________________
भद्रगुप्ति प्राचीन चरित्रकोश
भद्रसेन भद्रगुप्ति--(सो. वसु.) एक राजा, जो वसुदेव एवं | भद्रशर्मन् कौशिक--एक आचार्य, जो पुष्पयशस् रोहिणी का पुत्र था।
| औदवजि का शिष्य था। इसके शिष्य का नाम अयमभद्रचारु--श्रीकृष्ण एवं रुक्मिणी का एक पुत्र । | | भूति था (वं. ब्रा. ३)।
भद्रज--(सो. वसु.) एक राजा, जो वसुदेव एवं भद्रशाख-स्कंददेव का एक नामान्तर, जो इसे बकरे रोहिणी के पुत्रों में से एक था।
के समान मुख धारण करने के कारण प्राप्त हुआ था भद्रतनु--एक दुराचारी ब्राहाण, जो दान्त की कृपा | (म. व. २१७.४)। से विष्णुभक्त बन कर मुक्त हुआ (पा. क्रि. १७)। | भद्रश्रवस्--एक ऋषि, जो भद्राश्वखंड में रहनेवाले
भद्रदेह--(सो. वसु.) एक राजा, जो विष्णु के | धर्म ऋषि का पुत्र था । यह हयग्रीव की प्रतिमा की उपासना अनुसार वसुदेव एवं देवकी के पुत्रों में से एक था। | करता था (भा. ५.१८.१)
भद्रबाहु--एक दैत्य, जो हिरण्याक्ष के पक्ष में शामिल | भद्रश्रेण्य-(सो. सह.) काशी देश का एक हैहय था। हिरण्याक्ष ने देवों से किये युद्ध में यह अग्नि के | राजा, जो विष्णु एवं वायु के अनुसार, महिष्मत् राजा द्वारा दग्ध हो गया (पद्म. सु. ७५)।
का पुत्र था। इसे भद्रसेनक एवं रुद्रश्रेण्य नामान्तर भी २. (सो. वसु.) एक राजा, जो वसुदेव एवं रोहिणी प्राप्त थे। दिवोदास राजा ने इसे पराजित कर काशी देश के पुत्रों में से एक था।
| का राज्य इससे जीत लिया। पश्चात् इसने दिवोदास को . भद्रमति-एक दरिद्री ब्राह्मण । इसे छः पत्नियाँ, एवं | पराजित किया; किन्तु दिवोदास ने पुनः एक बार इसपरं . . दो सौ चवालिस पुत्र थे (नारद. १.११)।
हमला कर, इसका एवं इसके सौ पुत्रों का वध किया। इस एकबार इसने 'भूमिदान महात्म्य' सुना, जिससे इसे
आक्रमण में से इसका दुर्दम नामक पुत्र अकेला ही बच . . स्वयं भूमिदान करने की इच्छा उत्पन्न हुयी। किन्तु इसके | सका, जिसन
| सका, जिसने आगे चलकर दिवोदास को पराजित किया. ... पास भूमि न होने के कारण, इसने कौशांबी नगरी में जाकर | (दिवोदास २. देखिये; ह. वं. १.२९.६९-७२,३२.२७वहाँ के राजा से ब्राह्मणों दान देने के लिए भूमि माँगी। | २८)। इस तरह प्राप्त भूमि इसने ब्राह्मणों को दान में दी । पश्चात् भद्रसार-(मौर्य. भविष्य.) एक मौर्यवंशीय राजा, इसने व्यंकटाचल में स्थित पापनाशनतीर्थ में स्नान भी | जो वायु एवं ब्रह्मांड के अनुसार, चंद्रगुप्त राजा का पुत्र किया। इन पुण्यकों के कारण इसे मुक्ति प्राप्त हो गयी | था (बिंदुसार २. देखिये)। (रकंद. २.१.२०)।
२. (सो. वसु.) एक राजा, जो वसुदेव के रोहिणी भद्मनस्--पुलह की पत्नी, जो कश्यप एवं क्रोधा | से उत्पन्न पुत्रों में से एक था। की नौ कन्याओं में से एक थी। इसके नाम के लिए ३. काश्मीर देश का राजा । इसे सुधर्मन् नामक एक 'भद्रमना' पाठभेद भी प्राप्त है। देवताओं का हाथी पुत्र था, जो तारक नामक प्रधानपुत्र के साथ हमेशा शिव ऐरावत इसका पुत्र था (म. आ.६९.६८)। की उपासना करता रहता था। इसने अपने पुत्र को शिव
भद्ररथ--(सो. वसु.) एक राजा, जो वायु के अनुसार भक्ति से परावृत्त करने का काफी प्रयत्न किया। किन्तु वसुदेव एवं रोहिणी के पुत्रों में से एक था।
उसका कुछ फायदा न होकर, सुधर्मन् की शिवोपासना २. (सो. अनु.) एक राजा,जो हयंग राजा का पुत्र था। बढ़ती ही रही ।
भगवती--परिक्षित (प्रथम) राजा की भार्या, जिसके एक बार पराशर ऋषि इसके यहाँ अतिथी बनकर पुत्र का नाम जनमेजय था (म. आ. ९०.९३)। पाठभेद आया था। उस समय इसने अपने पुत्र की शिवोपासना (भांडारकर संहिता)--'माद्रवती।
एवं विरक्ति की समस्या उसके सामने रख दी। पराशर भद्रवाह--एक राजा, जो भागवत के अनुसार ने इसकी एवं इसके पुत्र के पूर्व जन्म की कहानी इसे वसुदेव एवं पौरवी के पुत्रों में से एक था।
सुनाकर इसे सांत्वना दी, एवं इससे रुद्राभिषेक करवाया। भद्रविन-(सो. वसु.) एक राजा, जो वसुदेव एवं तदोपरान्त अपने पुत्र सुधर्मन् को राजगद्दी पर बिठाकर रोहिणी के पुत्रों में से एक था।
| यह वन में चला गया (स्कंद. ३.३.२०-२१)। भद्रविद्-कंस के द्वारा मारे गये वसुदेव एवं देवकी भद्रसेन--(स्वा. प्रिय.) एक राजा, जो ऋषभदेवं के पुत्रों में से एक।
| एवं जयन्ती के पुत्रों में से एक था। ५३८