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भेरीस्वना
प्राचीन चरित्रकोश
भोज
भेरीस्वना--स्कंद की अनुचरी एक मातृका (म.श. नामक सुविख्यात तीर्थ का निर्माण हुआ (शिव. शत. ४५.२५)।
८-९; स्कंद. ३.१.२४)। भेरुंड-एक पक्षी, जो जटायु का पुत्र था। _वंश-कालिका पुराण में, भैरवस्तोस्त्र नामक मंत्र की भेल-एक सुविख्यात आयुर्वेदाचार्य, जो पुनर्वस | विस्तृत जानकारी उपलब्ध है । वहाँ इसका वंश ही विस्तृत आत्रेय का शिष्य था। यह आग्निवेश का समकालीन था।
रूप में दिया गया है। उस पुराण के अनुसार, वाराणसी इसके द्वारा 'भेल संहिता' नामक सुविख्यात ग्रंथ की रचना |
का सुविख्यात राजा विजय इसीके वंश में उत्पन्न हुआ की गयी थी।
था। उस राजा ने खाण्डवी नगर को उध्वस्त कर खाण्डव
वन का निर्माण किया था ( कालिका. ९२)। भैमसेन-मैत्रायणी संहिता में निर्दिष्ट एक व्यक्तिनाम
कालिका पुराण के अनुसार, भैरव एवं वेताल ये शिव(मै. सं. ४.६.६)।
पार्षद अपने पूर्वजन्म में महाकाल एवं भंगी नामक भैमसेनि--दिवोदास राजा का पैतृक नाम (क. सं. |
| शिवदूत थे। पार्वती के शाप के कारण, उन्हे अगले जन्म ७.८)।
में मनुष्ययोनि प्राप्त हुी (कालिका. ५३; वेताल' २. घटोत्कच राक्षस का पैतृक नाम (म. भी. ७९.३२)।
देखिये )। भैरव---एक रुद्रगण, जो वाराणसी नगरी का क्षेत्रपाल ____ पुराणों में अष्टभैरवों की नामावली प्राप्त है, जिसमें माना जाता है।
निम्नलिखित भैरव निर्दिष्ट है:- असितांग, रुरु, चण्ड, एकबार विष्णु एवं ब्रह्मा अत्यंत गर्वोद्धत हो गये, एवं | क्रोध, उन्मत्त, कुपति ( कपालिन् ), भीषण एवं संहार । भगवान् शंकर का अपमान करने लगे। इस अपमान के २. धृतराष्ट्र वंश का एक नाग, जो जनमेजय के सर्पसत्र कारण शंकर अत्यधिक क्रुद्ध हुआ, जिससे एक अति- में दग्ध हुआ था (म. आ. ५२. १५)। भयानक शिवगण की उत्पत्ति हुई। वही भैरव है। इसे भोगवती--निबंधन नामक ऋषि की माता (निबंधन निम्नलिखित नामान्तर प्राप्त थे:--कालभैरव, आमर्दक, | देखिये)। पापभक्षण एवं कालराज । लिंग के अनुसार, वीरभद्र नामक
. भोगिन--(भविष्य.) एक राजा, जो वायु तथा शिवपार्षद को भैरव का ही अन्य रूप माना गया है
ब्रह्मांड के अनुसार, मथुरा के शेष नामक राजा का (लिंग. १.९६; वीरभद्र देखिये)।
पुत्र था। ब्रह्महत्त्या-उत्पन्न होते ही, इसने अपने बाये हात की उँगली के नख से ब्रह्मा का पाँचवा सिर तोड़ डाला,
भोज--ऐतरेय ब्राह्मण में प्रयुक्त नृपों की उपाधि क्यों कि, ब्रह्मा के उस मुख से शिव की निंदा की गयी थी।
(ऐ. ब्रा. ८.१२, १४.१७)। इन्हें 'भौज्य' नामांतर भी ब्रह्मा के पाँचवे मुख का इस प्रकार नाश करने के कारण, | प्राप्त है (ए.बा. ७.३२, ८.६, १२, १४, १६)। इसे ब्रह्महत्या का पातक लगा। उस पाप से छुटकारा पाने
ऋग्वेद में भोज शब्द का प्रयोग दाता अर्थ में भी किया के लिए, शंकर ने ब्रह्मा के कपाल को हाथ में ले कर इसे | गया है (ऋ. १०. १०७.८-९)। भिक्षा मांगने के लिए कहा। उसी समय शिव ने ब्रह्महत्या । २. एक लोकसमूह, जो सुदास राजा का अनुचर था। नामक एक स्त्री का निर्माण किया, एवं उसे इसके पिछे | ऋग्वेद के अनुसार, इन लोगों ने विश्वामित्र ऋषि के जाने के लिए कहा।
अश्वमेध यज्ञ में उसकी सहायता की थी (ऋ.३. यह अनेक तीर्थस्थानों में घूमता रहा, किन्तु इसका
५३.७ )। . ब्रह्महत्या का दोष नष्ट न हुआ। अन्त में शिव ने इसे | ३. पुराणों में निर्दिष्ट महाभोज राजा के वंशजों के वाराणसी क्षेत्र में जाने के लिए कहा। शिव के आदेशा- | लिये प्रयुक्त सामूहिक नाम। इन लोगों की एक शाखा नुसार, यह वाराणसी क्षेत्र में गया, जिस में प्रवेश करते | मृत्तिकावत् नगर में रहती थी, जो बभ्र देवावृध नाम ही इसका ब्रह्महत्या का पातक धुल गया। पश्चात् इसके | राजा से उत्पन्न थी हुई (ब्रह्म. १५.४५) । हाथ में स्थित ब्रह्मा का कपाल भी नीचे गिर पडा, एवं | ४. एक राजवंश, जो सुविख्यात यादवकुल में उसे भी मुक्ति प्राप्त हुयी। जिस स्थान पर ब्रह्मा के कपाल | अंतर्गत था (म. आ. २१०.१८)। इन्हे वृष्णि, अंधक, को मुक्ति मिली, उस स्थान पर 'कपालमोचनतीर्थ' | आदि नामांतर भी प्राप्त थे। इस वंश में उत्पन्न एक
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