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मत्स्य
प्राचीन चरित्रकोश
मत्स्य
की शरण में आकर उसे वेदों की रक्षा की प्रार्थना की। तब गया है। उस ग्रन्थ के अनुसार, प्रलय के पश्चात् मत्स्याविष्णु ने मत्स्य का अवतार लेकर मकरासुर का वध किया | वतारी विष्णु ने सत्यव्रत राजा को मन्वन्तराधिपति प्रजापति एवं उससे वेद लेकर ब्रह्मा को दिये।
बनने का आशीर्वाद दिया, एवं उसे मत्स्यपुराण संहिता का ' आगे चलकर एक बार फिर मकर दैत्य ने वेदों का हरण उपदेश भी दिया (भा. १.३.१५, ८.२४; मत्स्य. १. किया, जिससे विष्णु को मत्स्य का अवतार लेकर पुनः ३३-३४) । उस आशीर्वाद के अनुसार, सत्यवत राजा वेदों का संरक्षण करना पड़ा (पद्म. उ. २३०)। वैवस्वत मन्वंतर में से कृतयुग का मनु बन गया। मत्स्यपुराण में मत्स्यावतार की कथा निम्न प्रकार से
विष्णुधर्म के अनुसार, प्रलय के पश्चात् केवल सप्तर्षि दी गयी है :- पच्चीसवें कल्प के अन्त में ब्रह्मदेव की
जीवित रहे, जिन्हे मत्स्यरूपधारी विष्णु ने शृंगी बनकर रात्रि का आरम्भ हुआ। जिस समय वह नींद में था, उसी
हिमालय के शिखर पर पहँचा दिया, एवं उनकी जान
TARATI समय प्रलय हुआ, जिससे स्वर्ग, पृथ्वी आदि लोग डूब |
बचायी (विष्णुधर्म. १.७७; म. व. १८५)। . गये। निद्रावस्था में ब्रह्मदेव के मुख से वेद नीचे गिरे, तथा हयग्रीव नामक दैत्य ने उनका हरण किया। इसीसे
मत्स्यकथा का अन्वयार्थ--मनु का निवासस्थान हयग्रीव नामक दैत्य का नाश करने के लिए भगवान्
समुद्र के किनारे था। आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि से, समुद्र विष्णु ने सूक्ष्म मत्स्य का रूप धारण किया, तथा वह
में बाढ़ आने के पूर्व समुद्र की सारी मछलियों तट की . कृतमाला नदी में उचित समय की प्रतीक्षा करने लगा।
| ओर भाग कर किनारे आ लगती है, क्योंकि बाढ़ के समय इसी नदी के किनारे वैवस्वत मनु तप कर रहा था।
उन्हे गन्दे जल में स्वच्छ प्राण वायु नहीं प्राप्त हो पाती।
| सम्भव यही है कि, पृथ्वी में जलप्लावन के पूर्व समुद्र से एक दिन तर्पण करते समय उसकी अंजलि में एक छोटासा
सारी मछलियों तट की ओर भगने लगी हों, तथा उनमें । मत्स्य आया । वह इसे पानी मे छोड़ने लगा कि,
से एक मछली मन के सन्ध्या करते समय अंजलि में आ . मत्स्य ने उससे अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना की। तब
गयी हो । इससे ही मनु ने समझ लिया होगा किं, बहुत . दयालु मनु ने इसे कलश में रक्खा । यह मत्स्य उत्तरोत्तर
बड़ी बाढ़ आनेवाली है, क्यों कि सारी मछलियाँ किनारे बढ़ता रहा, अन्त में मनु ने इसे सरोवर में छोड़ दिया।
| आ लगी है । इस संकेत से ही पूर्वतैयारी करके तथापि इसका बढ़ना बन्द न हुआ। त्रस्त होकर मनु
उसने अपने को जलप्लावन से बचाया हो। इसी कारण इसे समुद्र में छोड़ने लगा, तब इसने उससे प्रार्थना की,
प्रलयोपरांत मनु को वह मछली साक्षात् विष्णु प्रतीत हुयी 'मुझे वहाँ अन्य जलचर प्राणी खा डालेंगे, अतएव
हो। बहुत सम्भव है कि, मत्स्यावतार की कल्पना इसी
र तुम मुझे वहाँ न छोड़ कर मेरी रक्षा करो'। तब मनु ने
से की गयी हो। आश्चर्यचकित होकर इससे कहा, 'तुम्हारे समान सामर्थ्यवान् जलचर मैंने आजतक न देखा है, तथा न
२. मत्स्यदेश में रहनेवाले लोगों के लिये प्रयुक्त सामुहिक सुना है। तुम एक दिन में सौ योजन लंबेचौड़े हो गये नाम । ऋग्वेद में इनका निर्देश सुदास राजा के शत्रुओं के हो, अवश्य ही तुम कोई अपूर्व प्राणी हो । तुम परमेश्वर रूप में किया गया है (ऋ. ७.१८.६ )। शतपथ ब्राह्मण हो, तथा तुमने जनकल्याण हेतु ही जन्म लिया होगा। में ध्वसन् द्वैतवन राजा को मत्स्य लोगों का राजा ___ यह सुनकर मत्स्य ने कहा, 'आज से सातवें दिन सर्वत्र (मात्स्य ) कहा गया है (श. ब्रा. १३.५.४.९)। ब्राह्मण प्रलय होगी, तथा सारा संसार जलमग्न हो जायेगा।
ग्रंथों में वश एवं शाल्व लोगों के साथ इनका निर्देश प्राप्त इसलिए नौका में सप्तर्षि, दवाइयाँ, बीज इत्यादि लेकर ह ( का. बा. ४.१; श. बा. १.२.९)। मनु के अनुसार, बैठ जाओ। अगर नौका हिलने लगे तो वासुकि की रस्सी
| मत्स्य, कुरुक्षेत्र, पंचाल, शूरसेनक आदि देशों को 'ब्रह्मर्षि बनाकर मेरे सींग में बाँध दो'।
देश' सामुहिक नाम प्राप्त था (मनु. २.१९; ७.१९३)। प्रलय आने पर मनु ने वैसा ही किया, एवं मत्स्य की महाभारत में इन लोगों का एवं इनके देश का निर्देश सहायता के द्वारा वह प्रलय से बचाया गया (मत्स्य. अनेक बार आता है, जहाँ इन्हे धर्मशील एवं सत्यवादी १-२, २९०)।
कहा गया है (म. क. ५.१८)। पाण्डवों के वनवासकाल भागवत में मत्स्यद्वारा बचाये गये राजा का नाम में, वारणावत से एकचक्रा नगरी को जाते समय पाण्डव वैवस्वत मनु न देकर दक्षिण देशाधिपति सत्यत्रत दिया। इस देश में कुछ काल तक ठहरे थे (म. आ. १४४.२)।
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