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मखोपेत
प्राचीन चरित्रकोश
मंकणक
लाया। नामकबार लिए सांक
मखोपेत--एक दैत्य, जो कार्तिक माह के विष्णु नामक | लोगों के साथ इनका निर्देश आता है ( अ. वे. १५.२. सूर्य के साथ भ्रमण करता है (भा. १२.११.४४)। १.४)। संभव है, ये एवं कीकट दोनों एक ही थे।
मग--शाकद्वीप में रहनेवाले वेदवेत्ता ब्राह्मणों का कौषीतकि आरण्यक में मध्यम प्रातिबोधीपुत्र आदि एक समूह । महाभारत में इनके नाम के लिए 'मङ्ग' | सुविख्यात आचार्यों को 'मगधवासिन्' कहा गया है। पाठभेद प्राप्त है (म. भी. १२.३४)।
इससे प्रतीत होता है कि, कभी कभी मगध में प्रतिष्ठित कृष्णपुत्र सांब ने अपनी उत्तर आयु में सूर्य की कठोर ब्राह्मण भी निवास करते थे। किंतु ओल्डेनवर्ग इसे अपतपस्या की, जिस कारण प्रसन्न हो कर भगवान् सूर्य- वादात्मक घटना मानते है (७.१४)। नारायण ने अपनी तेजोमयी प्रतिमा उसे पूजा के लिए | बौधायन तथा अन्य सूत्रों में मगधगणों का निर्देश एक .. प्रदान की । उस मूर्ति की प्रतिष्ठापना के लिए, सांब ने | जाति के रूप में प्राप्त है (बौ. ध. १.२.१३; आ. श्री.. चन्द्रभागा नदी के तट पर एक अत्यधिक सुंदर मंदिर | २२.६.१८)। उत्तरकालीन साहित्य में, मगध देश को . बनवाया।
भ्रमणशील चारण लोगों का मूलस्थान माना गया है। भगवान सूर्यनारायण के पूजापाठ के लिए सांब ने शतपथ ब्राह्मण के अनुसार, इन लोगों में ब्राह्मणधर्म शाकद्वीप में रहनेवाले मग नामक ब्राह्मणों को बडे ही का प्रसार अत्यधिक कम था, एवं इनमें अनार्य लोगों की सम्मान के साथ बुलाया। सांब के इस आमंत्रण के कारण, संख्या अत्यधिक थी। संभव यही है, कि भारत के पूर्व मग ब्राह्मणों के अठारह कुल चंद्रभागा नदी के तट पर कोने में रहनेवाले इन लोगों पर आर्यगण अपना प्रभाव. उपस्थित हुये, एवं वहीं रहने लगे (भवि. ब्राह्म. ११७ | नहीं प्रस्थापित कर सके थे। सांब. २६)।
मघवत्-एक दानव, जो कश्यप एवं दनु के पुत्रों में भविष्य में इनके नाम के लिए 'भ्रग' पाठभेद प्राप्त | मे था । है। किन्तु वह सुयोग्य प्रतीत नही होता है।
२. इन्द्र का नामांतर (पद्म. भू. ६)। .. 'मग' जाति के ब्राह्मण भारत में आज भी विद्यमान है।
मघा--सोम की पत्नी, जो दक्ष प्रजापति की सत्ताीस मगध--मगध देश में रहने वाले लोगों के लिए | कन्याओं में से एक थी। प्रयुक्त सामुहिक नाम । किसी समय बृहद्रथ राजा एवं मकण-एक दरिद्री ब्राह्मण, जो आकथ नामक उसका बार्हद्रथ वंश इन लोगों का राजा था। शिवभक्त का पिता था (आकथ देखिये)। __ इन लोगों के राजाओं में निम्नलिखित प्रमुख थे:- मंकणक-एक प्राचीन ऋषि, जो मातरिश्वन् तथा जयत्सेन, जरासंध, बृहद्रथ, दीर्घ, एवं सहदेव । सुकन्या का पुत्र था। कश्यप के मानसपुत्र के रूप में __पाण्डु राजा ने इन लोगों के दीर्घ नामक राजा का वध इसका वर्णन प्राप्त है (वामन. ३८.२)। किया था (म. आ. १०५.१०)। महाभारत काल मे बालब्रह्मचारी की अवस्था में सरस्वती नदी के इन लोगों का राजा जरासंध था, जिसका भीम ने वध | किनारे 'सप्त सारस्वत तीर्थ' में जाकर, यह हजारों वर्ष किया था । जरासंध के पश्चात् सहदेव इन लोगों का | स्वाध्याय करते हुए तपस्या में लीन रहा। एकबार इसके हाथ राजा बना । युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समय, सहदेव में कुश गड जाने से घाव हो गया, जिससे शाकरस बहने उपस्थित था (म. स. ४८.१५)। भारतीय युद्ध में लगा। उसे देखकर हर्ष के मारे यह नृत्य करने लगा। मगध देश के लोग पाण्डवों के पक्ष में शामिल थे (म. इसके साथ समस्त संसार नृत्य में निमग्न हो गया । ऐसा उ. ५२.२, सहदेव देखिये)।
| देखकर देवों ने शंकर से प्रार्थना की, कि इसे नृत्य करने __ वैदिक निर्देश--यद्यपि यह नाम ऋग्वेद में अप्राप्य से रोकें; अन्यथा इसके नृत्य के प्रभाव से सभी विश्व है, अथर्व वेद में इनका निर्देश प्राप्त है । वहाँ ज्वर-व्याधि | रसातल को चला जायेगा। को पूर्व में अंग एवं मगध लोगों पर स्थानांतरित होने यह सुनकर ब्राह्मण रूप धारण कर शंकर ने इससे की प्रार्थना की गई है (अ. वे. ५.२२.१४)। यजुर्वेद नृत्य करने का कारण पूछा । तब इसने कहा, 'मेरे हाथ में प्राप्त पुरुषमेध के बलिप्राणियों की नामावली में से जो रस बह रहा है, इससे यह प्रकट है कि, मुझे सिद्धि 'मागध' लोगों का निर्देश प्राप्त है (वा. सं ३०.५.२२; | प्राप्त हो गयी है। यही कारण है कि, आज मै आनंद तै. बा. ३.४.१.१)। अथर्ववेद के व्रात्यसूक्त में व्रात्य | में पागल हो खुशी से नाच रहा हूँ। यह सुनकर ब्राहाण
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