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.भरत
प्राचीन चरित्रकोश
भरत
भरतों के सम्बन्ध में दो जातियों के मिश्रण का आभास | में 'गंधर्ववेद' नामक संगीतशास्त्रीय ग्रंथ का भी इसे देखता है (वेदिशे माइथोलोजी १.१११)। कर्ता कहा गया है (विष्णु. ३.६.२७)। पिशेल ने अपने
भरतगण का उल्लेख यज्ञकर्ता राजाओं के रूप में कई नाट्यशास्त्र के जर्मन अनुवाद में 'भरत' शब्द का अर्थ ग्रन्थों में आया है । शतपथ ब्राह्मण में, अश्वमेध यज्ञ करने- 'अभिनेता' ऐसा किया है, एवं इसे देवों द्वारा अभिनीत वाले राजा के रूप में 'भरत दौःषन्ति' तथा 'शतानीक | नाट्यप्रयोगों का निर्देशक कहा है। सात्रजित' नामक अन्य भरतों का उल्लेख प्राप्त है (श. नाट्यप्रयोग में अभिनय करनेवाले अभिनेताओं को ब्रा. १३.५.४ )। ऐतरेय ब्राह्मण में, दीर्घतमस् मामतेय मार्गदर्शन करनेवाले 'नटसूत्र' पाणिनिकाल में अस्तित्व द्वारा अपना राज्याभिषेक करानेवाले 'भरत दौःषन्ति', में थे (पा. ४.३.११०)। भरत ने इन्ही नटसूत्रों का तथा सोमशुष्मन् वाजरत्नायन नामक पुरोहित के द्वारा विस्तार कर, अपने नाट्यशास्त्र की रचना की । इसके ग्रंथ अभिषिक्त हुए 'शतानीक' का विवरण प्राप्त है (ऐ. बा. में नाट्याभिनय, नृत्य, संगीत, नाट्यगीत एवं काव्यशास्त्र ८.२३)। इन भरत राजाओं ने काशी के राजाओं को का विस्तारशः परामर्श लिया गया है। जीत कर, गंगा तथा यमुना के पवित्र तटों पर यज्ञ किये दुर्भाग्यवश भरत के द्वारा रचित मूल 'नाट्यशास्त्र' थे (श. बा..१३.५.४; ११.२१)।
आज उपलब्ध नही है। सांप्रत उपलब्ध नाट्यशास्त्र का महाभारत में कुरु राजवंश के राजाओं को भरत- बहुतसारा भाग प्रक्षिप्त है; एवं वह एक ग्रंथकार की नही, वंशीय ही माना गया है। इससे प्रतीत होता है कि, बल्की अनेक ग्रंथकारों की रचना प्रतीत होती है । उसमे से ब्राह्मण ग्रन्थों के काल तक भरतगण कुरु पांचालजाति में | कई श्लोक अनुष्टुभ वृत्त में, एवं कई आर्या वृत्त में रचे विलीन हो चुके थे (श. बा. १३.५.४)।
गये है; एवं कई भाग गद्यमय है। ऋग्वेद में एक जगह सुदास एवं दिवोदास, तथा पुरु- नाट्यशास्त्र की उत्पत्ति-भरत के नाट्यशास्त्र के कुल कुत्स एवं त्रसदस्यु इन दोनों की मित्रता का निर्देश मिलता | ३८ अध्याय है, जिसमे से पहिले एक एवं आखिरी तीन है । ओल्डेनबर्ग के अनुसार, ये निर्देश भरत, पूरु तथा कुरु | अध्यायों में नाट्यशास्त्र की उत्पत्ति की कथा दी गयी है । राजवंशों के सम्मीलन की निशानी माननी चाहिये (ऋ. उस कथा के अनुसार, एक बार इंद्रादि सारे देव ब्रह्मा के १.११२.१४; ७.१९.८)।
पास गये, एवं उन्होने प्रार्थना की, 'नेत्र एवं कान इन दोनों ऋग्वेद में 'अग्नि भारत' को भरतों की अग्नि के
को तृप्त करे ऐसे कोई कलामाध्यम का निर्माण करने की अर्थ में, तथा 'भारती' का प्रयोग भरतों की देवी के रूप
आप कृपा करे'। देवों की इस प्रार्थना के अनुसार, ब्रह्म में हुआ है (ऋ. २.७.१; १.२२.१०)।
ने 'नाट्यवेद ' नामक पाँचवे वेद का निर्माण किया। - इस मानववंश में उत्पन्न हुए राजा ( जैसे. सुदास एवं 'नाट्यवेद' में निर्दिष्ट तत्त्वों के अनुसार निर्माण किये गये दिवोदास) सूर्यवंशी थे अथवा नहीं, यह कहना कठिन है। प्रथम नाट्यप्रयोग का आयोजन इंद्र ने असुरों पर प्राप्त किये वायुपुराण में मनु राजा को ' लोगों का पोषण करनेवाला' | विजय के सम्मानार्थ, भरत मुनि द्वारा इंद्र के राजप्रासाद में अर्थ से 'भरत' कहा गया है, एवं उसीके नाम से इस देश किया गया । इस नाट्यप्रयोग का कथाविषय 'देवासुर संग्राम' तथा यहाँ के निवासियों को 'भारत' नाम प्राप्त होने का | ही था, जिसे देख कर उपस्थित असुरगण संतप्त हो उठा। निर्देश है (वायु. ४५.७६ )।
उन्होनें अपने राक्षसी माया से नाट्यप्रयोगों में भाग लेनेवाले ५. नाट्यशास्त्र का प्रणयन करनेवाला सुविख्यात अभिनेताओं की वाणी, स्मृति एवं अभिनयसामर्थ्य पर भाचार्य, जिसका 'भारतीयनाट्यशास्त्र' नामक ग्रंथ | पाश डालना शुरु किया, जिससे नाट्यप्रयोग, में बाधा नाट्यलेखन एवं नाट्यप्रयोगशास्त्र का सर्वप्रथम एवं प्रमाण | ग्रंथ माना जाता है।
राक्षसों के इस असंमजस व्यवहार का कारण इसके द्वारा लिखित नाट्यशास्त्र में, 'नंदिभरत संगीत | ब्रह्मा के द्वारा पूछा जाने पर राक्षस कहने लगे, पुस्तकम्' ऐसा निर्देश प्राप्त है, जिससे प्रतीत होता है की, | 'भारतमुनि निर्मित नाट्यकृति में राक्षस का इसका नाम नंदिभरत होगा । नंदिभरत के नाम पर | चित्रण देवों की अपेक्षा गिरे हुए खलनायक के 'अभिनयदर्पण' नामक अभिनयशास्त्र का एक ग्रन्थ, एवं | रूप में किया गया है। यह हमे पसंद नहीं है। संगीतशास्त्र पर अन्य एक भी उपलब्ध है । विष्णु पुराण | फिर ब्रह्मा ने जवाब दिया, 'देव एवं असुरों की सुष्टता एवं
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