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अलंबुसा
प्राचीन चरित्रकोश
अवधूतेश्वर
के साथ चक्रतीर्थ पर स्नान किया। उससे सहस्रानीक | घटोत्कच तथा कर्ण का युद्ध चालू था । कर्ण घटोत्कच के तथा अलंबुसा ब्रह्मशाप से मुक्त हो कर पूर्वस्थिति के प्रत हाथ से आज बच नही सकता, ऐसा प्रतीत होने लगा। गये (स्कन्द, ३.१.५.)।
इतने में इसने दुर्योधन से कहा कि, घटोत्कचसहित अलम्म परिजानत-एक आचार्य (माल्य देखिये)। पांडवों का नाश मै करुंगा। दुर्योधन ने हाँ भरते ही यह
अलर्क-(सो. क्षत्र.) काशी के दिवोदास राजा का | भीम से युद्ध करने लगा। इसका रथ घटोत्कच के समान प्रपौत्र । इसके पिता का नाम वत्स, प्रतर्दन तथा ऋतध्वज ही शतअश्वों का था । इसने भीम को इतना अधिक प्राप्त है। दिवोदास प्रेम से प्रतर्दन को ही 'वत्स-वत्स' |
जर्जर किया कि, कृष्ण ने घटोत्कच को पुकार कर, इसके कहता था। प्रतदन सत्यनिष्ट होने के कारण उसे ऋत- | साथ युद्ध करने के लिये कहा। तब घटोत्कच ने कर्ण से ध्वज ऐसा दूसरा नाम भी था (ह. वं. १.२९, विष्णु. युद्ध करना छोड़ कर, इसके साथ युद्ध प्रारंभ किया। ४.९; भा. ९.१७)। गरुड पुराण के मत मे, दिवोदास
उसमें घटोत्कच के द्वारा यह मारा गया (म. द्रो. का पुत्र प्रतर्दन तथा उसका पुत्र ऋतध्वज है (१३९)।
१५१-१५३)। इसको बक ज्ञाति (म. द्रो. १५१.३.३३) हरीवश में प्रतर्दन का पुत्र वत्स तथा उसका पुत्र अलर्क | तथा बक का भाई भा कहा है
तथा बक का भाई भी कहा है (म. द्रो. १५३.४)। है। इसने काशी म ६६ हजार वर्षों तक राज्य किया (ह. अलाय्य-इसका परशु नष्ट हुवा (ऋ. ९.६७.२०)। वं. १.२९; भा. ९.१७: ब्रह्म. ११)। यह ब्राह्मणों का बड़ा अलि-वारे चिष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में सत्कर्ता था तथा अत्यंत सत्यप्रतिज्ञ था। इसने एक बार | से एक। अंध ब्राह्मण को वर मांगने के लिये कहा, तब उसने वर | अलिन--ऋग्वेद में यह शब्द एक बार बहुवचन में मांगा कि, तुम अपनी आखे मुझे दे दो। वचनपूर्ति के | आया है। वहाँ तत्सुओं की गायें भगाई गई. इसलिये लिये इसने अपनी आँखे निकाल कर उसे दे दी (वा. | इन्हें आनंद हुआ है। यह लोग सुदास के विरोधी होने रा.अयो. १२.४३)। लोपामुद्रा की कृपा से यह सदैव चाहिये (ऋ. ७.१८.७)। तरुण रहा, तथा इसका स्वरूप कभी भी नहीं बिगडा।
अलिपिंडक-कश्यप तथा कद्र का पुत्र। उसी की कम से इसे दीर्घायुष्य प्राप्त हुआ। निकुंम्भ के
अलीकयु वाचस्पत्य--एक यज्ञशास्त्रज्ञ (सां. बा. शाप से निर्मानुष बनी हुई वाराणशी, क्षेमक को मार कर
२६. ५:२८.४)। इसने पुनः बसाई (वायु. ९२.६८, ब्रह्माण्ड ३.६७)।। इसने वाराणशी नगरी की पुनः स्थापना की (ह. वं. अलोलुप- धृतराष्ट्र के शतपुत्रों में से एक।
अल्पमेधस्--सुमेधस् नामक देवगणों में से एक । इसने प्रथम धनुर्बल से सब पृथ्वी जीती, तथा बाद में अवगाह-(सो. यदु.) मत्स्य के मतानुसार वसुदेव इसका अन्तःकरण सूक्ष्म ब्रह्म की ओर झुका । नाक, कान, |
तथा वृकदेवी का पुत्र । मन, जिव्हा इ. इन्द्रिय काबू में रखने के लिये, इसने अवतंस-(सो.) भविष्य के मत में सोमवर्धन का पुत्र नाक कानादिकों से संभाषण किया (म. आश्व.३०.)।। अवत्सार काश्यप-सूक्तदृष्टा (ऋ. ९.५३-६०ः इसे संतति नामक एक पुत्र था ( भा. ९.१४; विष्णु. ४.९; | ऐ. बा. २. २४)। इसे अवत्सार प्राश्रवण कहते हैं वायु. ९२,६६)।
(सां. बा. १३.३) । एवावद्, यजत तथा सध्रि के साथ १. २. शत्रुजित्पुत्र ऋतुध्वज से मदालसा को उत्पन्न चौथा। इसका उल्लेख हैं (ऋ. ५. ४४. १०)। पुत्र । इसे मदालसा तथा दत्तात्रेय ने निवृत्तिमार्ग का अवधूतेश्वर-शंकर का एक अवतार । एक बार, शंकर उपदेश कर ज्ञानी बनाया (मार्क. २३-४०)। इसके | के दर्शन के लिये इन्द्र तथा बृहस्पति कैलाश पर्वत पर जा ज्येष्ठ बंधु सुबाहु ने का शिराज की सहायता से इस पर रहे थे। उनकी परीक्षा लेने के लिये, शंकर मार्ग में दिगंबर आक्रमण किया । अत्यंत संकट में रहने पर, माता की | एवं भयंकर रूप लेकर बैठा था। बार बार बता कर भी, न इच्छानुसार त्यागी बन कर इसने अपना राज्य सुबाहु | तो वह मार्ग छोडता था, न ही कुछ बोलता था। अन्त में को दिया ( मार्क. ३४)।
इन्द्र ने वज्र बाहर निकाला। उस वज्र का स्तम्भन शंकर । अलायुध---एक मनुष्यभक्षक राक्षस (म. द्रो. ने किया, तथा उसके तृतीय नेत्र से क्रोधाग्नि निकाला। ७१.२७; श. २.३४)। द्रोणयुद्धकाल में रात्रि के समय, बृहस्पति की प्रार्थना से, वह अग्मि अन्त में लवणोदधि में