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भङ्गकार
प्राचीन चरित्रकोश
भजमान
भगकार-एक राजा, जो सोमवंशीय कुरु राजा का | वर्तन को देखा, तब दुःखी होकर अपने राज्य वापस आया, पौत्र, एवं अविक्षित् राजा का पुत्र था (म. आ.८९.४६)। तथा अपना समस्त राज्यभार पुत्रों को देकर वन चला
२. (सो. वृष्णि.) यादववंशीय एक राजा, जो मत्स्य गया। के अनुसार शक्तिसेन राजा का, एवं वायु के अनुसार वन में जाकर स्त्रीरूपधारणी भङ्गास्वन ने एक तपस्वी शक्रजित राजा का पुत्र था। इसकी पत्नी का नाम द्वारवती | से विवाह किया, तथा उससे इसे सौ पुत्रों हुए । कालोपरांत था (म. आ. २११.११; वायु. ९६.५३-५५)। मत्स्य इसने अपने इन पुत्रों को पहलेवाले पुत्रों के पास भेजकर, में इसकी पत्नी का नाम वीरवती दिया गया है (मत्स्य.| उन्हें भी राज्य से उचित भाग दिलवाया। इस प्रकार यह ४५.१९, ब्रह्मांड. ३.७१.५४-५६)। इसकी निम्नलिखित इस स्त्रीरूप में भी आनंदपूर्वक जीवन बिताता रहा। तीन कन्याएँ थी :- सत्यभामा, बतिनी एवं पद्मावती | इसके इस सुखी जीवन को देखकर इन्द्र को बड़ा क्रोध (प्रस्वापिनी, तपस्विनी)(ह. वं. १.३८.४५-४६; मत्स्य आया, क्योंकि उसने इसे यह स्त्रीरूप कष्टमय जीवन ४५.१९-२१)। इसे सभाक्ष एवं नावेय (तारेय ) नामक बिताने के लिए दिया था, सुख भोगने के लिए नहीं। इन्द्र दो पुत्र थे (ह. वं. १.३८.४८; ब्रह्म. १६.४८)। यह को एक तरकीब सूझी। वह ब्राह्मणवेष धारण कर इसके रैवतक पर्वत के महोत्सव में उपस्थित था। पाठभेद पुत्रों के राज्य में गया, जहाँ इसके दो सौ पुत्र भलीप्रकार (भांडारकर संहिता)--' भद्रकाल'।
रहते थे। वहाँ जाकर उसने उनमें ऐसी फुट डाल दी कि, भङ्गश्रवस्--वैदिक ग्रंथों में निर्दिष्ट एक आचार्य सब आपस में लड़भिड़ कर कट मरे। (क. सं. ३८.१२)। इसके नाम के लिए 'भङ्गयश्रवस्' यह अपने राज्य गया, तथा पुत्रों की यह दशा देखकर पाठभेद प्राप्त हैं।
फूट फूट रोने लगा। इन्द्र जो ब्राह्मणवेश में वहीं उपस्थित . भङ्गश्विन--एक राजा, जो शफाल का राजा ऋतुपर्ण था, वह भी इसके दुःख को देखकर पसीज उठा। का पिता था (बौ. श्री. २०.१२)। आपस्तंब श्रौतसूत्र फिर इन्द्र ने अपने साक्षात् स्वरूप को प्रकट कर इसे में ऋतुपर्णकयोवधि का 'भग्याश्विनौ' के रूप में उल्लेख दर्शन दिया । इसने उसकी प्रार्थना की, तथा फिर इन्द्र है ( आ. श्री. २१.२०)। महाभारत में इसे 'भांगासुरी' ने प्रसन्न हो कर इसके सभी पुत्री को पुनः जीवित कर (भागास्वरि, भांगस्वरि, भांग) कहा गया है (म. स. दिया । इन्द्र ने इससे पूँछा, 'यदि तुम पुनः पुरुषयोनि ८.१५; व. ६८.२; ६९.१०)।
में आना चाहते हो, तो मै तुम्हे पुरुषरूप प्रदान कर भङ्गास्वन--एक प्राचीन राजर्षि, जो आजन्म इन्द्र सकता हूँ'। किन्तु इसने कहा, 'पुरुष की अपेक्षा स्त्री का विरोधी रहा (म. अनु. १२.१०)। इसके नाम के अधिक मोहक एवं कोमल है, अतएव में स्त्री ही रहना लिए 'भाङ्गस्वन' पाठभेद प्राप्त है।
चाहती हूँ।' इस प्रकार मृत्यु तक भगवत स्त्री ही रहा इसे कोई सन्तान न थी, अतएव यह अत्यधिक (म. अनु. १२)। चिन्तित रहता था। पुत्रप्राप्ति के लिए इसने अग्नि भङ्गयश्रवस्-एक आचार्य (ले. आ. ६.५.२)। देवता को प्रसन्न करने के लिए 'अग्निष्टोम यज्ञ' किया। यह एवं भङ्गाश्रवस् संभवतः एक ही होंगे। उस यज्ञ को देखकर इन्द्र इस पर नाराज हुआ कि, 'यह भज-एक आचार्य, जो ब्रह्मांड के अनुसार, व्यास यज्ञ मेरे अपमान के लिए किया जा रहा हैं, क्योंकि सारे की ऋकूशिष्य परंपरा में से शाकवैण रथीतर ऋषि का हविर्भाग के प्राप्त करने का अधिकार अग्नि को ही होगा, | शिष्य था (व्यास देखिये)। मुझे नहीं । अतएव वह इससे बदला लेने का मार्ग ढूंढने भजमान-(सो. क्रोष्टु.) एक यादववंशीय राजा, लगा। कालान्तर में अग्नि की कृपा से इसे सौ पुत्र हुए। जो सत्वत राजा का पुत्र था। इसकी माता का नाम कौसल्या
एक बार यह अपने कुछ सैनिकों के सहित शिकार खेलने था। इसे सात्वत अथवा अन्धक नामक एक भाई था । गया। वहाँ यह जंगल में भटकता हुआ एक सुन्दर सरोवर | इसे बाह्यका एवं संजया ( उपबाह्यका ) नामक दो पत्नियाँ के पास आ खड़ा हुआ, तथा फिर उसमें नहाने की इच्छा थी, जो दोनों ही संजय राजा की कन्याएँ थी। उनमें से से उतर पडा । इंद्र ने सुअवसर देख कर बदला लेने की | बाह्यका से इसे शताजित् ,सहस्राजित् एवं अयुताजित् ; एवं भावना से, इसे एक स्त्री बना दिया (म. अनु. १२. | सृजया से निम्लोचि, वृष्णि एवं किंकिणे नामक पुत्र उत्पन्न । १०)। बाद को जब इसने अपने विचित्र शरीर के परि हुए थे (भा. ९.२४.६-८)। ब्रह्म में बाह्यका से उत्पन्न
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