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________________ माधवी प्राचीन चरित्रकाश माध्यम इसने किसी राजपुत्र को पसन्द न करके, वन में रहकर | कालविपर्यास-उत्तम कन्या अपने कुल का, एवं पितरों तपस्या करना ही स्वीकार किया। का उद्धार करनेवाली होती है, इस तत्व का प्रतिपादन पुत्र- इस तरह माधवी को कुल चार पुत्र उत्पन्न हुए, करने के लिए माधवी की कथा महाभारत में दी गयी है । इस जिनके नाम निम्नप्रकार थे:- १. वसुमनस् (वसुमत् ), कथा का प्रमुख उद्देश्य तत्त्वप्रतिपादन होने के कारण, उस जो इसे हर्यश्व राजा से उत्पन्न हुआ था (म. उ. ११४. में ऐतिहासिक दृष्टि से कालविपर्यास के अनेक दोष आये १७); २. प्रतर्दन, जो इसे दिवोदास राजा से उत्पन्न | हैं । उस कथा में हर्यश्व, दिवोदास, उशीनर एवं विश्वामित्र हुआ था ( म. उ. ११५. १५); ३. शिबि, जो इसे | समकालिन बताये गये है, जो ऐतिहासिक दृष्टि से वास्तव उशीनर राजा से उत्पन्न हुआ था (म. उ. ११६.२०); नही है। ४. अष्टक, जो इसे विश्वामित्र ऋषि से उत्पन्न हुआ था। । २. रथध्वज राजा क पुत्र । २. रथध्वज राजा के पुत्र धर्मध्वज की पत्नी, जिसकी (म. उ. ११७. १८)। कन्या का नाम तुलसी था। ३. पूरुपुत्र जनमेजय 'प्रथम' की पत्नी । ययाति का उद्धार-आगे चल कर, इसका पिता ४. स्कंद की अनुचरी एक मातृका (म. श. ४५.७)। ययाति अपने इहलोक के पुण्यकर्मों के कारण स्वर्ग को माधुकि-एक आचार्य का पैतृक नाम, जिसे मान्यता प्राप्त हुआ। किन्तु वहाँ ययाति ने देव, ऋषि एवं ब्राह्मणों नही प्रदान की गयी थी (श. ब्रा. २.१.४.२७)। . का अवमान किया, जिस पाप के कारण, देवों ने उसे स्वर्ग से भ्रष्ट कराया । फिर उसने देवों की प्रार्थना की, | माधुच्छंदस-विश्वामित्रकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । 'मेरे पापनाशनार्थ मुझे सुजनसंगति का लाभ मिले, जिस | अघमर्षण एवं जेतृ नामक आचार्यों का पैतृक नाम 'माधुकारण मैं स्वर्ग को पुनः प्राप्त कर सकूँ। | च्छंदस' बताया गया है। माध्यंदिन--वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। . देवों ने ययाति की इस प्रार्थना सुन ली, एवं उसके पौत्र एवं माधवी के पुत्र वसुमनस्, प्रतर्दन, शिबि एवं २. एक शाखाप्रवर्तक आचार्य, जो वायु के अनुसार अष्टक जहाँ यज्ञ कर रहे थे, उसी नैमिषारण्य में उन्हों ने व्यास की यजुःशिष्य परंपरा में से याज्ञवल्क्य के पंद्रह ययाति को ढकेल दिया। माधवी के चारो पुत्रों ने स्वर्ग शिष्यों में से एक था। शुक्लयजुर्वेदसंहिता एवं शतपथ . से भ्रष्ट हुए अपने मातामह का अत्यंत आदरभाव से ब्राह्मण के काण्व एवं माध्यंदिन शाखाओं के स्वतंत्र ग्रंथ स्वागत किया, एवं अपने यज्ञों का एवं धर्माचरण का सारा उपलब्ध है। उनमें से माध्यंदिन शाखा का, एवं उस शाखा पुण्य स्वीकारने की प्रार्थना उसे की। | के ग्रंथों का यह प्रवर्तक आचार्य था। . ___ ययाति को पुण्यदान--इतने में माधवी वहाँ प्रविष्ट ___ शुक्लयजुर्वेद की एक शिक्षा की रचना भी इसने की हुयी, एवं पुत्र एवं पौत्रों के पुण्य का स्वीकार करने का | थी, जिसमें कुल चालीस श्लोक हैं। शुक्लयजुर्वेद की सर्वप्रथम अधिकार पिता एवं पितामह को ही है, ऐसी | 'लघुमाध्यंदिन' नामक एक अन्य शिक्षा भी इसने लिखी धर्माज्ञा इसने ययाति के बतायी। फिर अपने चारों पुत्रों थी, जिसमें कुल अट्ठाईस श्लोक हैं । के यज्ञकर्म का पुण्य स्वीकारने की, एवं उसके बल से | माध्यंदिनायन-एक आचार्य, जो सौकरायण नामक स्वर्ग में पुनः प्रविष्ट होने की इसने उसे प्रार्थना की। ऋषि का शिष्य था । माध्यंदिन का वंशज होने के कारण, इस प्रकार माधवी ने गालव ऋषि को संकटमुक्त कराया, इसे यह नाम प्राप्त हुआ था। इसके शिष्य का नाम एवं अपने पुत्रों के पुण्य का दान स्वर्ग से च्युत अपने जाबालायन था (बृ. उ. ४.६.२ काण्व.)। पिता को कर उसे स्वर्गप्राप्ति कराया (म. आ. ८७; म. माध्यम-वैदिक ऋषिसमुदाय का एक सांकेतिक नाम, उ. १०४-११८)। जो ऋग्वेद के दूसरे मण्डल से ले कर सातवे मण्डल तक अपनी कन्या के द्वारा ययाति का उद्धार होने की | के रचयिता ऋषियों के लिए प्रयुक्त किया जाता है (को. कथा मत्स्य में भी प्राप्त है । वहाँ वसुमनस् , प्रतर्दन, शिबि | बा. १२.३; ऐ. आ. २.२.२)। 'ऋग्वेद के मध्य से एवं अष्टक इन चारों का मातामह ययाति था, ऐसा | संबधित' अर्थ से इन्हे 'माध्यम' नाम प्राप्त हुआ निर्देश भी प्राप्त है। किन्तु मत्स्य में ययाति राजा के कथा | होगा। आश्वलायन गृह्यसूत्र के ब्रह्मयज्ञांगतर्पण में इनका में माधवी का निर्देश प्राप्त नहीं हैं (मत्स्य. ३५-४२)। निर्देश प्राप्त है (आश्व. गृ. ३.४.२)। . ६४२
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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