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________________ मनु स्वायंभुव प्राचीन चरित्रकोश मनु स्वायंभुव कि, स्वायंभुव मनु की स्मृति यास्क के पूर्व में वर्तमान | नही जा सकता। महाभारत के अनुसार, स्वायंभुव मनु थी। गौतम तथा वसिष्ठ आदि स्मृतिकारों ने मनु के | धर्मशास्त्र का, एवं प्राचेतस मन अर्थशास्त्र के आचार्य माने । मतों को दिया है । आपस्तंब ने भी लिखा है कि, मनु गये हैं (म. शां ११.१२,५७.४३)। इस प्रकार प्राचीनश्राद्धकर्म का प्रणेता था (आप. ध. २.७.१६.१)। काल में धर्मशास्त्र एवं अर्थशास्त्र पर लिखे हुए दो स्वतंत्र धर्मशास्त्र की निर्मिति---महाभारत के अनुसार, ब्रह्मा ग्रन्थ उपलब्ध थे, जो उक्त मनुओं द्वारा लिखित थे। ने मनु के द्वारा धर्मविषयक एक लाख श्लोकों की रचना इस प्रकार सम्भव है कि, किसी अज्ञात व्यक्ति ने इन दोनों करवायी। आगे चलकर, उन्हीं श्लोकों का आधार लेकर ग्रन्थों की सामग्री के साथ साथ प्राचीन धर्मशास्त्रमर्मज्ञों उशनस् एवं बृहस्पति ने धर्मशास्त्रों का निर्माण किया (म. की विचारधारा को और जोड़कर, आधुनिक मनुस्मृति के स्वरूप का निर्माण किया हो। शां. ३३२.३६ )। उपलब्ध मनुस्मृति महाभारत से उत्तरकालीन मानी । नारद गद्यस्मृति के अनुसार, मनु ने एक लाख | जाती है। सम्भव है, इस ग्रन्थ की रचना के पूर्व 'बृहदश्लोकों के धर्मशास्त्र की रचना कर नारद को प्रदान किया, मनुस्मृति' एवं 'वृद्धमनुस्मृति' नामक दो बड़े स्मृतिजिसमें एक हज़ार अस्सी अध्याय, एवं चौवीस प्रकरण | ग्रन्थ उपलब्ध थे। इन्हीं ग्रन्थों को संक्षिप्त कर दो हजार थे। उसी धर्मशास्त्र ग्रन्थ को नारद ने बारह हज़ार श्लोकों | सात सौ इलोकोंवाली मनुस्मृति की रचना भृगु ने की हो। में संक्षिप्त कर के मार्कडेय ऋषि को दिया। उसी ग्रन्थ मनुस्मृति ग्रंथ में इस रचना का जनक वायंभुव मनु ... को आठ हज़ार श्लोकों में संक्षिप्त कर मार्कंडेय ने सुमति | कहा गया है, एवं उसके साथ अन्य छः मनुओं के भार्गव को प्रदान किया, जिसने आगे चलकर इसी ग्रन्थ को | नाम दिये गये हैं (मन १.६२)। चार हज़ार श्लोकों में संक्षिप्त किया। मेधातिथि ने नारद | मनुस्मृति में बारह अध्याय हैं, एवं दो हजार छः सौ. स्मृति के इस उद्धरण को दुहराया है। चौरान्नवे श्लोक हैं । उस ग्रन्थ में प्राप्त अनेक श्लोक वसिष्ठ । मनुस्मृति का प्रणयन-मनुस्मृति का जो संस्करण | एवं विष्णु धर्मसूत्रों से मिलते जुलते हैं। इस ग्रन्थ में प्राप्त आज उपलब्ध है, उस ग्रन्थ के अनुसार, ब्रह्मा से विराज | धर्मविषयक विचार गौतम,बौधायन एवं आपस्तंब से मिलते नामक ऋषि की उत्पत्ति हुयी, जिससे आगे चल कर मन | जुलते हैं । उक्त ग्रंथ की,शैली अत्यधिक सरल है, जिसमें उत्पन्न हुआ। पश्चात् मनु से भृगु, नारद आदि दस | पाणिनि के व्याकरण का अनुगमन किया गया है। इस ऋषि पैदा हुए। धर्मशास्त्र का शिक्षण सर्वप्रथम ब्रह्मा ग्रंथ का तत्त्वज्ञान एवं शब्दप्रयोग कौटिल्य अर्थशास्त्र की ने मनु को प्रदान किया, जिसे आगे चलकर इसने अपने | शैली से काफी साम्य रखता है। इन पुत्रों को दिया ( मनु. १.५८)। मनुस्मृति के प्रणयन विषायनु क्रमणिका-मनु-मृति में कुल बारह अध्याय की कथा इस प्रकार है:-एक बार कई ऋषिगण चारो वर्णों | हैं, जिनमें निम्नलिखित प्रमुख विषयों पर विचारविवेचन से सम्बन्धित धर्मशास्त्रविषयक जानकारी प्राप्त करने के | किया गया हैं :-. लिए आचार्य मनु के पास आये। मनु ने कहा, 'यह सारी| अ. १.-धर्मशास्त्र की निर्मिति, एवं मनुस्मृति की जानकारी तुम लोगों को हमारे शिष्य भृगु द्वारा प्राप्त | परम्परा। होगी' (मनु. १. ५९-६०)। पश्चात् , भृगु ने मनु की ___भ. २.--धर्म क्या है ?-धर्म की उत्पत्ति किससे हुयी धर्मविषयक सारी विचारधारा उन सबके सामने रख्खी।। है ?-धर्मशास्त्र का अधिकार किन किन को प्राप्त है-संस्कारों वही मनुस्मृति है । उस ग्रन्थ में मनु को 'सर्वज्ञ' कहा | की आवश्यकता क्या है ? गया है (मनु. २.७)। ____ अ. ३.--ब्रह्मचर्यव्रत का पालन कैसे किया जाये? मानवधर्मशास्त्र का पुनसंस्करण--मैक्समूलर के ब्राहाण किस वर्ण की कन्या से शादी करे?- विवाहों के अनुसार, प्राचीनकाल के मानवधर्मसूत्र का पुनः संस्करण आठ प्रकार-पतिपत्नी के कर्तव्य ।। कर के मनुस्मृति का निर्माण किया गया है (सैक्रिड बक्स अ. ४.-गृहस्थधर्मियों का कर्तव्य । आफ ईस्ट, खण्ड. २५ पृष्ठ. १८)। आधुनिक काल में ___ अ. ५.--घर में किसी की मृत्यु अथवा जन्म के प्राप्त 'मनुस्मृति' मनु के द्वारा लिखित है, अथवा मनु | समय अशौच का कालनिर्णय । के नाम को जोड़कर किसी अन्य द्वारा लिखी गयी है, कहा| अ. ६.--वानप्रस्थधर्म का पालन । ६१४
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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