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________________ 'मरुत् प्राचीन चरित्रकोश मरुत् में अग्निमय विद्युत् , तथा सर पर स्वर्ण शिरस्त्राण बतलाया में इनके नाम की व्युत्पक्ति कुछ अलग ढंग से जरूर गया है (ऋ. ५.५४ )। इनके हाथ में धनुषबाण तथा | दी गयी है। उसमें कहा गया है कि, जन्म लेते ही इन्हें भाले रहते हैं। बज्र तथा एक सोने की कुल्हाडी से भी ज्ञात हुआ कि इन्हे मृत्युयोग है, जिस कारण ये रोने लगे। ये युक्त हैं (इ. ५.५२.१३, ८.८.३२)। इन्हें रोता देखकर इनके पिता रुद्र ने इन्हें 'मा रोदीः' - रथ--इनके स्वर्णिम रथ विद्युत् के समान प्रतीत होते | ( रुदन मत करो) कहा। इस कारण इन्हें मरुत् नाम प्राप्त हैं, जिनके चक्रधार एवं पहिये स्वर्ण के बने हैं (ऋ. १. | हआ ( वेदार्थदीपिका २.३३)। ६४.८८)। जो जवाश्व इनके रथों को खींचते हैं, वे चित- ऋग्वेद में इन्हें सम्बोधित करके लिखे गये सूक्त में एक कबरे हैं (ऋ. ५.५३.१)। सभी प्राणी इनसे भयभीत | संवाद प्राप्त है, जिसमें इन्हें कुशल तत्त्वज्ञानी कहा गया रहते हैं। इनके चलने से आकाश भय से गर्जन करने | है, जो तत्त्वज्ञान के सम्बन्ध में अगस्त्य एवं इन्द्र से विचारलगता है। इनके रथों से पृथ्वी तथा चट्टाने विदीर्ण हो| विमर्श करते हैं (ऋ. १.१६५)। जाती है (ऋ. १. ६४; ५.५२)। इस लिए इन्हें प्रचण्ड | दिति के पुत्र--महाभारत तथा पुराणों में इन्हें दिति वायु के समान वेगवान् कहा गया है (ऋ. १०.७८)। । एवं कश्यप के पुत्र कहा गया है, एवं इनकी कुल संख्या ____ कार्य-मरुतों का प्रमुख कार्य वर्षा कराना है। ये| उन्चास बतायी गयी है। वहाँ इनकी जन्मकथा निम्न समुद्र से उठते हैं, एवं वर्षा करते हैं (ऋ. १.३८)। ये प्रकार से दी गयी है--दिति के कश्यप ऋषि से सारे जल लाते हैं, एवं वर्षा को प्रेरित करते हैं (ऋ. ५.५८)। जब | उत्पन्न पुत्र विष्णु द्वारा मारे गये । तत्पश्चात् दिति ने कश्यप ये वर्षा करते हैं, तब मेघों से अंधकार उत्पन्न कर देते हैं से वर माँगा, ' इन्द्र को मारनेवाला एक अमर पुत्र मुझे (ऋ. १.३८)। ये आकाशीय पात्र एवं पर्वतों से जल- प्राप्त हो । दिति द्वारा माँगा हुआ वरदान कश्यप ने धारायें गिराते हैं, जिस कारण पृथ्वी की एक नदी को प्रदान किया, एवं उसे गर्भकाल में व्रतावस्था में रहने के 'मरुवृद्धा' (मरुतों द्वारा वृद्धि की हुयीं) कहा गया | लिए कहा। है (ऋ. १०.७५)। कश्यप के कथनानुसार, दिति व्रतानुष्ठान करते हुए रहने ..गायन-वायु के द्वारा निसृत ध्वनि ही मरुतो का गायन | लगी। इन्द्र को जब यह पता चला कि, दिति अपने गर्भ में है, जिसके कारण इन्हें कई स्थानों पर गायक कहा गया है | उसका शत्रु उत्पन्न कर रही है, तब वह तत्काल उसके पास (ऋ. ५.५२.६०७.३५)। झंझावात के साथ समीकृत आकर उस पुत्र को समाप्त करने के इरादे से साधुवेष में करके इन्हे स्वभावतः कई स्थानों पर इन्द्र की साथी एवं रहने लगा। एकबार दिति से अपने व्रत में कुछ गल्ती मित्र कहा गया है। ये लोग अपनी स्तुतियों तथा गीतों से हुयी कि, इंद्रने योगबल से उसके गर्भ में प्रवेश कर उसके इन्द्र की शक्ति एवं सामर्थ्य को बढ़ाते है (ऋ. १.१६५)। गर्भ के सात टुकड़े कर दिये। किन्तु जब वे न मरे तब उसने ये लोग इन्द्र के पुत्रों के समान है, जिन्हें इन्द्र का भ्राता | उन सातों टुकडो के पुनः सात टुकडे कर के उन्हें उन्पचास भी कहा गया है (ऋ. १.१००; १.१७०)। भागों में काट डाला। इसके द्वारा काटे गये टुकडे रोने झंझावात की देवता-विद्यत् , आकाशीय गर्जन, वायु | | लगे, तब इन्द्र ने 'मा रोदीः' कहकर उन्हें शान्त किया, एवं वर्षा के साथ इनका जो विवरण प्राप्त है, इससे स्पष्ट | जिसके कारण इन्हे मरुत् नाम प्राप्त हुआ। है कि मरुत्गण झंझावात का देवता है । वैदिकोत्तर इन्हे टुकड़े टुकड़े कर दिया गया, एवं फिर भी जब ये न ग्रन्थों में इन्हें 'वायु'मात्र कहा गया है। किन्तु वैदिक | मरे, तब इन्द्र समझ गया कि ये अवश्य देवता के अंश हैं। साहित्य में ये कदाचित् ही वायुओं का प्रतिनिधित्व करते गर्भ के अंशों ने भी इंद्र स्तुति की कि, उन्हे मारा न . हैं, क्योंकि इनके गुण मेघों एवं विद्युत् से गृहीत हैं। जाये । तब इन्द्र ने कहा, 'आज से तुम सब हमारे भाई हो, व्युत्पत्ति-मरुत् शब्द की व्युत्पत्ति पर विचार करने से तथा तुम सब को हम स्वर्ग ले जायेंगे।' पता चलता है कि मरुत् 'मर' धातु से निसृत हैं, जिसके कालान्तर में दिति के उन्पचास पुत्र हुए, जिन्हे देखकर अर्थ ' मरना,' 'कुचलना' अथवा 'प्रकाशित होता' तथा वह आश्चर्यचकित हो गयी एवं साधुवेषधारी इन्द्र से 'शब्द' होते हैं। इसमें से 'प्रकाशित' तथा 'शब्द' मरुत् | उसका कारण पूछने लगी। तब इन्द्र ने एक के स्थान पर के व्यक्तित्व एवं वर्णन से मेल खाते हैं एवं इसके अन्य कई पुत्र होने के रहस्य का उद्घाटन करते हुए सारी कथा अर्थ लेना अनुचित सा प्रतीत होता हैं। वेदार्थदीपिका | बता कर कहा, ' ये सारे पुत्र तुम्हारे तपःसामर्थ्य पर ही ६२३
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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