | (ऐ. ब्रा. ५.३०)। मनुतंतु का वंशज होने से इसे यह है, जो ऋग्वेद के सुविख्यात सूक्तद्रष्टे माने जाते हैं (ऋ. नाम प्राप्त हुआ होगा। शतपथ ब्राह्मण में सौमाप नामक १.१६९.८) । अग्वेद में मान्य नामक एक ऋषि का भी | दो आचार्यों का पैतृक नाम 'मानुतंतव्य' बताया गया निर्देश प्राप्त है. जो संभवतः इसका ही पुत्र होगा। 'मान' | है (श. बा. १३.५.३.२)। 'मान्य', एवं 'मानाः, इन सारे ऋषियों का पैतृक | मान्दार्य मान्य--एक ऋषि का नाम, जो संभवतः नाम ऋग्वेद में 'मैत्रावरुणि' बताया गया है। अगस्त्य ऋषि का ही नामांतर है । मान का वंशज होने से
मानदन्तव्य--एक आचार्य (खा. ग. २.१.५; गो. | इसे यह नाम प्राप्त हुआ होगा। ऋग्वेद के अगस्त्य ऋषि गृ. १.६.१ )। संभवतः यह एवं 'मानुतन्तव्य' दोनो | के द्वारा रचित सारे सूक्तों के अंत में सूक्तकार के लिए एक ही रहे होंग।
यह उपाधि प्रयुक्त की गयी है (क्र. १.१६५.१५,१६६. मानव--नाभानेदिष्ठ एवं शायर्यात नामक आचार्यों का १५,१६७.११, १६८.१०)। पैतृक नाम (प. बा. ५.१४.२, ४.३१.७; श. बा. ४.१. मान्धात यौवनाश्व-(स. इ.) ऋग्वेद में निर्दिष्ट ५.२) । मनु का वंशज इस अर्थ से यह नाम प्रयुक्त | अयोध्या का एक सुविख्यात राजा, जो अश्विनों का आश्रित हुआ होगा। प्रग्वेद में चक्षुस् एवं नाहुष नामक सूक्त- | था (ऋ. १. ११२.१३) वग्वेद में इसका निर्देश अनेक द्रष्टाओं का पैतृक नाम 'मानव' बताया गया है (ऋ| बार प्राप्त है, किंतु वहाँ प्रायः सर्वत्र इसे 'मंधातृ' कहा ९.१०६.४-६, ९.१०१.७-९)।
गया है। 'मान्धातृ' का शब्दशः अर्थ 'पवित्र व्यक्ति' २. एक पराणवेत्ता एवं धर्मशास्त्रकार, जिसके नाम है, जिस आशय में इसका निर्देश ऋग्वेद में प्राप्त है पर निम्नलिखित ग्रंथ प्राप्त है :--मानव उपपुराण (दे.
| (ऋ. १.११२.१३; ८.३९.८; १०.२.२ )। अन्य एक भा. ३.३); मानव श्रौतसूत्र (मैत्रायणी शाखा); मानव स्थान पर इसे अंगिरस् की भाँति पवित्र कहा गया है वास्तुलक्षण।
(ऋ. ८. ४०.१२)। लुडविग के अनुसार, यह एक राजर्षि
था, एवं यह एवं नाभाक दोनों एक ही व्यक्ति थे २. अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ।
(ऋ. ८. ३९-४२, लुडविग-ऋग्वेद अनुवाद ३. ४. उत्तम मन्वंतर का एक देवविशेष ।
१०७)। मानवी-परशु एवं इडा नामक वैदिक वाङ्मय में
__यह इक्ष्वाकुवंशीय युवनाश्व (द्वितीय) अथवा सौद्युम्नि निर्दिष्ट स्त्रियों का पैतृक नाम (श. बा. १.८.१.२६; ते.
राजा का पुत्र था, एवं इसकी माता का का नाम गौरी सं. २.६.७.३; ऋ. १०.८६.३३)। मनु का स्त्रीवंशज
था, जो पौरव राजा मतिनार राजा की कन्या थी। इसी इस अर्थ से यह नाम प्रयुक्त हुआ होगा।
कारण इसे 'यौवनाश्व' पैतृकनाम, एवं गौरिक' मानस--ज्योतिर्भास नामक लोक में रहनेवाले पितरों | मातृक नाम प्राप्त हुआ था (वायु. ८८.६६-६७)। का सामुहिक नाम ।
पुराणों में इसे विष्णु का पाँचवाँ अवतार, 'चक्रवर्तिन् ' २. एक यक्ष, जो मणिवर एवं देवजनी के पुत्रों में से | 'सम्राट'' दानशूर धर्मात्मा' एवं सौ अश्वमेध एवं एक था।
राजसूय करनेवाला बताया गया है । यह मनु वैवस्वत ३. वशवर्तिन देवों में से एक।
के वंश में बीसवी पिढ़ी में उत्पन्न हुआ था, जिस कारण ४. वासुकीकुलोत्पन्न एक नाग, जो जनमेजय के | इसका राज्यकाल २७४० ई. पृ. माना जाता है (मनु सर्पसत्र में दग्ध हुआ था (म. आ. ५२.५)। वैवस्वत देखिये)। यह यादव राजा शशबिन्दु का सम
५. धृतराष्ट्र कलोत्पन्न एक नाग, जो जनमेजय के | कालीन था, जिससे इसका आजन्म शत्रुत्व रहा था। सर्पसत्र में दग्ध हुआ था (म. आ. ५२.१५)। इसके | इसने इन्द्र का आधा सिंहासन जीत लिया था। नाम के लिए 'मानव' पाठभेद प्राप्त है।
इसने अपने राज्य के सीमावर्ती पौरव एवं कान्यकुब्ज मानारि--अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। राज्यों को जीता था, एवं उत्तरीपश्चिम में स्थित द्रुह्य एवं
मानिनी--विदूरथ राजा की कन्या, जो सूर्यवंशीय आनव राजाओं को परास्त किया था। यादव राजा इसके राजा की पत्नी थी (राज्यवर्धन् देखिये)।
रिश्तेदार थे, जिस कारण इसने उनपर आक्रमण नही ६४३