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________________ प्राचीन चरित्रकोश भागुरि २. चाक्षुष मन्वंतर का एक देव । भागवित्रासन--भागवित्तायन नामक ऋषिगण के ३. (स्वा. उत्तान.) उत्तानपादवंशीय एक राजा, जो | नाम के लिए उपलब्ध पाठभेद (भागवित्तायन देखिये)। ध्रुव राजा का पुत्र था। इसकी माता का नाम भूमि था। भागस्वरि--दशार्ण देश के राजा ऋतुपर्ण का ४. दक्षसावर्णि मन्वंतर के सप्तर्षियों मे से एक। नामांतर (भांगासुरि देखिये)। भस्मासुर--एक असुर, जो शिव के विभूति में स्थित | भागान्य--एक क्षत्रिय, जो तप के फलस्वरूप ब्राह्मण एक कंकड़ से उत्पन्न हुआ था। मराठी भाषा मे लिखित | एवं ऋषि बना था (वायु. ९१.११६)। 'शिवलीलामृत' में केवल इसकी कथा प्राप्त है। संस्कृत भागिल-भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । पुराणों में कही भी इसकी कथा नही दी गयी है। किंतु | भागुरि-सुविख्यात व्याकरणकार, कोशकार, ज्योतिउन पुराणों में प्राप्त कालपृष्ठ एवं वृक नामक असुरों के | षशास्त्रज्ञ एवं स्मृतिकार । उन विभिन्न विषयों पर इसके कथा से इसकी कथा काफी मिलती जुलती है (कालपृष्ठ, | नाम पर अनेकानेक ग्रंथ उपलब्ध हैं, किंतु इन सब ग्रंथो एवं वृक देखिये)। का प्रवक्ता एक ही भागुरि है या भिन्न भिन्न, यह अज्ञात है। यह शिव का परमभक्त था, जिस कारण उसने इसे बर दिया था कि, जिसके सर पर यह हाथ रखेंगा, वह ___ संभवतः 'भागुरि' इसका पैतृक नाम था, एवं इसके तत्काल दग्ध हो कर भस्म हो जायेगा। शिव के इस वर पिता का नाम 'भगुर ' था। पतंजलि के व्याकरण महाके कारण, यह सारे लोगों को अत्यधिक त्रस्त करने लगा। भाष्य में, लोकायतशास्त्र पर व्याख्या लिखनेवाली भानुरी:.' फिर इसे विनष्ट करने के लिए, श्रीविष्णु ने मोहिनी का नामक किसी स्त्री का निर्देश प्राप्त है (महा. ७.३.४५)। संभव हैं, वह स्त्री आचार्य भागुरि की बहन हो। इसके अवतार लिया । 'मुक्तनृत्य' की एफ मुद्रा में, अपना हाथ अपने ही सर पर रखने के लिए इसे विवश कर, मोहिनी गुरु का नाम बृहद्गर्ग था। मेरु पर्वत का आकार ने इसका वध किया (शिवलीला. १२)। चतुष्कोनयुक्त है, ऐसा इसका मत वायु में उद्धृत किया गया हैं (वायु. ३४.६२)। भागालि-एक गृह्यसूत्रकार, जिसके मतों के उद्धरण ___व्याकरणशास्त्रकार--यद्यपि पाणिनि के 'अष्टाध्यायी' कौषीतकी गृहयसूत्र में प्राप्त है। शान्त्युदक करते समय | में भागुरि का.निर्देष अप्राप्य है, तथापि अन्य व्याकरण : कौनसे मंत्र का उच्चारण करना चाहिये, इस विषय में ग्रंथों में भागुरि के काफी उद्धरण लिये गये है। इन इसके मत प्राप्त है (को. ग. ९.१०)। इसका यह भी | उद्धरणों से प्रतीत होता हैं कि, इसका व्याकरण भलीअभिमत था कि, मधुपर्क करते समय गाय का उपयोग प्रकार परिष्कृत एवं श्लोकबद्ध था, एवं वह पाणिनीय नहीं करना चाहिये (को. ग. १७.२७)। व्याकरण से कुछ विस्तृत था। भागवत--(शंग. भविष्य.) एक शुंगवंशीय राजा, भागुरि का यह अभिमत था कि, जिन शब्दों का जो वायु के अनुसार विक्रमित्र राजी का, एवं अन्य | प्रारंभ 'अपि' अथवा 'अव' उपसर्ग से होता है; वहाँ पुराणों के अनुसार, वज्रमित्र का पुत्र था। मत्स्य में 'अ' का लोप होता हूँ (जैसे कि, अवगाह :इसके नाम के लिए 'समाभाग' पाठभेद प्राप्त है। वगाह, अपिधान = पिधान )। इसका यह भी सिद्धान्त था भागवित्तायन--वसिष्टकुलोत्पन्न गोत्रकार ऋषिगण । | कि, हलन्त शब्दों की प्रक्रिया में हलन्त का लोप हो कर इसके नाम के लिए भागवित्रासन' पाठभेद प्राप्त है। | 'आ' प्रत्यय लगाया जाता है (जैसे कि, वाक् = वाचा भागवित्ति--एक आचार्य, जो वायु के अनुसार, व्यास | दिश् = दिशा)। की सामशिष्यपरंपरा में से कुथुमि ऋषि का शिष्य था। भागुरि के व्याकरणविषयक कुछ और उद्धरण जगदीश ब्रह्मांड में इसके नाम के लिए 'नामवित्ति' पाठभेद तकालंकार ने अपने 'शब्दशक्तिप्रका शिका' में उद्धृत प्राप्त है। किये है। २. बृहदारण्यक उपनिषद में निर्दिष्ट 'चूड' अथवा | कोशकार---पुरुषोत्तमदेव की 'भाषावृत्ति, ' एवं सृष्टि'चूल' नामक आचार्य का पैतृक नाम (बृ. उ. ६.३; धरकृत 'भाषावृत्ति टीका' से प्रतीत होता है कि, भागुरि १७.८. माध्यं; ६.३.९-१० काण्व.)। के द्वारा 'त्रिकाण्डकोश' नामक एक शब्दकोश की रचना ३. भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । | की गयी थी । इसका यह कोश आज भी उपलब्ध हैं ५५४
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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