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________________ भृगु वारुणि प्राचीन चरित्रकोश भृगु वारुण सुविख्यात भार्गव वंश निर्माण हुआ। भृगुवंश के इन हुी। भृगु के इस क्षत्रियब्राह्मण वंश में, निम्नलिखित दो प्रमुख वंशकार ऋषियों का वंशविस्तार निम्नलिखित ऋषि भी समाविष्ट थे:--मत्स्य, मौद्गलायन, सांकृत्य, गाायन, गार्गिय, कपि, मैत्रेय, वध्रयश्व एवं दिवोदास (१) शुक्र का परिवार-शुक्र को अपनी गो नामक (मत्स्य, १९५.२२-२३)। ब्रह्मांड में भार्गव वंश के पत्नी से वरुत्रिन् , त्वष्ट, शंड एवं मर्क ऐसे चार पुत्र हुए। | उन्नीस सूक्तकारों का निर्देश प्राप्त है (ब्रह्मांड, २.३२. उनमें से वरुत्रिन् को रजत् , पृथुरश्मि एवं बृहदंगिरस् १०४-१०६)। वहाँ इन भार्गव वंश के बहुत सारे क्षत्रिय नामक तीन ब्रह्मिष्ठ एवं असुरयाजक पुत्र उत्पन्न हुए (वायु. ब्राह्मण ऋषियों का अंतरभाव किया है। ६५.७८) । वरुत्रिन के ये तीनो पुत्र दैत्यों के धर्मगुरु थे, भृगु-आंगिरस परिवार--भृगु वारुणि, उसका भाई कपि एवं वे देवासुर संग्राम में अन्य दैत्यों के साथ नष्ट हो एवं अंगिरस् आग्नेय, ये तीनो प्राचीन ब्राह्मण कुलों के गये । त्वष्ट्र को त्रिशिरस् विश्वरूप एवं विश्वकर्मन् नामक | आद्य निर्माता ऋषि माने जाते है। प्रारंभ में ये तीनों । ब्राह्मण वंश स्वतंत्र थे । किन्तु आगे चल कर भृगु, कवि दो पुत्र थे। एवं अंगिरस् ये तीनो वंश एकत्रित हुए, जिन्हे 'भृगुशुक्र के अन्य दो पुत्र शंड एवं मर्क शुरु में दैत्यों के आंगिरस' अथवा 'आंगिरस' नाम प्राप्त हुआ (म.अनु. धर्मगुरु थे। किन्तु पश्चात् वे देवों के पक्ष में शामिल ८५.१९-३८)। इस भगु-आंगिरस वंश में भृगु के सात हो गये, जिस कारण शुक्र ने उन्हे विनष्ट होने का शाप पुत्र, एवं अंगिरस् तथा कवि के प्रत्येकी आठ पुत्रों के... दिया। इनमें मर्क से मार्कडेय नामक वंश की उत्पत्ति | के वंशज सम्निलित थे। इस वंश में सम्मिलित हुए हुयी। अंगिरस् एवं कवि के पुत्रों के नाम निम्नलिखित थे:-- भौगोलिक दृष्टि से शुक्र एवं उसका परिवार उत्तरी भारत के मध्यप्रदेश से संबंधित प्रतीत होता है (शुक्र (1) अंगिरस्पुत्र--बृहस्पति, उतथ्य, पयश्य, शांति, . | घोर, विरूप, सुधन्वन् एवं संवर्त । देखिये)। (२) कविपुत्र-कवि, काव्य, धृष्णु, बुद्धिमत् , (२) च्यवन का परिवार-च्यवन ऋषि को शर्याति राजा उशनस् भृगु, विरज, काशिन् एवं उग्र। । की कन्या सुकन्या से आप्नवान् एवं दधीच नामक दो पुत्र भृगु एवं आंगिरस वंश एक होने के बाद उनके ग्रंथ :उत्पन्न हुए। उनमें से आप्नवान् के वंश में ऋचीक, जमदग्नि ही 'भृग्वंगिरस्' अथवा 'अथर्वागिरस्' नाम से एकत्र हो एवं परशुराम जामदग्न्य इस क्रम से एक से एक अधिक | गये। आधुनिक काल में उपलब्ध अथर्वसंहिता भृगु एवं पराक्रमी एवं विद्यासंपन्न पुत्र उत्पन्न हुए । आमवान् के आंगिरस ग्रंथों के सम्मीलन से ही बनी हुयी है। इन पराक्रमी वंशजों ने हैहयवंशीय राजाओं के साथ किया विवाहसंबंध-आधुनिक काल में, विवाह करते समय शत्रुत्व सुविख्यात है (परशुराम जामदग्न्य देखिये)।। जिन दो गोत्रों के प्रवर एक है, उन में विवाह तय नहीं भार्गव वंश के इस शाखा का विस्तार पश्चिम हिंदुस्थान | किया जाता । भृगु एवं अंगिरस् ये दो गोत्र ही केवल में आनर्त प्रदेश में हुआ था। ऐसे है कि, जहाँ प्रवर एक होने पर भी विवाह तय दधीच ऋषि को सरस्वती नामक पत्नी से सारस्वत करने में बाधा नहीं आती है। संभव है, ये दोनों मूल नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। किन्तु भार्गव वंश के इस शाखा गोत्रकार अलग वंश के होने के कारण, यह धार्मिक के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं है। परंपरा प्रस्थापित की गयी हो। ___ भार्गवगण--ब्रह्मांड के अनुसार, भार्गव वंश में ___ भृगु गोत्रियों में भृगु, जामदग्न्य भृगु ऐसे अनेक उपयुक्त भृगुवंशीयों के अतिरिक्त निम्नलिखित सात गण | भेद हैं । आंगिरस वंशियों में भी भरद्वाज-आंगिरस, गौतम प्रमुख थः-१. वत्स, २. विद, ३. आष्टषण, ४. यस्क | आंगिरस ऐसे अनेक भेद प्राप्त हैं। इन सारे गोत्रों में ५. वैन्य, ६. शौनक, ७. मित्रेयु (ब्रह्मांड. ३.१. ७४ काफी नामसादृश्य दिखाई देता हैं। किन्तु इन सारे १००)। गोत्रों के मूल गोत्रकार विभिन्न वंशों में उत्पन्न हये थे। क्षत्रियब्राह्मण--च्यवन ऋषि के परिवार ने ब्राह्मण | यही कारण है कि, इन गोत्रों के प्रवर एक हो कर भी हो कर भी क्षत्रियकर्म स्वीकार लिया, जिस कारण, | उन में विवाह होता है। भार्गव वंशियों को 'क्षत्रियब्राह्मण' उपाधि प्राप्त | वैदिक वाङ्मय में भृगु प्रजापति एवं भृगु वारुणि स्वतंत्र
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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