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प्राचीन चरित्रकोश
मतंग
atri तक और तपस्या की । किन्तु इन्द्र ने फिर प्रकट होकर यही कहा, 'अप्राप्य वस्तु की कामना करना व्यर्थ है । ब्राह्मणत्व सरलता से नहीं प्राप्त होता, उसके प्राप्त करने के लिए अनेक जन्म लेने पडते है ' । किन्तु यह इन्द्र के उत्तर से सन्तुष्ट न हुआ, और गया में जा कर अंगूठे के बल खड़े होकर इसने पुनः सौ वर्षों तक ऐसी तपस्या की, कि केवल अस्थिपंजर ही शेष बच्चा
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अन्त में इन्द्र ने इसे पुन दर्शन दिया और वहा, 'ब्राह्मणत्व छोडकर तुम कुछ भी माँग सकते हो ' । तब इसने इन्द्र से निम्नलिखित वर प्राप्त किये:-मनचाही महों पर बिहार करना, जो चाहे यह रूप लेना, आकाशगामी होना, ब्राह्मणों तथा क्षत्रियों के लिए पूज्य होना, एवं अक्षय कीर्ति की प्राप्ति करना इन्द्र ने इसे यह भी वर दिया, 'स्त्रियाँ ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए तुम्हारी पूजा करेंगी, एवं छन्दोदेव नाम से तुम उन्हे पूज्य होगे ।'
आगे चलकर मतंग ने देहत्याग किया, एवं इन्द्र से प्राप्त वरों के बल पर यह समस्त मानवजाति के लिए पूज्य बना ।
शबरी का गुरु था ( वा. रा. अर. ७४) ।
५. इक्ष्वाकुवंशीय राजा त्रिशंकु का नामांतर (म. आ. ६५: २१-२४) । वसि ऋषि के पुत्रों के शाप के कारण, त्रिशंकु को मतंग-अवस्था प्राप्त हुयी, जिस कारण उसे यह नाम प्राप्त हुआ (त्रिशंकु देखिये ) |
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मति दक्ष प्रजापति की एक कन्या, जो धर्म की पत्नी (म. आ. ६०.१४) ।
२. एक देव, जो स्वायंभुव मन्वन्तर के जित नामक देवों में से एक था।
२. आभूतरजस् देवों में एक
४. भव्य देवों में से एक ।
मतिनार-- (सो. पूरु. ) पूरुवंशीय ' अंतिनार ' राजा का नामान्तर । इसे ' रंतिनार' एवं 'रंतिभार' नामान्तर भी प्राप्त थे ( म. आ. ८९.१० - १२ ) ।
महाभारत में इसे पूरु राजा के पौत्र अनाधृष्टि ( रुचेयु) का पुत्र कहा गया है, एवं इसके तंसु महान् अतिरथ द्रुह्यु नामक चार पुत्र दिये गये है ।
मत्स्यावतार - पृथ्वी पर मत्स्यावतार किस प्रकार हुआ, इसकी सब से प्राचीनतम प्रमाणित कथा शतपथ ब्राह्मण में प्राप्त है। एक बार, आदिपुरुष वैवस्वत मनु प्रातः काल ४. एक आचार्य, जो दाशरथि राम को फल देनेवाले के समय तर्पण कर रहा था, कि अयं देते समय उसकी अंजलि में एक 'मत्स्य' आ गया । 'मत्स्य' ने राजा मनु से सृष्टिसंहार के आगमन की सूचना से अवगत कराते हुए आश्वासन दिया कि आपत्ति के पूर्व ही यह मनु को सुरक्षित रूप से उत्तरगिरि पर्वत पर पहुँचा देगा, जहाँ प्रलय के प्रभाव की कोई सम्भावना नहीं। इसके साथ ही इसने यह भी प्रार्थना की कि जबतक यह बड़ा न हो तब तक मनु इसकी रक्षा करें ।
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मत्कुणिका—रकंद की अनुचरी एक मातृका ( म. श. ४५.१९) । मांडारकर संहिता में 'मन्यनिका पाठ प्राप्त है।
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मत्स्य
मत्त - रावण का भाई एवं लंका का एक बलाढ्य राक्षस, जिसका ऋपभ नामक वानर ने वध किया।
२. रावण के महापार्थ नामक अमात्य का नामान्तर । अपने पश्चिमदिग्विजय के समय जीता था ( म. स. मत्तमयूर - एक क्षत्रियसमुदाय, जिसे कुछ ने २९.५)।
मत्स्य - - विष्णु के दशावतारों में से प्रथम । भगवान् विष्णु ने अखिल मानवजाति के कल्याण के लिए एवं वेदों का उद्धार करने के लिए जो दस अवतार पृथ्वी पर लिए, उनमें से यह प्रथम है पद्म के अनुसार, शंखासुर द्वारा वेदों के हरण किये जाने पर उनकी रक्षा के लिए विष्णु ने यह अवतार लिया (पद्म. उ. ९०-९१ . १) । भागवत के अनुसार, विष्णु का यह वान अवतार चाक्षुष मन्वन्तर काल में उत्पन्न हुआ (भा. १.३.१५ ) ।
यह ' मत्स्य' जब बड़ा हुआ, तब मनु ने उसे महासागर में छोड़ दिया। पृथ्वी पर अमल होने पर समस्त प्राणिमात्र बह गये । एकाएक मनु के द्वारा बचाया हुआ मत्स्य प्रकट हुआ, एवं इसने मनु को नौका में बैठाकर उसे हिमालय पर्वत की उत्तरगिरि शिखर पर सुरक्षित पहुँचा दिया। आगे चलकर मनु ने अपनी पत्नी इड़ा के द्वारा नयी मानव जाति का निर्माण किया (श. बा. १०८.१.१ मनु वैवस्वत देखिये)
पुराणों में- पद्म में मत्स्यावतार की यह कथा कुछ अलग ढंग से दी गयी है। कश्यप ऋषि को दिति नामक पत्नी से उत्पन्न मकर नामक दैत्य ने ब्रह्मा को धोखा देकर वेदों का हरण किया, एवं इन वेदों को लेकर वह पाताल में भाग गया। वेदों के हरण हो जाने के कारण, सारे विश्व में अनाचार फैलने लगा, जिससे पीड़ित होकर ब्रह्मा में विष्णु
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