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________________ भूत प्राचीन चरित्रकोश भूतवीर है। किन्तु रुद्र एक व्यक्ति न हो कर, इनके राजा का | पक्ष को बहुत बूरी तरह से हार खानी पडी (वायु. १. सामान्य नाम था। कई जगह, इनके राजा को 'गणपति' | ३०.८९-१०१)। कहा गया है। इन लोगों में जो व्यक्ति सबसे अधिक | देव एवं असुरों के साथ किये युद्ध में यद्यपि भूतगणों का बलवान् होता था, उसे राजा बना कर ये लोग उसे 'रुद्र' विजय हुआ, फिर भी अन्त में इन्हे उत्तरी भारत का नाम से विभूषित करते थे । पुराणों में, इस प्रकार के दो प्रदेश छोड़ कर, दक्षिण भारत में स्थलांतर करना पड़ा। रुद्रों का निर्देश मिलता है। उनमें से वीरभद्र नामक रुद्र | भूतगणों का यह स्थलांतर वैवस्वत मन्वन्तर के काल तक 'सिंहमुख' नामक भूतगणों का प्रमुख था (वामन. | पूर्ण हो कर उस समय ये लोग संपूर्णतः दक्षिण भारत ४.१७)। दूसरा नंदिकेश्वर नामक रुद्र शैलादि नामक | के रहिवासी बन चुके थे। भूत गणों का मुखिया था (मत्स्य. १८१.२)। २. एक हैहयवंशीय राजा। स्कंद के अनुसार, इसके वामन के अनुसार, भतगणों की कुल संख्या ग्यारह | पुत्र का नाम शंख था (शंख ४. देखिये)। करोड़ मानी जाती है। इन भनगणों में स्कंद, शाख एवं ३. (सो. यदु. वसु.) एक यादव राजा, जो भागवत भैरव आदि प्रमुख व्यक्ति थे, तथा इनके अधिकार में | के अनुसार वसुदेव एवं पौरवी का पुत्र था। अनेकानेक गण थे । वामन में भूतों के रूप एवं अस्त्रों की | ४. एक ब्रह्मर्षि, जो भृगु ऋषि का पुत्र था। विस्तृत जानकारी दी गयी है। वहाँ पर इनके मुख की | भूतकर्मन्-कौरव पक्ष का एक योद्धा, जो नकुलआकृति का वर्णन 'वानरास्य' एवं 'मृगेन्द्रवदन' नाम | पुत्र शतानीक के द्वारा मारा गया (म. द्रो. २४. से किया गया है। भस्म, खट्वांग आदि इनके प्रमुख | २३)। । आयुध थे (वामन. ६७.१-२३)। इनके ध्वज पर प्रायः भूतकेतु-एक राजा, जो दक्षसावर्णि मनु के पुत्रों में किसी पशु अथवा पक्षी का चिन्ह रहता था, एवं उसी पशु | से एक था। अथवा पक्षी के नाम से 'मयूरध्वज' अथवा 'मयूर- भूतज्योति--(सू, नृग.) एक राजा, जो सुमति वाहन' ऐसे नाम गणनायक को प्राप्त होते थे। राजा का पुत्र था। इसके पुत्र का नाम वसु था। . असुरों से युद्ध--भगवान् शंकर एवं अंधकासुर के | भूतधामन्--एक इंद्र, जिसे ऋतुधामन् नामान्तर बीच हुए युद्ध में, भतगण शंकर के पक्ष में शामिल था। भी प्राप्त है। जिन इंद्रों के अंश से पांडवों की उत्पत्ति इस युद्ध में, सर्वप्रथम 'विनायक' नामक भूतों के | हुी थी, उन में से दूसरा इंद्र यह था (म. आ. १८९. गणपति ने अंधक पर आक्रमण किया, जिस में अंधक | १९१६* पाठ.)। के द्वारा वह परास्त हुआ। तत्पश्चात् नंदी नामक अन्य भूतनंद--(किलकिला. भविष्य.) एक किलकिलाएक गणपति ने अंधक पर आक्रमण किया, एवं विनायक वंशीय राजा, जिसने पचास वर्षों तक राज्य किया। की सहाय्यता से अंधक से घमासान युद्ध कर उसे परास्त भूतनय--रैवत मन्वन्तर का एक देव । किया। अंधक शंकर की शरण में आने पर, उसे भी भूतमथन--स्कंद का एक सैनिक । इसके नाम के शिव ने अपने एक भूतगण का गणपति बनाया, एवं वह | लिए 'भूतलोन्मथन' पाठभेद प्राप्त है (म. श. भृगी नाम से प्रसिद्ध हुआ। | ४४. ६४)। ___ भगवान् शंकर ने महिषासुर एवं शुभ निशुंभ के साथ | भूतरजस्--रैवत मन्वन्तर का एक देवगण । इसके किये युद्ध में, उसके भूतगणों का अधिपति रुद्र न हो कर | नाम के लिए 'भूतरय' एवं 'भूतरज' पाठभेद 'रुद्राणी' नामक कई भूतस्त्रियाँ थी । इन दोनों युद्ध में | प्राप्त हैं। . भूतगणों का विजय हुआ। पुराणों में इन सारे युद्धों का भूतवर्मन्--दुर्योधन पक्ष के 'भूतशर्मन्' नामक राजा निर्देश देवीमहात्म्य बताने के लिए किया गया है। यही | के नाम के लिए उपलब्ध पाठभेद। कारण है कि, इन युद्धों का निर्देश वामन तथा मार्कंडेय भूतवीर--पुरोहितों के परिवार का एक सामुहिक पुराणों में एवं 'देवीमहात्म्य' में ही केवल उपलब्ध है। नाम। ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार, जनमेजय पारिक्षित राजा भूतगणों के बहुत सारे युद्ध असुरगणों से ही हुए थे। ने अपने कुलपरंपरागत कश्यप नामक पुरोहितों की उपेक्षा किन्तु दक्षयज्ञ के समय, इन्हे देवपक्ष से संग्राम करना | कर, इन्हे अपने पुरोहित बनाये, एवं इन्हीं के हाथों एक पड़ा । उस युद्ध में भी भूतगणों का विजय हुआ, एवं देव- | यज्ञसमारोह का आयोजन किया । किन्तु कश्यपों में से ५८१ पति रुद्र न हो कर प्राप्त हैं । --दुर्योधन प
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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